अदभुत है यह 3000 फीट ऊपर रखी गणेश प्रतिमा... जानें इसके बारे में
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। छत्तीसगढ़ में दंतेवाड़ा से 30 किलो मीटर दूर दुर्गम ढोलकल की पहाड़ियों पर 3000 फ़ीट की ऊंचाई पर सैकड़ों वर्ष पुरानी, नागवंशीय राजाओं द्वारा स्थापित एक भव्य गणेश प्रतिमा लोगों के आश्चर्य का कारण है। लोग यह नहीं समझ पा रहे की सदियों पहले इतनी ऊंचाई पर गणेश प्रतिमा की स्थापना क्यों की गई? यहाँ पर पहुँच पाना आज भी बहुत ही कठिन काम है। उस समय पर तो इस प्रतिमा तक पहुंचना और भी ज्यादा कठिन रहा होगा। लोगों के बीच आज भी कौतूहल का विषय है कि यह गणेश प्रतिमा यहां कैसे आई। आइए जानें इस प्रतिमा से जुड़ी विभिन्न बातों के बारे में।
भव्य है गणेश प्रतिमा :-
पहाड़ी पर स्थापित 6 फीट ऊंची 21/2 फीट चौड़ी ग्रेनाइट पत्थर से निर्मित यह प्रतिमा वास्तुकला की दृष्टि से अत्यन्त कलात्मक है। गणपति की इस प्रतिमा में ऊपरी दांये हाथ में फरसा, ऊपरी बांये हाथ में टूटा हुआ एक दंत, नीचे दांये हाथ में अभय मुद्रा में अक्षमाला धारण किए हुए तथा नीचे बांये हाथ में मोदक धारण किए हुए आयुध के रूप में विराजित है।
पुरात्वविदों के अनुसार इस प्रकार की प्रतिमा बस्तर क्षेत्र में कहीं नहीं मिलती है। गणेश जी का एक दांत टूटने से सम्बंधित पौराणिक कथा के अनुसार एक बार परशुराम जी शिवजी से मिलने कैलाश पर्वत गए। उस समय शिवजी विश्राम में थे। गणेश जी उनके रक्षक के रूप में विराजमान थे।
गणेश जी ने परशुराम जी को शिवजी से मिलने से रोका तो परशुराम जी क्रोधित हो गए और गुस्से में उन्होंने अपने फरसे से गणेश जी का एक दांत काट दिया तब से गणेश जी एकदंत कहलाए।
गणेश और परशुराम में यही हुआ हुआ था युद्ध :
दंतेश के क्षेत्र (वाड़ा) को दंतेवाड़ा कहा जाता है। इस क्षेत्र में एक कैलाश गुफा भी है। इस क्षेत्र से सम्बंधित एक किंवदंती यह चली आ रही है कि यह वही कैलाश क्षेत्र है जहां पर गणेश एवं परशुराम के मध्य युद्ध हुआ था। यही कारण है कि दंतेवाड़ा से ढोल कल पहुंचने के मार्ग में एक ग्राम परस पाल मिलता है, जो परशुराम के नाम से जाना जाता है।
इसके आगे ग्राम कोतवाल पारा आता है। कोतवाल अर्थात् रक्षक के रूप में गणेश जी का क्षेत्र होने की जानकारी मिलती है। दंतेवाड़ा क्षेत्र की रक्षक है यह गणेश दंतेवाड़ा क्षेत्र रक्षक के रूप में पहाड़ी के चोटी पर स्थापित किया गया होगा। गणेश जी के आयुध के रूप में फरसा इसकी पुष्टि करता है। यहीं कारण है कि उन्हें नागवंशी शासकों ने इतनी ऊंची पहाड़ी पर स्थापित किया था।
नागवंशी शासकों ने इस मूर्ति के निर्माण करते समय एक चिन्ह अवश्य मूर्ति पर अंकित कर दिया है। गणेश जी के उदर पर नाग का अंकन। गणेश जी अपना संतुलन बनाए रखे, इसीलिए शिल्पकार ने जनेऊ में संकल का उपयोग किया है। कला की दृष्टि से 10-11 शताब्दी की (नागवंशी) प्रतिमा कही जा सकती है।
बड़ी दुखद खबर है की हमारी इस प्राचीन विरासत को नक्सलियों ने खाई में गिराकर नष्ट कर दिया था। इसका कारण इसके लोगों के बीच बढ़ती लोकप्रियता बताया जा रहा है। जिसके कारण यहाँ पर आम लोगों की आवाजाही बढ़ गई थी। यही बात नक्सलियों को पसंद नहीं आई। लेकिन सरकार के प्रयास से मूर्ति फिर वही स्थापित कर दी गई है।
Created On :   5 March 2019 7:28 AM GMT