ध्वनि प्रदूषण के मुद्दे पर पुलिस के रुख पर हाईकोर्ट ने नाराज, आरक्षण पर भी हुई सुनवाई

High court angry on work style of police in noise pollution issue
ध्वनि प्रदूषण के मुद्दे पर पुलिस के रुख पर हाईकोर्ट ने नाराज, आरक्षण पर भी हुई सुनवाई
ध्वनि प्रदूषण के मुद्दे पर पुलिस के रुख पर हाईकोर्ट ने नाराज, आरक्षण पर भी हुई सुनवाई

डिजिटल डेस्क, मुंबई। बांबे हाईकोर्ट ने ध्वनि प्रदूषण से जुड़ी शिकायतों की कार्रवाई को लेकर मुंबई पुलिस आयुक्त के हलफनामे पर असंतोष व्यक्त किया है। हाईकोर्ट ने बुधवार को इस मामले को लेकर पुलिस आयुक्त के हलफनामे को दोबारा लौटा दिया है। राजनीति पार्टियों से जुड़े मंडलों के ध्वनि प्रदूषण से जुड़ी  शिकायतों को लेकर दिए गए विवादित तथ्य पर हाईकोर्ट ने पुलिस को कड़ी फटकार लगाई। हाईकोर्ट ने कहा कि इस बात को ध्यान में रखा जाए कि कोर्ट में मुंबई पुलिस आयुक्त का हलफनामा पेश किया जा रहा है। यदि तीसरी बार हलफनामा संतोषजनक नहीं मिला तो कड़ा रुख अपनाया जाएगा। न्यायमूर्ति अभय ओक व न्यायमूर्ति एमएस शंकलेचा की खंडपीठ ने कहा कि यदि पुलिस राजनीतिक दलों को बचाना चाहती है तो बचाए लेकिन इससे उसकी ही मुसीबत बढेगी। इस मामले में पुलिस का रुख सरकार के खराब कामकाज को दर्शाता है। खंडपीठ ने मामले की पिछली सुनवाई के दौरान पिछले साल गणेशोतस्व व  ईद ए मिलाद के दौरान की गई ध्वनि प्रदूषण को लेकर की गई शिकायतों पर कार्रवाई की जानकारी मांगी थी। बुधवार को सरकारी वकील ने सुनवाई के दौरान शिकायतों पर सवाल उठाया? इस पर खंडपीठ ने कहा कि क्या ध्वनि प्रदूषण से जुड़ी शिकायते पुलिस स्टेशन के रिकार्ड की नहीं है? खंडपीठ ने कहा कि इस मामले में सरकारी वकील का रुख बेहद हैरानी भरा है। खंडपीठ ने फिलहाल मामले की सुनवाई 26 मार्च तक के लिए स्थगित कर दी है। 

आरक्षण की 50 प्रतिशत लक्ष्मण रेखा को किसी राज्य ने पार नहीं किया

आरक्षण को लेकर सुप्रीम कोर्ट द्वारा तय की गई 50 प्रतिशत आरक्षण की लक्ष्मण रेखा को तमीलनाडु को छोड़कर देश के किसी भी राज्य ने नहीं पार किया है। बुधवार को आरक्षण के विरोध में बांबे हाईकोर्ट में यह दलील दी गई। याचिकाकर्ता की ओर से पैरवी कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता अरविंद दातार ने कहा कि तमिलनाडू ने आरक्षण की 50 प्रतिशत की लक्ष्मण रेखा का उल्लंघन किया तो किया है लेकिन उसका मामला अभी भी सुप्रीम कोर्ट में प्रलंबित है। सुप्रीम कोर्ट ने इंदिरा सहानी मामले में साफ किया है कि अतिवंचित समाज व दुर्गम इलाके में रहनेवाले लोगों के लिए अपवाद स्वरुप आरक्षण देने की अनुमति दी है। इसके अलावा किसी भी स्थिति में आरक्षण की 50 प्रतिशत की लक्ष्मण रेखा को पार नहीं किया जा सकता है। इससे पहले गुर्जर व पटेल को आरक्षण देने लिए आरक्षण की लक्ष्मण रेखा को पार किया गया था लेकिन इसमे सफलता नहीं मिली। आंध्रा प्रदेश में मुस्लिमों को पांच प्रतिशत आरक्षण दिया गया। जिससे आरक्षण का दायरा बढकर 51 प्रतिशत हो गया था लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इसे स्वीकार नहीं किया। राज्य सरकार ने संविधान के अनुच्छेद 16(4) के तहत मराठा समुदाय को शिक्षा व नौकरी में 16 प्रतिशत आरक्षण प्रदान किया है। जिसके खिलाफ महानगर निवासी संजीत शुक्ला ने हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की है। न्यायमूर्ति आरवी मोरे व न्यायमूर्ति भारती डागरे की खंडपीठ के सामने श्री दातार ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने  सिर्फ बेहद अपवाद जनक स्थिति में अतिवंचितों को आरक्षण देने की सहूलियत दी है। राज्य सरकार ने राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग की रिपोर्ट के आधार पर मराठा समुदाय को आरक्षण दिया है जो आरक्षण को लेकर सुप्रीम कोर्ट द्वारा तय की गई कसौटी पर खरा नहीं उतरता है। इस दौरान उन्होंने साफ किया कि पिछड़ा वर्ग की रिपोर्ट के आधार पर आरक्षण को वैध ठहराना राज्य के लिए खतरनाक साबित हो सकता है। 
 

Created On :   20 March 2019 2:43 PM GMT

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