रात में मेट्रो निर्माण को हाईकोर्ट से इजाजत, नदियों में प्रदूषण पर सरकार से पूछा- कौन करेगा देखभाल

High court allowed overnight construction work of metro
रात में मेट्रो निर्माण को हाईकोर्ट से इजाजत, नदियों में प्रदूषण पर सरकार से पूछा- कौन करेगा देखभाल
रात में मेट्रो निर्माण को हाईकोर्ट से इजाजत, नदियों में प्रदूषण पर सरकार से पूछा- कौन करेगा देखभाल

डिजिटल डेस्क, मुंबई। बांबे हाईकोर्ट ने शुक्रवार को मुंबई मेट्रो रेल कार्पोरेशन लिमिटेड (एमएमआरसीएल) को रात के समय कफपरेड इलाके में मेट्रो का निर्माण कार्य करने की अनुमति प्रदान कर दी है। कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश नरेश पाटील व न्यायमूर्ति गिरीष कुलकर्णी की बेंच ने यह अनुमति देते हुए कहा कार्य के दौरान एमएमआरसीएल व ठेकेदार एल एंड टी ध्वनि प्रदूषण को रोकने के लिए नीरी की सिफारिशों को प्रभावी तरीके से लागू करे। बेंच ने कहा कि एमएमआरसीएल जल्द से जल्द ऐसी व्यवस्था बनाए जहां ध्वनि प्रदूषण से जुड़े नियमों का उल्लंघन होने पर लोग शिकायत कर सके। रात दस बजे के बाद कफपरेड इलाके में मेट्रो के टनलिंग व बोरिंग का काम करने की अनुमति दिए जाने की मांग को लेकर एमएमआरसीएल ने हाईकोर्ट में आवेदन दायर किया गया था।

केंद्र-राज्य कुछ नहीं कर रहे तो नदियों की देखभाल करेगा कौन?
उधर नदियों के संरक्षण को लेकर केंद्र व राज्य सरकार के रुख से नाराज बांबे हाईकोर्ट ने पूछा है कि आखिर नदियों की सुरक्षा व देखभाल कौन करेगा? क्योंकि केंद्र व राज्य सरकार दोनों इस मामले में कुछ नहीं कर रहे हैं। राज्य सरकार के पास नदियों के प्रदूषण को रोकने के लिए कोई नीति नहीं जबकि केंद्र सरकार इस तरह की नीति तैयार नहीं कर रही। ऐसी स्थिति में पर्यावरण संतुलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली नदियों की सुरक्षा व देखभाल कौन करेगा? क्या जब तक केंद्र सरकार नदियों के नियमन को लेकर नीति नहीं बनाती है तब तक नदियों को प्रदूषित होने दिया जाए?

राज्य सरकार कब तक केंद्र सरकार की नीति का इंतजार करेगी वह खुद इस दिशा में पहल क्यों नहीं करती? मामले को लेकर राज्य सरकार की निष्क्रियता से नाराज न्यायमूर्ति शांतनु केमकर व न्यायमूर्ति सारंग कोतवाल की बेंच ने कहा कि केंद्र सरकार तत्काल नदियों के संरक्षण के लिए जरुरी कदम उठाए और राज्य सरकार हमें बताए कि उसने नदियों के किनारे निर्माण को रोकने व उसे प्रदूषित होने से रोकने की दिशा में अब तक कौन से कदम उठाए हैं।

बेंच के सामने वन शक्ति नामक गैर सरकारी संस्था की ओर से दायर जनहित याचिका पर सुनवाई चल रही है। याचिका में दावा किया गया है नदियों के किनारे बड़े पैमाने पर होटल व रिसार्ट बन रहे हैं। जिसके चलते आम आदमी नदियों तक पहुंच नहीं पा रहा है। साथ ही नदियों में प्रदूषण तेजी से बढ़ता जा रहा है। इसके अलावा नेशनल ग्रीन ट्रिब्युनल ने साल 2015 में राज्य सरकार को निर्देश दिया था कि वह नदियों की सरहद व बाढ़ क्षेत्र को चिन्हित करे। सरकार ने ट्रिब्युनल के निर्देश को लागू करने की दिशा में कोई भी प्रभावी कदम नहीं उठाए गए।

याचिका में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की एक रिपोर्ट के हवाले से कहा गया है कि राज्य में प्रदूषित नदियों की संख्या बढ़ रही है। पहले 49 नदिया प्रदूषित थी अब यह आकड़ा बढ़कर 56 पहुंच गया है। नदियों के किनारे हो रहे निर्माण कार्य के चलते बाढ़ की संभावना भी बढ़ गई है। इन दलीलों को सुनने के बाद बेंच ने कहा कि हम नहीं चाहते कि सारे निर्माण कार्य पर रोक लगा दी जाए, लेकिन सरकार ट्रिब्युनल के आदेश को लागू करे और नदियों के प्रदूषण को रोकने के लिए प्रभावी कदम उठाए। क्योंकि नदियों का प्रदूषण मुक्त होना आम आदमी और पर्यावरण के हित में है, इसलिए जब तक केंद्र सरकार  की नदियों के नियमन से जुड़ी नीति तय नहीं हो जाती उस अवधि तक राज्य सरकार नदियों को बचाने के लिए जरुरी कदम उठाए।

नीति बनाने जानकारी जुटा रही केंद्र सरकार
इस बीच केंद्र सरकार की ओर से पैरवी कर रहे अधिवक्ता ने कहा कि मामले जुड़ा विभाग जरुरी आकड़े व जानकारी जुटा रहा है। कई राज्यों से हमे जानकारी मिल चुकी है कई जगहों से जानकारी आनी बाकी है। सारी जानकारी मिलने के बाद जल्द ही नदियों को लेकर नीति तैयार कर ली जाएगी। वहीं सरकारी वकील मिलिंद मोरे ने कहा हम इस विषय पर केंद्र सरकार की नीति का इंतजार कर रहे है। मामले से जुड़े सभी पक्षों को सुनने के बाद बेंच ने मामले की सुनवाई 21 सितंबर तक के लिए स्थगित कर दी और याचिकाकर्ता की ओर से पैरवी कर वरिष्ठ अधिवक्ता गायत्री सिंह को नदियों को प्रदूषण मुक्त रखने के लिए जरुरी सुझाव देने को कहा। 

Created On :   24 Aug 2018 3:56 PM GMT

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