हाईकोर्ट फिल्म ‘चिडियाखाना’ को लेकर पूछा - शुतुरमुर्ग जैसा व्यवहार क्यों कर रहा सेंसर बोर्ड

High court asked on film Chidiya Khana - Why censor Board behaves like ostrich
हाईकोर्ट फिल्म ‘चिडियाखाना’ को लेकर पूछा - शुतुरमुर्ग जैसा व्यवहार क्यों कर रहा सेंसर बोर्ड
हाईकोर्ट फिल्म ‘चिडियाखाना’ को लेकर पूछा - शुतुरमुर्ग जैसा व्यवहार क्यों कर रहा सेंसर बोर्ड

डिजिटल डेस्क, मुंबई। बांबे हाईकोर्ट ने बाल फिल्म ‘चिडियाखाना’ को यूनिवर्सल (यू) प्रमाणपत्र न दिए जाने को लेकर केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (सेंसर बोर्ड) को कड़ी फटकार लगाई है। हाईकोर्ट ने कहा कि बोर्ड यह तय नहीं करेगा कि कौन क्या देखना चाहता है और क्या नहीं। बोर्ड के रुख से नाराज कोर्ट ने बोर्ड को शुतुरमुर्ग तक कह दिया। न्यायमूर्ति एससी धर्माधिकारी व न्यायमूर्ति गौतम पटेल की खंडपीठ ने कहा कि हम सेंसर बोर्ड की भूमिका को नए सिरे से दोबारा परिभाषित करेंगे। क्योंकि वह महसूस करता है कि उसे ही सबके लिए फैसला करने का अधिकार है। खंडपीठ के सामने चिल्ड्रन फिल्म सोसायटी की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई चल रही है। याचिका में फिल्म सोसायटी ने मांग कि है कि फिल्म ट्रिब्यूनल बोर्ड को निर्देश दिया जाए कि वह उसकी यू सर्टिफिकेट दिए जाने की मांग को लेकर दायर आवेदन पर सुनवाई करे। सेंसर बोर्ड ने चिल्ड्रेन फिल्म सोसायटी की फिल्म ‘चिडियाखाना’ को यूए प्रमाणपत्र दिया है। जबकि फिल्म सोसायटी यू प्रमाणपत्र चाहती है। सेंसर बोर्ड के अनुसार फिल्म में कई गाली-गलौच वाले संवाद और कई आपत्तिजनक दृश्य हैं, इसलिए इस फिल्म को यूए प्रमाणपत्र दिया गया है। जबकि फिल्म सोसायटी की ओर से पैरवी कर रहे अधिवक्त यशोदीप देशमुख ने इसका खंडन करते हुए फिल्म के लिए यू सर्टिफिकेट की मांग की ताकि वह इसे स्कूलों में बच्चों को दिखा सके। उन्होंने कहा कि हम सेंसर बोर्ड की आपत्तियों के अनुसार वह दो दृश्य-संवाद हटाने के लिए तैयार हैं। इस पर खंडपीठ ने कहा कि ‘क्या सेंसर बोर्ड को यह महसूस होता है कि फिल्म से आपत्तिजनक दृश्य-संवाद हटा लेने से वह चीज समाज से पूरी तरह खत्म हो जाएगी? क्या आप (सेंसर बोर्ड) शुतुरमुर्ग हैं जो अपनी चोच बालू में गडाकर सोचता है कि उसके आसपास कोई खतरा नहीं है।’ 

आपत्तिजनक दृश्य हटाने पर अड़ा सेंसर बोर्ड

सुनवाई के दौरान सेंसर बोर्ड के वकील ने कहा कि हम आपत्तिजनक दृश्य हटाने के बाद भी फिल्म को ‘यूए’ प्रमाणपत्र ही देंगे। इस पर खंडपीठ ने कहा कि बोर्ड  ऐसे कैसे कह सकता है? सेंसर बोर्ड सिर्फ प्रमाणनन बोर्ड है उसके पास सेंसरशीप का अधिकार नहीं है। वह यह तय नहीं कर सकता है कि कौन क्या देखना चाहता है। किसी ने बोर्ड को बौध्दिक नैतिकता तय करने का अधिकार नहीं दिया है जो बोर्ड यह तय करे की कौन क्या देखेगा? ऐसा लगता है कि हमे बोर्ड की भूमिका को दोबारा परिभाषित करना पड़ेगा। बोर्ड ने तय कर लिया है कि सारी आबादी बचकानी व मूर्ख है। सिर्फ बोर्ड ही बौध्दिक रुप से सबके लिए यह तय करने के लिए सक्षम है कि कौन क्या देखेगा। यदि फिल्म में नस्लवाद, भेदभाव बाल मजदूरी व नशे के दुष्परिणाम को मुद्दा बनाया गया है तो फिल्म में इन मुद्दों को समझाना भी पड़ेगा। बिना दृश्यों के यह मुद्दे बच्चों को कैसे समझाए जाएंगे। क्या यह बच्चों को बताना जरुरी नहीं है कि नस्लवाद व भेदभाव गलत चीजे हैं। 

सुनवाई 5 अगस्त तक के लिए स्थगित

खंडपीठ ने फिलहाल मामले की सुनवाई 5 अगस्त तक के लिए स्थगित कर दी है औह अगली सुनवाई के दौरान सेंसर बोर्ड के क्षेत्रिय अधिकारी (आरओ) को हलफनामा दायर करने का निर्देश दिया है। हलफनामे में आर.ओ. को बाल फिल्म को प्रमाणपत्र जारी करने को लेकर तय की गई नीति की जानकारी देने के लिए कहा गया है। चिडियाखाना फिल्म में मूल रुप से एक बिहार के एक लड़के की कहानी दिखाई गई है जो फुटबाल खेलने के अपने सपने को पूरा करने के लिए मुंबई आया है। 

 

Created On :   5 July 2019 3:12 PM GMT

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