मेडिकल बोर्ड गठित करेगी सरकार, गर्भपात की अनुमति के लिए नहीं काटने होंगे कोर्ट के चक्कर

Government will set up medical board at department level for abortion permission
मेडिकल बोर्ड गठित करेगी सरकार, गर्भपात की अनुमति के लिए नहीं काटने होंगे कोर्ट के चक्कर
मेडिकल बोर्ड गठित करेगी सरकार, गर्भपात की अनुमति के लिए नहीं काटने होंगे कोर्ट के चक्कर

डिजिटल डेस्क, मुंबई। बांबे हाईकोर्ट ने कहा है कि आधार कार्ड के अभाव में किसी भी बच्चे को एकीकृत बाल विकास योजना (ICDS स्कीम) के तहत मिलने वाले लाभ से वंचित न किया जाए। हाईकोर्ट ने यह बात महाराष्ट्र राज्य आंगनवाडी कर्मचारी संघ की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई के दौरान कही। याचिका में मुख्य रुप से ICDS आयुक्त की ओर से जारी किए गए परिपत्र में दिए गए निर्देशों पर आपत्ति जताई गई थी जिसमें कहा गया है कि आंगनवाडी के रिक्त पदों को न भरा जाए। जहां कम बच्चे है ऐसे आंगनवाडी केंद्रों का दूसरे आंगनवाड़ी केंद्रो में विलय किया जाए।

इस परिपत्र के माध्यम से यह भी निर्देश दिया गया  है कि ICDS योजना के तहत लाभ हासिल करने वाले बच्चों के आधार कार्ड को लिंक किया जाए।सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति अभय ओक की बेंच ने कहा परिपत्र के निर्देश को पढकर महसूस होता है कि जिन्हें ICDS स्कीम के तहत लाभ मिलता है, यदि उनके पास आधार कार्ड नहीं होगा तो उन्हें स्कीम के लाभ से वंचित कर दिया जाएगा। यह निर्देश एक तरह से इस योजना के उद्देश्य को प्रभावित करता है। सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वकील क्रांति एलसी ने कहा कि ICDS स्कीम सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के तहत बनाई गई है। इसके तहत सरकार 6 साल तक के बच्चों को पोषक आहार प्रदान करती है।

इस संबंध में ICDS आयुक्त की ओर से सितंबर 2017 को जारी किया गया निर्देश ICDS योजना के उद्देश्यों के विपरीत है। इस दलील को स्वीकार करते हुए बेंच ने कहा कि सरकार आश्वस्त करे की आधार कार्ड के अभाव मे किसी भी बच्चे को आंगनवाड़ी केंद्रों में बच्चों को दिए जानेवाले पोषक आहार से वंचित नहीं किया जाएगा। बेंच ने ICDS आयुक्त को आंगवाडियों का विलय करने से भी रोक दिया है। इसके साथ ही महिला व बाल विकास विभाग के प्रधान सचिव को आंगनवाडी केंद्रों में रिक्त पदों को भरने का भी निर्देश दिया है।

20 सप्ताह के भ्रूण गर्भपात की अनुमति के लिए अदालती चक्कर से मिलेगी मुक्ति

राज्य सरकार ने बांबे हाईकोर्ट को सूचित किया है कि जिला स्तर पर मेडिकल बोर्ड बनाने की प्रक्रिया जारी है। यदि विशेषज्ञों के अभाव में जिला स्तर पर यह बोर्ड नहीं गठित हो सका तो विभाग स्तर पर मेडिकल बोर्ड बनाने पर विचार किया जाएगा। ताकि 20 सप्ताह से अधिक के भ्रूण गर्भपात की अनुमति के लिए महिला सीधे कोर्ट आने की बजाय बोर्ड से संपर्क कर सके। सरकारी वकील अभिनंदन व्याज्ञानी ने हाईकोर्ट को यह जानकारी दी है। इससे पहले हाईकोर्ट ने शुक्रवार को नाशिक निवासी एक महिला को 30 सप्ताह के भ्रूण के गर्भपात की अनुमति प्रदान की। कोर्ट ने मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट पर गौर करने के बाद यह अनुमति दी। मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट में महिला के उस दावे को सही पाया गया गया जिसमें उसने गर्भ में पल रहे बच्चे के मस्तिष्क में विकार व विसंगति होने का दावा किया था। महिला ने याचिका में कहा था कि उसे पहले से एक बच्चा है जो मानसिक रुप से काफी कमजोर है। ऐसी स्थिति में उसके लिए दूसरे मानसिक रुप से कमजोर बच्चे को पालना काफी मुश्किल है। 

नाशिक की महिला को मिला गर्भपात की इजाजत   

सुनवाई के दौरान महिला की ओर से पैरवी कर रहे अधिवक्ता कुलदीप निकम ने कहा कि मेरे मुवक्किल को नाशिक के निजी अस्पताल में गर्भपात करने की इजाजत दी जाए। इस पर सरकारी वकील अभिनंदन व्याज्ञानी ने आपत्ति जताई। उन्होंने कहा कि महिला जिस निजी अस्पताल में गर्भपात की इजाजत मांग रही है उसे सिर्फ 20 सप्ताह से कम के भ्रूण का गर्भपात करने की इजाजत है। 20 सप्ताह से अधिक के भ्रूण का गर्भपात सिर्फ सरकारी अस्पताल में किया जा सकता है। यदि निजी अस्पतालों को 20 सप्ताह से अधिक के भ्रूण के गर्भपात की इजाजत दी गई तो इसके विपरीत परिणाम हो सकते हैं। इस बेंच ने कहा कि यदि महिला बेहतर स्वास्थ्य सेवा के लिए निजी अस्पताल में जाना चाहती है तो इसमे उसका क्या दोष है? यह कहते हुए बेंच ने महिला को निजी अस्पताल में गर्भपात कराने की अनुमति प्रदान कर दी। 
 

Created On :   21 Sep 2018 3:29 PM GMT

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