खगोलिय वर्षों पर आधारित होती हैं भारत में अपनाई गईं ये पद्धतियां
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। भारत में नववर्ष की गणना इंगित करने के लिए विभिन्न युगों में विभिन्न प्रणालियां प्रचलित रही हैं। कैलेण्डरों के निर्माण में अपनाई गई पद्धति सौर प्रणाली, चंद्र प्रणाली और चंद्र-सौर प्रणाली में से कोई एक होती है। भारत में अपनाई गई ये पद्धतियां खगोलीय वर्षों पर आधारित होती हैं। जो इन खगोलिय पिंडों की गति का अनुसरण करती हैं। ये पद्धतियां सौर वर्ष, चंद्र वर्ष और चंद्र सौर वर्ष नाम से जानी जाती हैं। यहां हम आपको इनके बारे में ही बताने जा रहे हैं।
सौर वर्ष: यह पृथ्वी द्वारा क्रांतिवृत्त, यथा संक्रांति या विषुव से हो कर जहां इसे अपनी यात्रा पूर्ण कर लौटना होता है। सूरज के चारों ओर अपनी परिक्रमा में लगा हुआ समय है। सौर वर्ष में 365 दिन, 5 घंटे 48 मिनट तथा 48 सेकण्ड होते हैं। यह पद्धति वर्ष तथा ऋतुओं के बीच निकटतम संगतता को बनाए रखती है। सौर वर्ष में कुल महीने होते हैं।
चंद्र वर्षः सौर वर्ष की भांति चंद्र वर्ष में भी 12 महीने होते हैं। प्रत्येक चंद्र मास दो क्रमिक पूर्णमासियों या अमावस्या के बीच की अवधि में परिमित अभिषद्य मास होता है। सौर वर्ष की अपेक्षा इसमें 11 दिन कम होते हैं। अर्थात चंद्र वर्ष में 354 दिनों की अवधि प्राप्त होती है।
चंद्र सौर वर्ष: यहां वर्ष को सौर चक्रों तथा मासों को चंद्र विभाजनों द्वारा हिंदू कैलेंडररों में दिए गए तरीकों से आंकलित किया जाता है। इन दोनों के बीच के समायोजन को दिनों तथा मासों के अंतिर्निवेश के द्वारा यथार्थ रूप दिया जाता है। अधिक मास का प्रयोग चंद्र सौर प्रणाली से होता है।
ग्रह-नक्षत्रों का बहुत महत्व
इसके अतिरिक्त भी किसी भी तिथि, त्योहार या दिन या फिर शुभ-अशुभ मुहूर्त किसी के भी निर्धारण में विशेष ग्रह-नक्षत्रों का बहुत महत्व होता है। क्योंकि इनकी बदली दिशा और गति मनुष्य के जीवन में आने वाले परिवर्तनों अर्थात मानव के जीवन की गतिविधियों को भी प्रभावित करती है। जिसका असर भी स्पष्ट रूप से कहीं न कहीं देखने मिलता है।
Created On :   14 Jan 2018 3:39 AM GMT