Makar Sankranti: ये है मकर संक्रांति का महत्व और शुभ मुहूर्त
डिजिटल डेस्क, भोपाल। मकर संक्रांति का पावन त्योहार मनुष्य के जीवन में एक बदलाव के रूप में देखा जाता है। पौष मास में भगवान सूर्यदेव अपने पुत्र शनि देव से मिलने मकर राशि में पहुंचते हैं, तो मकर संक्रांति मनाई जाती है। शनि देव को मकर राशि का स्वामी माना जाता है। इस पर्व पर गुड़ और तिल लगाकर नर्मदा में स्नान करना लाभदायी होता है। इसके बाद दान संक्रांति में गुड़, तेल, कंबल, फल, छाता आदि दान करने से लाभ मिलता है और पुण्यफल की प्राप्ति होती है। इस पर्व से शुभ कार्यों की शुरुआत होती है। उत्तरायन में मृत्यु होने से मोक्ष प्राप्ति की संभावना रहती है।
सूर्य के एक राशि से दूसरी राशि में जाने को ही संक्रांति कहते हैं। वैसे तो सूर्य संक्रांति 12 प्रकार की होती हैं, लेकिन इनमें से 4 संक्रांति ही महत्वपूर्ण मानी गई हैं। इनमें मेष, कर्क, तुला, मकर संक्रांति हैं। मकर संक्रांति के शुभ मुहूर्त में स्नानए दान और पुण्य के शुभ समय का विशेष महत्व है। एक संक्रांति से दूसरी संक्रांति के बीच का समय ही सौर मास कहलाता है।
पूरे भारत देश में इस त्योहार को मकर संक्रांति के नाम से ही जाना जाता है, मगर इस त्योहार को मनाने का तरीका प्रत्येक राज्य में अलग-अलग होता है। गुजरात और राजस्थान में इसे उत्तरायण पर्व के रूप में मनाया जाता है। जबकि यूपी में इसे खिचड़ी पर्व कहा जाता है। पढ़िए हर एक राज्य का अपना एक अलग महत्व...
- गुजरात और राजस्थान में इसे उत्तरायण पर्व के रूप में मनाया जाता है। इस दिन पतंग उत्सव का आयोजन किया जाता है।
- तमिलनाडु में किसानों का ये प्रमुख पर्व पोंगल के नाम से मनाया जाता है। घी में दाल-चावल की खिचड़ी पकाई और खिलाई जाती है।
- महाराष्ट्र में लोग गजक और तिल के लड्डू खाते हैं और एक दूसरे को भेंट देकर शुभकामनाएं देते हैं।
- उत्तर प्रदेश में मकर संक्रांति को खिचड़ी पर्व कहा जाता है। सूर्य की पूजा की जाती है. चावल और दाल की खिचड़ी खाई और दान की जाती है।
- आंध्रप्रदेश में संक्रांति के नाम से तीन दिन का पर्व मनाया जाता है।
- पश्चिम बंगाल में हुगली नदी पर गंगा सागर मेले का आयोजन किया जाता है।
- असम में भोगली बिहू के नाम से इस पर्व को मनाया जाता है।
- पंजाब में एक दिन पूर्व लोहड़ी पर्व के रूप में मनाया जाता है। धूमधाम के साथ समारोहों का आयोजन किया जाता है।
मकर संक्रांति का वैज्ञानिक कारण
मकर संक्रांति का त्योहार ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार 14 जनवरी को मनाया जाता है। कभी-कभी यह एक दिन पहले या बाद में यानि 13 या 15 जनवरी को भी मनाया जाता है लेकिन ऐसा कम ही होता है। मकर संक्रांति का एक वैज्ञानिक कारण यह भी है कि इस त्योहार का संबंध सीधा पृथ्वी के भूगोल और सूर्य की स्थिति से है।
14 जनवरी ऐसा दिन है, जब धरती पर अच्छे दिन की शुरुआत होती है, ऐसा इसलिए कि सूर्य दक्षिण के बजाए अब उत्तर की ओर गमन करने लग जाता है। जब तक सूर्य पूर्व से दक्षिण की ओर गमन करता है तब तक उसकी किरणों का असर खराब माना गया है, लेकिन जब वह पूर्व से उत्तर की ओर गमन करने लगता है, तब उसकी किरणें सेहत और शांति को बढ़ाती हैं।
मकर संक्रांति मुहूर्त
पुण्य काल मुहूर्त = दोपहर 02:00 से 05:41 बजे तक
मुहूर्त की अवधि = 3 घंटा 41 मिनट
संक्रांति समय = दोपहर 02:00
महापुण्य काल मुहूर्त = दोपहर 02:00 से 02:24 बजे तक
मुहूर्त की अवधि = 23 मिनट
मकर संक्रांति का स्वास्थ्य से संबंध
मकर संक्रांति का स्वास्थ्य से भी सीधा संबंध डॉक्टरों ने बताया है। इस त्योहार पर तिल की बनाई हुई चीजें खाई जाती हैं। इस तिल में कॉपर, मैग्नीशियम, ट्राइयोफान, आयरन,मैग्नीज, कैल्शियम, फास्फोरस, जिंक, विटामिन बी 1 और रेशे प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। एक चौथाई कप या 36 ग्राम तिल के बीज से 206 कैलोरी ऊर्जा प्राप्त होती है। इसके साथ ही जिनकी गठिया की शिकायत बढ़ जाती है, उन्हें इसके सेवन से लाभ होता है।
Created On :   4 Jan 2018 12:51 PM GMT