'उपवास और सियासत के बीच आंदोलन का ट्रेलर '

#Kisan Aandolan : fasting and satyagraha are the solutions of farmers problems
'उपवास और सियासत के बीच आंदोलन का ट्रेलर '
'उपवास और सियासत के बीच आंदोलन का ट्रेलर '

टीम डिजिटल, भोपाल. एमपी के सीएम शिवराज सिंह के उपवास तोड़ने और राज्य में किसान आंदोलन की आग ठंडी पड़ने के बाद भी इस मामले के भविष्य में और तूल पकड़ने की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता. राजनीतिक पंडितों के अनुसार, किसानों के मुद्दे पर सियासत के साथ ही उनकी मूल समस्याओं पर समझ और वास्तविक नेतृत्व की कमी इसकी आग को और विकराल कर सकती है.

किसानों के मुद्दों पर काम करने वाले संगठनों और जानकारों के अनुसार, राज्य सरकारें अब किसानों को जातिगत वोट बैंक के रूप में नहीं देख सकतीं. उन्हें उनके मसलों पर जमीनी समझ बनानी होगी, साथ ही उनको किसानों के साथ जमीनी संवाद भी कायम करना होगा. यहां दशहरा मैदान पर शिवराज सिंह का उपवास इसी संवाद को कायम करने की पहली कड़ी माना जा सकता है. इसी संवाद के कारण ही किसानों के साथ सरकार की बातचीत नाकाम रही और वे सड़कों पर उतरे. एमपी की नौकरशाही भी राज्य को चार बार कृषि कर्मण अवार्ड जिताने वाले किसानों की समस्याओं को जमीनी स्तर पर समझने में विफल रही. खुद आरएसएस से जुड़े किसान संगठन भी सरकार को घेर रहे हैं. फिर भी सरकार उनसे बातचीत नहीं कर रही.

क्या हो सकता है आगे 

शिवराज कैबिनेट की बैठक में किसानों के हित में कई निर्णय लेने का दावा तो किया गया लेकिन निर्णयों की समीक्षा की जाए तो यह महज फौरी तौर पर दी जाने वाली राहत है. इससे किसानों को आगे जाकर वाकई कोई फायदा होगा इस पर संशय है. इन सब के बाद राज्य सरकार ने किसानों की हड़ताल खत्म करने का एक और उपाय ढूंढा. राज्य के सीएम खुद उपवास पर बैठ गए.

हड़ताल खत्म करने के लिए एक और हड़ताल. यही नहीं कांग्रेस ने भी किसानों की समस्या सूनने की बजाय सत्याग्रह करने का ऐलान कर दिया, 14 जून से अब इनका सत्याग्रह शुरू होगा जिसका नेतृत्व ज्योतिरादित्य सिंधिया करेंगे. कांग्रेस 2-4 दिनों में जंतर-मंतर पर भी प्रदर्शन करने की बात कह रही है. अब समस्या किसानों की तो रह ही नहीं गई है. यह तो राजनैतिक हो गई है. किसानों की लड़ाई कब भाजपा-कांग्रेस की लड़ाई हो गई पता ही नहीं चला. यह भी तय है कि अब किसानों की समस्याओं पर बात नहीं होने वाली. बात मोदी सरकार की कामयाबी और नाकामयाबी पर चली जाएगी और किसानों का मुद्दा गुम हो जाएगा.

कोई नहीं समझ पाया किसानों का दर्द
आश्चर्य की बात है कि इतने बड़े आंदोलन के बावजूद सरकार के सिर पर एक जू तक नहीं रेंगी. भाजपा नेता इसे कांग्रसियों की चाल बताते रहे तो कांग्रेसी इसके लिए भाजपा की नीतियों को दोष देते रहे. 

किसानों की दोगुनी इनकम
भाजपा सरकार की यह महत्वाकांक्षी योजना भी लगता है एक जुमला ही साबित हो. तीन साल में ऐसा कुछ नहीं हुआ जिससे लगे कि अगले पांच सालों में किसानों की इनकम दोगुनी हो जाए. केन्द्र से लेकर राज्य सरकारें इस बात को पिछले दो साल से दोहरा रही है लेकिन जमीनी स्तर पर अब तक कोई काम नहीं हुआ है.

मध्यप्रदेश के कृषि कर्मण अवार्ड
अब ये क्या चीज है, समझ से परे है. पिछले चार सालों से एमपी के कृषि मंत्री लगातार यह ट्रॉफी उठा रहे हैं. उन्नत फसलों के लिए एमपी को मिलने वाले इस अवार्ड की हकीकत सामने आ गई है. समझ नहीं आता कि वास्तव में प्रदेश कृषि कर्मण अवार्ड के लायक था तो फिर ये उग्र प्रदर्शन किसलिए?

आखिर में फिर न ठगा जाए अन्नदाता 

सीएम शिवराज के बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया अब सत्याग्रह शुरू करने वाले हैं. स्वाभाविक है कि यह सत्याग्रह किसानों के लिए नहीं यह तो सिर्फ पेट के बल औंधी लौटी कांग्रेस को उठाने की कोशिश है. किसान आंदोलन से कितना नुकसान हुआ इसके आंकड़े जल्द ही आपके सामने होंगे. आंदोलन पर किस राजनैतिक दल ने क्या रोटियां सेंकी यह भी पता चल जाएगा लेकिन इतना तय है कि अंत में किसान के हाथ एक बार फिर खाली रह जाएंगे.

Created On :   11 Jun 2017 9:38 AM GMT

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