जानिये महान संत गुरु गोकुलदास जी महाराज के जन्मोत्सव के बारे में

Know the Guru Gokuldas Maharaj Birth Anniversary, Jayanti and Janmotsav
जानिये महान संत गुरु गोकुलदास जी महाराज के जन्मोत्सव के बारे में
जानिये महान संत गुरु गोकुलदास जी महाराज के जन्मोत्सव के बारे में

महान संत गुरु गोकुलदासजी महाराज जिनका जन्मौत्सव 6 जनवरी 2019 को है। गुरु गोकुलदास महाराज का जन्म 6 जनवरी 1907 को उत्तरप्रदेश के बेलाताल गांव में हुआ था।  इनके पिता का नाम करणदास तथा इनकी माता का नाम श्रीमती हर्बी था। त्यागी गुरु गोकुलदास महाराज का 113वां जन्मोत्सव इस वर्ष उनके अनुयाईयों द्वारा धूमधाम से मनाया जाएगा। गुरु गोकुलदास महाराज समाज में परिवर्तन की मुख्य भूमिका निभाने वाले मेघवंश, डोम, डुमार, बसोर, धानुक, नगारची, हेला आदि समाज के महान प्रणोता संत और वे एक तपस्वी, बाल ब्रह्मचारी संत थे। भारत की स्वतंत्रता के पश्चात 1962 में चीन के आक्रमण किए जाने पर उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरूजी से भेंट की थी तथा साथ ही अपने अनुयायियों को अपने राष्ट्र के लिए लड़ने और मरने की आज्ञा दी और स्वयं चित्रकूट की पहाड़ियों में घोर तपस्या करने सात दिन तक अन्न-जल का त्याग करके तप किया था।

अपने अनुयायियों के साथ सत्संग में रत रहने वाले गोकुलदासजी ने पूरे भारत देश का भ्रमण किया था।  सन् 1964 में भारत के आक्रमण पर तत्कालीन प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री से भेंट कर उन्होंने चित्रकूट की पहाड़ियों में भारत की विजय होने तक घोर तपस्या की थी। गुरु गोकुलदासजी के भीतर राष्ट्रभक्ति कूट-कूटकर भरी हुई थी। वे एक सच्चे देशभक्त रहे। स्वतंत्रता के आंदोलन में भाग लेने वालों का वे बहुत सम्मान करते थे। वे सदा यही कहा करते थे कि संकट की घड़ी में हर भारतीय को धर्म, जाति के भेदभाव से ऊपर उठकर देश की सेवा करना ही चाहिए।

समाज के सजग प्रहरी और देशभक्त गोकुलदासजी महाराज समाज की पूजा-पद्धति, सामाजिक रीति-रिवाज, वैवाहिक पद्धति आदि को समान रूप से मानते थे। वे एक महान संत थे जिन्होंने अपना पूरा जीवन समाज को समर्पित कर उसे पहचान बनाई। हाराजजी शांत स्वरूपा थे। उन्हें एकान्तवास बहुत प्रिय था। कहीं भी जाते थे तो शहर से बाहर, शोरगुल से दूर, एकांत स्थान पर रहते थे। उन्होंने बहुत तपस्या की थी और अधिकतर मौन रहा करते थे।  

महापुरुष कृपालु होते हैं, उनका दिल दया से पूर्ण होता है और दुःखियों के दुःख दूर करने के लिए स्वयं को कष्टों में डालते हैं। महाराजजी का कार्य क्षेत्र अपार था। वे ताप करते हुए ज्ञान गंगा बहाते रहते थे और जिज्ञासु उनका उपदेशामृत प्राप्त कर ज्ञान प्राप्त करते रहते थे। महाराज जी का समस्त जीवन यज्ञमय था। उनका सम्पूर्ण जीवन लोगों के हित करने में ही बीता। 
ऐसे महान संत को नमन!

Created On :   3 Jan 2019 7:14 AM GMT

और पढ़ेंकम पढ़ें
Next Story