राम जन्मभूमि मध्यस्थता : हिंदू महासभा और निर्मोही अखाड़े ने दिए 3 जजों के नाम

राम जन्मभूमि मध्यस्थता : हिंदू महासभा और निर्मोही अखाड़े ने दिए 3 जजों के नाम

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। अयोध्या मामले का निपटारा फिर बातचीत पर आकर अटक गया है। राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद मामले में मध्यस्थता पर सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है। हिंदू महासभा ने मध्यस्थता के लिए तीन नाम सुझाए हैं, जिनमें पूर्व सीजेआई दीपक मिश्रा, पूर्व जज जस्टिस एके पटनायक और पूर्व सीजेआई जस्टिस जे.एस खेहर का नाम शामिल है। इसके अलावा निर्मोही अखाड़े ने जस्टिस एके पटनायक, जस्टिस कूरियन जोसेफ और जीएस सिंघवी का नाम दिया है।

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को सुनवाई के दौरान दोनों पक्षों का तर्क सुनने के बाद ये फैसला सुरक्षित रख लिया है। पांच जजों की संविधान पीठ के समक्ष इसकी सुनवाई हुई। कोर्ट को यह तय करना था कि अयोध्या भूमि विवाद मामले का मध्यस्थता के जरिए समाधान किया जा सकता है या नहीं।इस दौरान हिंदू महासभा ने कहा, समझौते के लिए पब्लिक नोटिस का जारी होना जरूरी है। वहीं जस्टिस बोबड़े ने इस विवाद को सिर्फ जमीन का नहीं बल्कि भावनाओं से जुड़ा मुद्दा बताया है। 
 


सिर्फ जमीन विवाद नहीं, भावनाओं से जुड़ा मामला है- SC
हिंदू महासभा ने पीठ से कहा, जनता मध्यस्थता के लिए तैयार नहीं होगी। इस पर जस्टिस बोबड़े ने हिंदू महासभा से कहा कि, आप कह रहे हैं कि समझौता फेल हो जाएगा। आप प्री जज कैसे कर सकते हैं। संविधान पीठ ने हिन्दू महासभा से कहा है कि, आप अनुमान लगा रहे है कि समझौता नहीं होगा। यह सिर्फ जमीन का विवाद नहीं है, ये भावनाओं से जुड़ा मामला है। हम देश की बॉडी पॉलिटिक्स के असर को जानते हैं। ये दिल दिमाग और हीलिंग का मसला है।

 


हिंदू महासभा ने मध्यस्थता का विरोध किया। कोर्ट में हिंदू पक्ष ने कहा, मध्यस्थता का कोई अर्थ नहीं होगा क्योंकि हिंदू इसे एक भावुक और धार्मिक मुद्दा मानते हैं। इस पर न्यायमूर्ति एसए बोबडे ने कहा, अतीत पर हमारा कोई नियंत्रण नहीं है। हम जो कर सकते हैं वह केवल वर्तमान के बारे में है। जस्टिस बोबडे ने कहा, इसमें केवल एक मेडिएटर की जरूरत नहीं है, बल्कि मेडिएटर्स का पूरा पैनल जरूरी है।
 

सुप्रीम कोर्ट ने सभी पक्षकारों से मेडिएशन के लिए पैनल के नाम सुझाने को कहा है। सुनवाई के दौरान रामलला के वकील ने कहा रामजन्म भूमि की जगह के मामले में हम समझौते के लिए तैयार नही हैं। हिन्दू, मस्जिद कहीं और बनाने के लिए फंड देने को तैयार हैं। मुस्लिम पक्षकारों के वकील राजीव धवन ने कहा, मुस्लिम पक्ष मध्यस्थता के लिए सहमत है और किसी भी तरह का सुलह या समझौता पार्टियों को बांध देगा। निर्मोही अखाड़े ने मध्यस्थता के पक्ष में दलील दी है। इसके साथ सुन्नी वक्फ बोर्ड ने भी मध्यस्थता का पक्ष लिया। जबकि हिंदू महासभा इसके विरोध में है।

 


दो पक्षों के बीच का नहीं बल्कि दो समुदायों से संबंधित है- SC
जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा, अयोध्या विवाद दो पक्षों के बीच का विवाद नहीं बल्कि यह दो समुदायों से संबंधित है। हम उन्हें मध्यस्थता रेसोलुशन में कैसे बाध्य कर सकते हैं? ये बेहतर होगा कि आपसी बातचीत से मसला हल हो पर कैसे? ये अहम सवाल है। मामले की सुनवाई के दौरान मुस्लिम पक्षकार ने कहा मेडिएशन के लिए सबकी सहमति जरूरी नहीं। इस पर जज चंद्रचूड़ ने कहा, यह विवाद दो समुदाय का है और सबको इसके लिए तैयार करना आसान काम नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा, उसका मानना है अगर मध्यस्थता की प्रक्रिया शुरू होती है तो इसके घटनाक्रमों पर मीडिया रिपोर्टिंग पूरी तरह से बैन होनी चाहिए। 


पांच जजों की बेंच ने दिया था बातचीत का सुझाव
पिछली सुनवाई में चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच जजों की संविधान पीठ ने सुझाव दिया था कि, दोनों पक्षकार बातचीत का रास्ता निकालने पर विचार करें। अगर बातचीत की थोड़ी बहुत गुंजाइश भी है, तो उसका प्रयास होना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था, दोनों पक्ष इस मामले में कोर्ट को अपने मत से अवगत कराएं। जस्टिस बोबड़े ने अपनी टिप्पणी में कहा था "यह कोई निजी संपत्ति को लेकर विवाद नहीं है, बल्कि पूजा-अर्चना के अधिकार से जुड़ा मामला है। अगर समझौते के जरिए एक प्रतिशत भी इस मामले के सुलझने की गुंजाइश हो तो इसकी कोशिश होनी चाहिए।

इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ दायर हैं याचिकाएं
गौरतलब है कि इलाहाबाद हाई कोर्ट द्वारा 2010 में सुनाए गए फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में कुल 14 याचिकाएं दायर की गई हैं। हाई कोर्ट ने अयोध्या में 2.77 एकड़ विवादित भूमि को तीन हिस्सों में सुन्नी वक्फ बोर्ड, राम लला और निर्मोही अखाड़े के बीच बांटने का आदेश दिया था, लेकिन अभी तक इस मामले का निपटारा नहीं हो पाया है।

Created On :   6 March 2019 2:32 AM GMT

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