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शुद्ध वाटर सप्लाय के नाम पर सरकार का जनता को धोका, 62 फीसदी सैंपल फेल
डिजिटल डेस्क,नागपुर। शुद्ध वाटर सप्लाय के लिए राज्य सरकार द्वारा चलाई जा रही जलापूर्ति गुणवत्ता व सनियंत्रण योजना में चौंकाने वाली जानकारी सामने आई है। जिले सैंपलों की जांच में 62 प्रतिशत सैंपल फेल बताए गए हैं। उल्लेखनीय है कि जिले की 13 तहसीलों की हद में आने वाले 1628 गांवों में शुद्ध जलापूर्ति करने की योजना चलायी जा रही है। सरकार द्वारा स्थापित पानी जांच प्रयोगशाला की रपट बता रही है कि पिछले साल नागपुर जिले के 14 हजार 170 सैंपलों की जांच की गई। इनमें से लगभग 62 फीसदी यानी 8752 सैंपल फेल हो चुके हैं। यह पानी भारतीय मानक ब्यूरो द्वारा तय मानकों के अनुसार पीने योग्य नहीं है। जांच के बाद 5 हजार 418 यानी 38 फीसदी सैंपल ही पीने योग्य पाये गए हैं। जलापूर्ति गुणवत्ता व सनियंत्रण योजना जिला परिषद के जलापूर्ति विभाग के माध्यम से चलायी जा रही है। जिप के अधिकारी दावा कर रहे हैं कि जिले के 90 फीसदी गांवों में शुद्ध जलापूर्ति की जा रही है। गांवों से प्रयोगशाला तक सैंपल लाने की जिम्मेदारी जल संरक्षकों की होती है। जल संरक्षकों को गांव के हर जलस्रोत से सैंपल इकठ्ठा करने पड़ते हैं, लेकिन यह काम बराबर नहीं हो रहा। जल संरक्षक एक ही स्रोत का पानी अलग-अलग बोतलों में भरकर लाते हंै। जब पानी की जांच होती है, तब जल संरक्षकों की लापरवाही उजागर हाेती है। एक तरह से ग्रामीणों के स्वास्थ्य से खिलवाड़ किया जाता है।
मुख्य प्रयोगशाला है नागपुर में
नागपुर जिले में पानी की जांच करने के लिए अलग-अलग जगहों 5 प्रयोगशालाएं बनायी गई हैं। नागपुर शहर में मुख्य प्रयोगशाला है। यहां 5 तहसील भिवापुर, कुही, उमरेड, मौदा व कामठी के पानी की जांच की जाती है। इसके अलावा देवलापार की प्रयोगशाला में रामटेक, नरखेड की प्रयोगशाला में नरखेड और काटोल, पारशिवनी की प्रयोगशाला में पारशिवनी और सावनेर, हिंगणा की प्रयोगशाला में हिंगणा, नागपुर व कलमेश्वर के पानी की जांच की जाती है। आधुनिक संसाधनों से युक्त प्रयोगशालाओं में विभिन्न उपकरणों के माध्यम से करीब 22 तरह की जांच की जाती है। इसके बाद पानी इस्तेमाल करने योग्य है या नहीं इसकी रपट संबंधितों को सौंपी जाती है।
काम में बरतते हैं कोताही
गांवों में स्थित पानी के सभी स्रोतों से सैंपल लेकर उन्हें प्रयोगशाला तक पहुंचाने में प्रमुख भूमिका जल संरक्षकों की होती है। नगर परिषद या ग्रामपंचायत के जलापूर्ति विभाग का एक कर्मचारी जल संरक्षक के रूप में काम करता है। उसे यह काम साल में दो बार करना पड़ता है। बरसात के पूर्व और बाद में जांच करना अनिवार्य है। बरसात से पहले मई, जून और जुलाई और बरसात के बाद अक्टूबर, नवंबर और दिसंबर में जांच की जाती है। इससे दोनों बार की स्थिति की जांच हो जाती है। लेकिन कुछ जल संरक्षक इस काम में लापरवाही बरतते हैं। सूत्रों के अनुसार ये लोग गांव के दूर-दराज में स्थित जल स्रोतों तक नहीं जाते। आस-पास के सैंपल जमा कर उनकी संख्या बढ़ा देते हैं। कई बार तो एक ही स्रोत से सैंपल लेकर उन्हें अलग-अलग बताते हैं। जब यह सैंपल जांचे जाते हैं, तो वे पकड़ में आते हैं। अनेक जल संरक्षकों को प्रयोगशाला के अधिकारियों ने खरी-खोटी सुनायी है। जल संरक्षकों को लगता है कि पूरे गांव में एक समान पानी होगा, लेकिन ऐसा नहीं होता। हर 100 मीटर की दूरी के बाद पानी की गुणवत्ता में बदलाव होने की संभावना रहती है। जल संरक्षकों की लापरवाही के कारण सरकारी योजना पर पानी फिर रहा है।
Created On :   16 Jan 2018 10:07 AM GMT