दो दिन में शुरु होंगे बाल सुलभ न्यायालय, एमपीएससी पर लगा 1 लाख जुर्माना

HC imposes 1 lakh fine on MPSC, rebukes on unnecessary petition
दो दिन में शुरु होंगे बाल सुलभ न्यायालय, एमपीएससी पर लगा 1 लाख जुर्माना
दो दिन में शुरु होंगे बाल सुलभ न्यायालय, एमपीएससी पर लगा 1 लाख जुर्माना

डिजिटल डेस्क, मुंबई। बांबे हाईकोर्ट ने अनावश्यक याचिका दायर करने के लिए महाराष्ट्र राज्य लोक सेवा आयोग (एमपीएससी) पर एक लाख रुपए का जुर्माना लगाया है। हाईकोर्ट ने आयोग को जुर्माने की रकम दस दिन के भीतर टाटा मेमोरियल अस्पताल में जमा करने का निर्देश दिया है। मामला सरकारी कर्मचारी वर्षा जल्टे की वरिष्ठता से जुड़ा है। महाराष्ट्र प्रशासकीय न्यायाधिकरण (मैट) ने जल्टे के पक्ष में फैसला सुनाया था। जिसके खिलाफ एमपीएससी ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। दरअसल आयोग ने वर्ष 2001 में विभिन्न प्रशासकीय पदों के लिए ली गई परीक्षा के बाद चयनित उम्मदीवारों की सूची तैयार कि थी। इस परीक्षा में तीन महिला अभ्यर्थी को एक जैसे अंक मिले थे। आयोग ने सिर्फ दो महिला अभ्यर्थियों के नाम नियुक्ति के लिए भेजा था। इससे असंतुष्ठ जल्टे ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की। हाईकोर्ट के हस्तक्षेप के बाद जल्टे का नाम नियुक्ति के लिए सरकार के पास भेजा गया। इस बीच एक जैसे अंक पाने वाली दो महिलाओं को वरिष्ठता प्रदान की गई। लेकिन जल्टे को इन दो महिलाओं की तरह वरिष्ठता नहीं दी गई। इसके बाद जल्टे ने मैट में आवेदन दायर किया। आवेदन पर सुनवाई के बाद मैट ने जल्टे के पक्ष में फैसला सुनाया। जिसके खिलाफ आयोग ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की। न्यायमूर्ति भूषण गवई व न्यायमूर्ति एनजे जमादार की खंडपीठ के सामने याचिका पर सुनवाई हुई। मामले से जुड़े दोनों पक्षों को सुनने के बाद खंडपीठ ने कहा कि एमपीएससी का काम सिर्फ पदों पर नियुक्ति के  लिए नामों की सिफारिश करना है। नियुक्ति करना सरकार का काम है। ऐसे में इस मामले में एमपीएससी ने अनावश्यक रुप से हाईकोर्ट में याचिका दायर की है। यह एक तरह से सिर्फ कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग है। क्योंकि मैट ने राज्य सरकार को निर्देश जारी किया था। खंडपीठ ने कहा कि एमपीएससी ने जल्टे को सबक सीखने के लिए हाईकोर्ट में याचिका दायर की। क्योंकि इससे पहले जल्टे ने न्याय के लिए मैट मे एमपीएससी के खिलाफ याचिका दायर की थी। खंडपीठ ने कहा कि एमपीएससी को अपनी जेब से मुकदमे का खर्च नहीं करना पड़ता है सिर्फ इसलिए उसे कोर्ट में अनावश्यक याचिका नहीं दायर करनी चाहिए। खास तौर से तब जब उनका किसी विषय से संबंध न हो। इसलिए कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग करनेवाली एमपीएससी की याचिका को खारिज किया जाता है और उस पर एक लाख  रुपए का जुर्माना लगाया जाता है। 

दो दिन में शुरु होंगे बाल सुलभ न्यायालय-  सरकार ने दी जानकारी

इसके अलावा मुंबई में दो बाल सुलभ न्यायालय बनकर तैयार हो गए हैं। दो दिन के भीतर इन दोनों कोर्ट की शुरुआत हो जाएगी। मंगलवार को सहायक सरकारी वकील मनीष पाबले ने बांबे हाईकोर्ट को यह जानकारी दी है। उन्होंने कहा कि मुंबई सिटी सिविल कोर्ट और दिंडोशी कोर्ट में एक-एक बाल सुलभ न्यायालय बन कर तैयार है। इन अदालतों में मुख्य रुप से बच्चों के यौन उत्पीड़न से जुड़े मामले चलाए जाएगा। जरुरत पड़ने पर दुष्कर्म की शिकार पीड़िता की गवाही के लिए भी इसका इस्तेमाल हो सकेगा। बाल सुलभ न्यायालयों में ऐसी व्यवस्था बनाई गई है, जिसमें यौन उत्पीड़न का शिकार बच्चे आरोपी को देखे बगैर अपनी बात न्यायाधीश के सामने बेखौफ कह सकेंगे। गौरतलब है कि हाईकोर्ट ने खुद इस मामले का संज्ञान लेकर इस मुद्दे को जनहित याचिका में परिवर्तित किया है। मुख्य न्यायाधीश नरेश पाटील की खंडपीठ ने सरकारी वकील से मिली उपरोक्त जानकारी के बाद मामले की सुनवाई 5 अप्रैल तक के लिए स्थगित कर दी। 

ससुर गोवा भाजपा के नेता, इसलिए मुंबई स्थानांनतरित हुआ अदालती मामला 

वहीं उधर एक मामले में महिला ने हाईकोर्ट से गुहार लगाई है। ससुर गोवा प्रदेश भारतीय जनता पार्टी के उपाध्यक्ष है, इसलिए वैवाहिक विवाद से जुड़े मामले की गोवा में निष्पक्ष सुनवाई नहीं होगी। भाजपा नेता कि बहु की इस आशंका के चलते बांबे हाईकोर्ट ने उसके पति की ओर से गोवा में दायर किए गए सारे मामले गोवा से मुंबई की पारिवारिक अदालत में स्थानांतरित कर दिया है। महिला ने याचिका में दावा किया था कि उसके लिए मुंबई से मुकदमे की सुनवाई के लिए गोवा जा पाना संभव नहीं है। उसके दो बच्चे यहां पढ़ रहे हैं। इसके अलावा उसके ससुर गोवा में भारतीय जनता पार्टी के उपाध्यक्ष है। उनका गोवा के प्रशासन पर प्रभाव है। वे गोवा में प्रेस कॉन्फ्रैप कर बदनामी कर रहे हैं। ऐसे में मुझे नहीं लगता कि मेरे मामले की गोवा में निष्पक्ष सुनवाई हो पाएगी। इसलिए मेरे पति द्वारा मेरे खिलाफ सारे मामले मुंबई के बांद्रा कोर्ट में स्थनांतरित कर दिया जाए। आवेदन में महिला ने अपने पति व सास-ससुर द्वारा प्रताड़ित किए जाने की बात भी कही थी। महिला के पति ने अपनी पत्नी के खिलाफ विवाह को समाप्त करने को लेकर गोवा की पणजी कोर्ट में आवेदन दायर किया है। वहीं महिला के पति ने दावा किया कि मुंबई की पारिवारिक कोर्ट को उसके मामले की सुनवाई का अधिकार नहीं है। क्योंकि उसका विवाह गोवा में हुआ है। इसके अलावा मेरा विवाह गोवा पुर्तगाल सिविल कोड के तहत पंजीकृत है, इसलिए वैवाहिक विवाद से जुड़े मामले की सुनवाई मुंबई की बजाय गोवा में ही होने दी जाए। मैं अपने बच्चों से न मिल सकुं इसलिए मेरी पत्नी गोवा से मुंबई आ गई हैं। जहां तक बात गोवा आने-जाने की है तो मैं अपनी पत्नी का किराए खर्च देने को तैयार हूं। न्यायमूर्ति एसके शिंदे ने मामले से जुड़े दोनों पक्षों को सुनने के बाद कहा कि हाईकोर्ट के पास मामले की सुनवाई एक जगह से दूसरी जगह स्थानांतरित करने का अधिकार है। 
 

Created On :   2 April 2019 2:26 PM GMT

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