मृत्यु पर शोक नहीं उत्सव मनाता है यह परिवार, नाचते-झूमते हुए देते हैं अंतिम विदाई

In Chhindwara, family dance and celebrates the death of a family member
मृत्यु पर शोक नहीं उत्सव मनाता है यह परिवार, नाचते-झूमते हुए देते हैं अंतिम विदाई
मृत्यु पर शोक नहीं उत्सव मनाता है यह परिवार, नाचते-झूमते हुए देते हैं अंतिम विदाई

डिजिटल डेस्क, छिंदवाड़ा। किसी की मृत्यु पर उस व्यक्ति का परिवार ही नहीं, रिश्तेदार और आसपास में भी मातम पसर जाता है, लेकिन छिंदवाड़ा में एक परिवार ऐसा है जो मृत्यु को उत्सव की तरह मनाता है। हमेशा के लिए बिछुड़े सदस्य को आंसु बहाकर विदा करने के बजाए नाचते झूमते हुए विदा किया जाता है। शव यात्रा को गाजेबाजों और डीजे के साथ बारात की तर्ज पर निकाला जाता है। परिवार के छोटे-बड़े व महिलाएं सभी नाचते झूमते हुए अंतिम विदाई देते हैं।

परंपरा और कुरीतियों के विपरीत मृत्यु पर इस अनूठे उत्सव का यह नजारा गए सोमवार को पांढुर्ना 20 किमी दूर टेमनीकला गांव देखने को मिला। यहां पिलाजी सोमकुंवर 75 वर्ष की मृत्यु हो गई। पिलाजी की सात बेटियां हैं। सातों बेटी-दामाद और नातियों ने उनके निधन पर दुख मनाने की बजाए उत्सव का रूप दिया। बाजों और डीजे की धुन पर शवयात्रा निकाली गई। जिसमें पूरा परिवार नाचते झूमते हुए शामिल हुआ। परिवार में मृत्यु उत्सव मनाने की शुरूआत तीसरे नंबर के दामाद अधिवक्ता सिद्धार्थ सहारे ने की। उन्होंने वर्ष 2006 में अपने पिता चूड़ामनजी सहारे के निधन और वर्ष 2011 में माता बयाबाई की मृत्यु पर उत्सव मनाया था। मृत्यु पर उत्सव का यह तीसरा मौका था।

न मृत्युभोज न तीसरा-तेरहवीं
परिवार मृत्यु भोज, तीसरा, दसवां और तेरहवीं के कार्यक्रम भी नहीं करता। मृत्यु उत्सव यानी अंतिम संस्कार के बाद गांव के लोग मिलकर भोजन पकाते हैं। इसके साथ ही महज एक दिन में मृत्यु उत्सव पूरा हो जाता है। मृतक परिवार पर किसी तरह का आर्थिक बोझ भी नहीं पड़ता। अगले दिन से परिवार सामान्य स्थिति में आ जाता है।

मृत्यु सत्य तो दुख क्यों मनाएं
परिवार में मृत्यु उत्सव की शुरूआत करने वाले अधिवक्ता सिद्धार्थ कहते हैं कि मृत्यु सत्य है तो इस पर दुख क्यों मनाएं। इसका स्वागत करते हुए व्यक्ति को खुश होना चाहिए। परमात्मा के पास कोई व्यक्ति जा रहा है तो विदाई उत्सव के साथ होनी चाहिए।

 



विवाह आयोजन भी ईको फ्रेंडली
अधिवक्ता सिद्धार्थ ने ईको फ्रेंडली शादी समारोह की पहल भी कर रखी है। वर्ष 2007 से अब तक वे 255 शादियां करा चुके हैं। जिसमें किसी भी प्रकार से डिस्पोजल का उपयोग नहीं होता। वर-वधु को उपहार की जगह पौधे भेंट किए जाते हैं। विवाह पूर्व पौधरोपण भी कराया जाता है।

 

Created On :   16 July 2018 7:53 AM GMT

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