हाईकोर्ट : मनपा की ओर से पार्किंग को लेकर तय जुर्माने के खिलाफ याचिका दायर, वयस्क पीड़िता को इच्छा के बिना सुधारगृह में नहीं रख सकते

High Court: Petition filed against fine on parking of Municipal Corporation
हाईकोर्ट : मनपा की ओर से पार्किंग को लेकर तय जुर्माने के खिलाफ याचिका दायर, वयस्क पीड़िता को इच्छा के बिना सुधारगृह में नहीं रख सकते
हाईकोर्ट : मनपा की ओर से पार्किंग को लेकर तय जुर्माने के खिलाफ याचिका दायर, वयस्क पीड़िता को इच्छा के बिना सुधारगृह में नहीं रख सकते

डिजिटल डेस्क, मुंबई। अवैध पार्किंग  को लेकर मुंबई महानगरपालिका की ओर से तय किए गए जुर्माने के खिलाफ बांबे हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की गई है। दक्षिण मुंबई की चंद्रलोक हाउसिंग सोसायटी की ओर से दायर इस याचिका पर हाईकोर्ट ने सोमवार को सुनवाई होने की उम्मीद है। मनपा ने हाल ही में अवैध पार्किंग पर शिकंजा कसने के लिए जुर्माने की रकम में बढोत्तरी की है। जिसके तहत पार्किंग लाट के पांच सौ मीटर के दायरे में सड़क पर दुपहिया वाहन पार्क करने पर पांच हजार रुपए जबकि चार पाहिया वाहन के लिए दस हजार रुपए जुर्माने की रकम तय की है। याचिका में जुर्माने की रकम को मनमानीपूर्ण बताया गया है। याचिका में कहा गया है कि मनपा जुर्माने के नाम पर नागरिकों से वसूली कर रही है। इसके साथ जुर्माना तय करने के अपने अधिकार का दुरुपयोग कर रही है। क्योंकि जुर्माने की रकम पूरी तरह से अनुचित है। क्योंकि मनपा ने नागरिकों को महानगर में पार्किंग की सुविधा देने की दिशा में बिल्कुल भी पर्याप्त कदम नहीं उठाए है। याचिका में कहा गया है कि जुर्माने की रकम लापरवाही से गाड़ी चलाने व नशे के प्रभाव में गाड़ी चलाने के लिए तय किए जुर्माने से अधिक है। इस याचिका पर सोमवार को सुनवाई होने की संभावना है। 

वयस्क पीड़िता की इच्छा के बिना उसे सुधारगृह में नहीं रखा जा सकता

वहीं वयस्क महिला को उसकी इच्छा के विरुध्द सुधार गृह में नहीं रखा जा सकता है। बांबे हाईकोर्ट ने वेश्यावृत्ति के रैकेट से छुडाई गई एक पीड़िता को सुधार गृह से बरी करने का आदेश देते हुए यह बात कही है। न्यायमूर्ति एसएस शिंदे ने मामले से जुड़े तथ्यों पर गौर करने के बाद कहा कि देह व्यापार से छुडाई गई वयस्क पीडिता को उसकी इच्छा के विपरीत सुधार गृह में नहीं रखा जा सकता है। इससे पहले खुद को पीड़िता की मुंहबोली मां बतानेवाली पंढरपुर में रहनेवाली महिला ने मैजिस्ट्रेट कोर्ट व सत्र न्यायालय में पीड़िता को सुधारगृह से छोड़ने की मांग को लेकर आवेदन किया था। लेकिन निचली अदालत ने महिला को राहत देने से इंकार कर दिया था। और पीड़िता को पिछले साल जनवरी में सुधार गृह में एक साल के लिए रखने का निर्देश दिया था। हाईकोर्ट में दायर याचिका में महिला ने कहा था कि पीड़िता को उसने अपनी बेटी की तरह पाला है वह उसकी मां की तरह है इसलिए उसे पीडिता की कस्टडी सौप दी जाए। सरकारी वकील ने महिला की याचिका का विरोध किया जबकि याचिकाकर्ता के वकील सत्यव्रत जोशी ने कहा कि मेरी मुवक्किल की पीडिता को देह व्यापार में भेजने को लेकर कोई भूमिका नहीं है। इसलिए मेरी मुवक्किल को पीड़िता की कस्टडी सौपने में कोई नुकसान नहीं है।  वेश्यावृत्ति से छुडाई गई लड़की को कानून की नजर में पीड़िता के रुप में देखा जाता है। इसलिए उनके खिलाफ मुकदमा नहीं चलाया जाता है। इसके अलावा पीड़िता का एक डेढ साथ का बच्चा है। ऐसे में उसे जबरन सुधार गृह में रखना उसके मौलिक अधिकार का उल्लंघन होगा। न्यायमूर्ति शिंदे ने याचिकाकर्ता की दलीलों को स्वीकार करते हुए कहा कि पीडिता वयस्क है। ऐसे में यदि उसे उसकी इच्छा के विरुध्द सुधार गृह में रखा जाता है तो यह उसके मौलिक अधिकार का हनन व कानून के तहत उसे मिली स्वतंत्रता का उल्लंघन होगा। इसलिए पीड़िता को सुधारगृह में रहने के लिए नहीं कहा जा सकता है। यह कहते हुए न्यायमूर्ति ने निचली अदालत के आदेश को रद्द कर दिया। खंडपीठ ने पीड़िता की कस्टडी महिला को देने से इंकार कर दिया और कहा कि पीड़िता जहां चाहे वहां जाने के लिए स्वतंत्र है। 
 

Created On :   12 July 2019 4:40 PM GMT

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