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हाईकोर्ट : एट्रासिटी के पीड़ित का इलाज कराए सरकार, रेजिडेंट डाक्टरों के मुद्दों को सुलझाएं उच्चाधिकार कमेटी
डिजिटल डेस्क, मुंबई। बांबे हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को एट्रासिटी (जाति उत्पीड़न) के पीड़ित युवक के सर्जरी के उपचार का खर्च वहन करने का निर्देश दिया है। न्यायमूर्ति आरवी मोरे व न्यायमूर्ति एनएम जमादार की खंडपीठ ने यह निर्देश पुणे निवासी सागर जाधव की याचिका पर सुनवाई के बाद दिया। आरक्षित वर्ग के जाधव ने ऐसे लोगों का विरोध किया था जो उसके दोस्त को परेशान करते थे। इससे नाराज आरोपियों ने साल 2014 में जाधव की बेरहमी से पिटाई की थी। जिससे उसके शरीर में 90 प्रतिशत विकलांगता आ गई थी। इस प्रकऱण को लेकर पुणे के वालचंद पुलिसस्टेशन में शिकायत दर्ज की गई थी। शुरुआत में जाधव दो महीने तक कोमा में था। इसके बाद उसने अस्पताल में सर्जरी कराई थी अब उसे दूसरी सर्जरी करानी है। जिसका खर्च करीब 6 लाख रुपए है । इसलिए उसने एट्रासिटी कानून की धारा 15ए के तहत हाईकोर्ट में याचिका दायर की है। याचिका में उसने 50 लाख रुपए के मुआवजे व इलाज का खर्च दिए जाने की मांग की है। याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता चेतन माली ने पक्ष रखा। याचिका पर सुनवाई के दौरान सरकारी वकील केवी सस्ते ने खंडपीठ के सामने कहा एट्रासिटी कानून के तहत पीड़ित के लिए सरकार ने दिसंबर 2016 में एक शासनादेश जारी किया है जिसमें पीड़ित के लिए साढे चार लाख रुपए के मुआवजे का प्रावधान किया गया है। इसमें 50 प्रतिशत रकम पीड़ित की मेडिकल जांच के बाद दी जाती है जबकि शेष 50 प्रतिशत रकम आरोपपत्र दायर करने के बाद दी जाती है। उन्होंने स्पष्ट किया कि याचिकार्ता जो सर्जरी निजी अस्पताल में कराना चाहते है वह पुणे के सूसन अस्पताल में भी की जा सकती है। यहां पर भी अच्छे डाक्टर है। इस बात को जानने के बाद खंडपीठ ने अंतरिम आदेश के तौर पर बीजे मेडिकल कालेज व सूसन अस्पताल के अधिष्ठता को निर्देश दिया कि वह जल्द से जल्द यािचकाकर्ता के उपचार की दिशा में कदम उठाए। राज्य सरकार याचिकार्ता की सर्जरी के उपचार के सारे खर्च का वहन करे। खंडपीठ ने फिलहाल मामले की अगली सुनवाई 20 सितंबर तक के लिए स्थगित कर दी है।
बीडीडी चाल के पुनर्विकास पर हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से मांगा जवाब
इसके अलावा महानगर के विभिन्न इलाकों में स्थित बीडीडी चाल के पुनर्विकास के तौर-तरीके को लेकर दायर जनहित याचिका पर राज्य सरकार से जवाब मांगा है। याचिका में दावा किया गया है कि बीडीडी चाल के पुनर्विकास की प्रस्तावित योजना वहां के रहिवासियों के स्वास्थ्य व उनके जीवन के अधिकार को प्रभावित करती है। सौ साल पहले बांबे डेवलपमेंट डायरेक्टोरेट(बीडीडी) ने इन चालों का निर्माण किया था। यह चाल मुंबई के विभिन्न इलाकों में 92 एकड जमीन पर बनी है। याचिका के मुताबिक बीडीडी चाल के पुनर्विकास के प्रस्ताव को देखने के बाद प्रतीत होता है कि नई इमारते एक दूसरे के बेहद करीब बनाई जाएगी। जिससे लोग हवा व प्रकाश से भी वंचित हो जाएगे। यह उनके स्वास्थ्य पर असर डालेगा और इससे बीमारी पैदा होगी। बुधवार को मुख्य न्यायाधीश प्रदीप नांदराजोग की खंडपीठ ने याचिका पर गौर करने के बाद राज्य सरकार को हलफनामा दायर करने का निर्देश दिया और मामले की सुनवाई स्थगित कर दी।
रेजिडेंट डाक्टरों के मुद्दों को सुलझाएं उच्चाधिकार कमेटी
बांबे हाईकोर्ट ने कहा है कि राज्य सरकार द्वारा गठित की गई उच्चाधिकार कमेटी जरुरत पड़ने पर रेजिडेंट डाक्टरों से जुड़े मुद्दे व उनकी समस्याओं को सुलझाएं। राज्य सरकार ने रेजिडेंट डाक्टरों से जुड़े मुद्दों को देखने के लिए साल 2017 में 13 सदस्यीय उच्चाधिकार कमेटी बनाई थी। कमेटी के संबंध में जारी शासनादेश पर बुधवार को गौर करने के बाद मुख्य न्यायाधीश प्रदीप नांदराजोग व न्यायमूर्ति भारती डागरे की खंडपीठ ने कहा कि यदि भविष्य में रेजिडेंट डाक्टरों को कोई समस्या होती है अथवा उनकी कोई मांग होती है तो वे इसके लिए पहले मेडिकिल शिक्षा महानिदेशालय (डीएमईआर) के निदेशक को नोटिस जारी करे। क्योंकि डीएमईआर के निदेशक उच्चाधिकार कमेटी के सदस्य सचिव है। डाक्टरों से नोटिस मिलने के बाद डीएमईआर के निदेशक दो दिन के भीतर 13 सदस्यीय उच्चाधिकार कमेटी की बैठक आयोजित करे। खंडपीठ के सामने सामाजिक कार्यकर्ता अफाक मांडवी की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई चल रही थी। याचिका में मांडवी ने मांग की थी कि महाराष्ट्र एसोसिएशन आफ रेजिडेंट डाक्टर(मार्ड) को 7 अगस्त से हड़ताल पर जाने से रोका जाए। लेकिन बाद में हड़ताल टल गई थी। मामले से जुड़े दोनों पक्षों को सुनने के बाद खंडपीठ ने कहा कि डाक्टरों व सरकार के बीच संवाद जारी रहना चाहिए। क्योंकि यदि डाक्टरों को हड़ताल के लिए जिम्मेदार ठहराया जाएगा तो सरकार को भी जिम्मेदार माना जाएगा। इसलिए औद्योगिक विवाद अधिनियम के तहत यह सुनिश्चित किया जाए की डाक्टरों व सरकार के बीच संवाद जारी रहे। और यह संवाद अर्थहीन होने चाहिए। क्योंकि संवादहीनता के चलते समस्या पैदा होती है। जब संवाद बंद हो जाता है तो कड़े निर्णय लेने की दिशा में कदम उठाए जाते है। इसलिए डाक्टरों की समस्याओं व उनसे जुड़े मुद्दों पर चर्चा के लिए उच्चाधिकार कमेटी के लोग नियमित मिले। यह कहते हुए खंडपीठ ने याचिका को समाप्त कर दिया।
Created On :   28 Aug 2019 12:33 PM GMT