3 अप्रैल को मनाई जाएगी हिंग्लाज माता की जयंती, यहां लगता है भक्तों का मेला

Hinglaj Mata Jayanti will be celebrate on April 3,Do such worship
3 अप्रैल को मनाई जाएगी हिंग्लाज माता की जयंती, यहां लगता है भक्तों का मेला
3 अप्रैल को मनाई जाएगी हिंग्लाज माता की जयंती, यहां लगता है भक्तों का मेला

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। भावसार समाज की कुलदेवी हिंग्लाज माता की जयंती श्रद्धाभाव से मनाई जाती है, जो कि इस वर्ष 3 अप्रैल 2019 को पड़ रही है। इस दिन श्री सूक्तम्‌ से अभिषेक कर माता का श्रृंगार किया जाता है और 56 प्रकार के भोग भी लगाए जाते हैं। माता हिंगलाज के बारे में आपको बता दें कि माता सती के 51 शक्तिपीठों में से एक शक्तिपीठ पाकिस्तान के कब्जे वाले बलूचिस्तान में स्थित है। इस शक्तिपीठ की देख-रेख मुस्लिम समाज के लोग करते हैं और वे इसे चमत्कारिक स्थान मानते हैं। पाकिस्तान के कब्जे वाले बलूचिस्तान क्षेत्र में स्थित मां हिंगलाज मंदिर में हिंगलाज शक्तिपीठ की प्रतिरूप देवी की प्राचीन दर्शनीय प्रतिमा विराजमान हैं। 

भक्तों की आस्था का प्रमुख केंद्र
माता हिंगलाज की ख्याति केवल मात्र कराची और पाकिस्तान ही नहीं बल्कि पूरे भारत में है। माता हिंगलाज जयंती पर तो यहां शक्ति की उपासना का विशेष आयोजन होता है। सिंध-कराची के लाखों सिंधी हिन्दू श्रद्धालु यहां माता के दर्शन को आते हैं। भारत से भी प्रतिवर्ष कई दल यहां दर्शन के लिए जाता है। पाकिस्तान के बलूचिस्तान राज्य में हिंगोल नदी के समीप हिंगलाज क्षेत्र में स्थित हिंगलाज माता मंदिर हिन्दू भक्तों की आस्था का प्रमुख केंद्र और प्रधान 51 शक्तिपीठों में से एक है। हिंगोल नदी और चंद्रकूप पहाड़ पर स्थित है। सुरम्य पहाड़ियों की तलहटी में स्थित यह मंदिर इतना विख्यात है कि यहां वर्ष भर मेले जैसा माहौल रहता है।

वेद व्याकरण का पाठ
16वीं सदी में ज्योति स्थापित इस प्राचीन मंदिर के विषय में बुजुर्ग बताते हैं कि 16वीं सदी में खाकी अखाड़ा के महंत भगवानदास जी महाराज को मां हिंगलाज देवी के दर्शन करने की इच्छा मन में हुई। महंत की लगन और श्रृद्धा को देखते हुए मां ने उन्हें कन्या के रूप में दर्शन दिए। इस घटना से प्रेरित होकर महंत भगवानदास महाराज ने सांसारिक लोगों के कल्याण के लिए बाड़ी में मां हिंगलाज को ज्योति के रूप में स्थापित कर दिया। और यहां मिलती है वेद व्याकरण की शिक्षा मंदिर परिसर में वेद व्याकरण संस्कृत विद्यालय भी है, जहां विद्यार्थियों को वेद व्याकरण का पाठ पढ़ाया जाता है।

फलाहार एवं भण्डारे का आयोजन
इस विद्यालय में दूर-दूर से विद्यार्थी अध्यापन करने आते हैं। हिन्दू धर्मावलंबियों के अलावा अन्य धर्म के लोगों की आस्था भी मां हिंगलाज देवी में है। इस दरबार में भक्तों हिंगलाज जयंती पर फलाहार एवं भण्डारे का आयोजन किया जाता है। इस मंदिर पर गहरी आस्था रखने वाले लोगों का कहना है कि हिन्दू चाहे चारों धाम की यात्रा क्यों ना कर ले, काशी के पानी में स्नान क्यों ना कर ले, अयोध्या के मंदिर में पूजा-पाठ क्यों ना कर लें, लेकिन अगर वह हिंगलाज देवी के दर्शन नहीं करता तो यह सब व्यर्थ हो जाता है। वे स्त्रियां जो इस स्थान का दर्शन कर लेती हैं उन्हें हाजियानी कहते हैं। उन्हें हर धार्मिक स्थान पर सम्मान के साथ देखा जाता है।

पौराणिक कथा 
पौराणिक कथानुसार जब भगवान शंकर माता सती के मृत शरीर को अपने कंधे पर लेकर तांडव नृत्य करने लगे, तो ब्रह्माण्ड को प्रलय से बचाने के लिए भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से माता के मृत शरीर को 51 भागों में काट दिया। मान्यतानुसार हिंगलाज ही वह जगह है जहां माता का माथा गिरा था। इस मंदिर से जुड़ी एक और मान्यता व्याप्त है। कहा जाता है कि हर रात इस स्थान पर सभी शक्तियां एकत्रित होकर रास रचाती हैं और दिन निकलते हिंगलाज माता के भीतर समा जाती हैं।

कहा जाता है की मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम भी यात्रा के लिए इस सिद्ध पीठ पर आए थे। हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार भगवान परशुराम के पिता महर्षि जमदग्रि ने यहां घोर तपस्या की थी। उनके नाम पर आसाराम नामक स्थान अब भी यहां उपस्थित है। कहा जाता है कि इस प्रसिद्ध मंदिर में माता की पूजा करने को गुरु गोरखनाथ, गुरु नानक देव, दादा मखान जैसे महान आध्यात्मिक संत आ चुके हैं।

मंदिर की यात्रा के लिए यहां से पैदल चलना पड़ता है क्योंकि इससे आगे कोई सड़क नहीं है इसलिए ट्रक या जीप पर ही यात्रा की जा सकती है। रस्ते में काली माता का मंदिर पड़ता है। इस मंदिर में आराधना करने के बाद यात्री हिंगलाज देवी के लिए रवाना होते हैं। यात्री चढ़ाई करके पहाड़ पर जाते हैं जहां मीठे पानी के तीन कुएं हैं। इन कुंओं का पवित्र जल मन को शुद्ध करके पापों से मुक्ति देता है। बस इसके आगे पास ही माता हिंगलाज का मंदिर है। 

Created On :   26 March 2019 7:51 AM GMT

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