पुष्कर स्नान, इस सराेवर के विलुप्त होते ही हो जाएगा सृष्टि का अंत

kartik Purnima snan in pushkar jheel on the kartik Purnima 2017
पुष्कर स्नान, इस सराेवर के विलुप्त होते ही हो जाएगा सृष्टि का अंत
पुष्कर स्नान, इस सराेवर के विलुप्त होते ही हो जाएगा सृष्टि का अंत

डिजिटल डेस्क, अजमेर। कार्तिक पूर्णिमा के दिन ही पुष्कर स्नान की भी शुभ तिथि है। देश-दुनिया में प्रसिद्ध पुष्कर का महत्व इसलिए भी अधिक है क्योंकि यहां संसार में एकमात्र मंदिर ऐसा है जहां ब्रम्हदेव का मंदिर है और उनकी पूजा की जाती है। यहां का दृश्य सचमुच ईश्वर की अनूठी रचना है। एक ओर जहां झील से सटी पुष्कर नगरी है तो दूसरी ओर रेगिस्तान का मुहाना। हर ओर भारत की एक अलग ही संस्कृति नजर आती है। अजमेर से नाग पर्वत पार कर पुष्कर पहुंचना होता है इस पर्वत पर पंचकुंड और अगस्त्य मुनि की गुफा भी है। 

पुष्प से हुई है इसकी रचना 

पुष्कर का अर्थ होता है एक ऐसा सरोवर जिसकी रचना पुष्प से हुई है। ऐसी मान्यता है कि कभी ब्रम्हदेव ने अपने यज्ञ के लिए जगह तलाशने के उद्देश्य से एक कमल पुष्प यहां गिराया था पुष्कर उसी से बना है। तीर्थनगरी होने की वजह से कार्तिक पूर्णिमा के दिन यहां बड़ी संख्या में संतों का आगमन होता है। यहां एक विशाल मेले का आयोजन किया जाता है जो कार्तिक माह शुक्ल पक्ष की अष्टमी से शुरू होकर पूर्णिमा तक चलता है। 

सिर्फ यहीं होती है ब्रम्हदेव की पूजा 

यह एकमात्र ऐसा स्थान है जहां ब्रम्हदेव की पूजा होती है और उनका भव्य मंदिर है। मान्यता है कि ब्रम्हदेव को उनकी पत्नी के श्राप की वजह से केवल पुष्कर में ही पूजा जाता है। कहा जाता है पुष्कर झील या सराेवर का आकार अब छोटा होता जा रहा है ऐसा सदियों से हो रहा है। जिस दिन ये झील पूरी तरह विलुप्त हो जाएगी। वह सृष्टि का अंतिम दिन होगा। इस वजह से भी देशी-विदेशी सैलानी इस झील को देखने आते हैं। 

इनके भी हैं मंदिर 

यहां ब्रम्हदेव के अतिरिक्त, रंगजी विष्णु, सरस्वती, सावित्री का भी मंदिर है। यह नगरी चारों ओर मंदिरों से घिरी हुई है। पुष्कर मेले के दौरान राजस्थानी लोकसंस्कृति के अनूठे रंग देखने मिलते हैं। 

Created On :   2 Nov 2017 4:42 AM GMT

और पढ़ेंकम पढ़ें
Next Story