जानिए क्या है गोपाष्टमी पर्व और इसे कैसे मनाते हैं ?

Know what is the Gopashtami festival and how it is celebrate?
जानिए क्या है गोपाष्टमी पर्व और इसे कैसे मनाते हैं ?
जानिए क्या है गोपाष्टमी पर्व और इसे कैसे मनाते हैं ?

डिजिटल डेस्क। कार्तिक मास में शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को गोपाष्टमी के रूप में मनाया जाता है, जो इस बार 15 नवम्बर 2018 को पड़ रही है। इस दिन भगवान श्रीकृष्ण ने गौ चारण लीला शुरू की थी और आज ही गाय को गोमाता भी कहा था। इस दिन प्रातः काल में उठकर नित्य कर्म से निवृत होकर स्नान आदि करते हैं। आइए जानते हैं कि कैसे मनाई जाती है गोपाष्टमी ? इस पर्व में प्रातः काल स्नान करने के बाद गायों को स्नान आदि कराकर गौ माता और बछड़े के अंग में मेहंदी, हल्दी, रंग के छापे आदि लगाकर सजाया जाता है। इस दिन बछडे़ सहित गाय की पूजा करने का विधान है। 

 

प्रातः काल में ही धूप-दीप अक्षत, रोली, गुड़, आदि वस्त्र तथा जल से गाय का पूजन किया जाता है और आरती उतारी जाती है। इस दिन कई व्यक्ति ग्वालों को उपहार आदि देकर उनका भी पूजन करते हैं। गायों को खूब सजाया जाता है। इसके बाद गाय को चारा आदि डालकर परिक्रमा करते हैं। परिक्रमा करने के बाद कुछ दूर तक गायों के साथ चलते हैं। ऐसी आस्था है कि गोपाष्टमी के दिन गाय के नीचे से निकलने वालों को बड़ा ही पुण्य मिलता है। 

 

इस दिन ग्वालों को भी दान दिया जाता हैं। कई लोग इन्हें नए कपड़े दे कर तिलक लगाते हैं। शाम को जब गाय घर लौटती है, तब फिर उनकी पूजा की जाती है, उन्हें अच्छा भोजन दिया जाता है। खासतौर पर इस दिन गाय को हरा चारा, हरा मटर एवं गुड़ खिलाया जाता हैं। जिनके घरों में गाय नहीं होती है वो लोग गौ शाला जाकर गाय की पूजा करते है, उन्हें गंगा जल, फूल चढाते है, दिया जलाकर गुड़ खिलाते है। गौशाला में खाना और अन्य समान का दान भी करते है। स्त्रियां कृष्ण जी की भी पूजा करती है, गाय को तिलक लगाती है। इस दिन भजन किये जाते हैं। कृष्ण पूजा भी की जाती हैं।

 

गोपाष्टमी पर्व से जुडी प्रसिद्ध पौराणिक कथाएं

गाय का दूध, गाय का घी, दही, छांछ यहाँ तक की मूत्र भी मनुष्य जाति के स्वास्थ्य के लिए लाभदायक हैं। गोपाष्टमी त्यौहार हमें बताता हैं कि हम सभी अपने पालन के लिए गाय पर निर्भर करते हैं इसलिए वो हमारे लिए पूज्यनीय हैं और हिन्दू संस्कृति, गाय को माँ का दर्जा देती हैं।

 

पौराणिक कथा 1 

जब कृष्ण भगवान ने अपने जीवन के छठे वर्ष में कदम रखा। तब वो अपनी यशोदा मैया से जिद्द करने लगे कि वो अब बड़े हो गये हैं और बछड़े को चराने के साथ वो अब गाय चराएंगे। उनके बालहठ के आगे मैया को हार माननी ही पड़ी और मैया ने उन्हें अपने पिता नन्द बाबा के पास इसकी आज्ञा लेने भेज दिया। भगवान कृष्ण ने नन्द बाबा के सामने जिद्द रख दी कि अब वे गैया ही चरायेंगे। नन्द बाबा गैया चराने के मुहूर्त के लिए, शांडिल्य ऋषि के पास पहुँचे, बड़े अचरज में आकर ऋषि ने कहा कि, अभी इसी समय के आलावा कोई शेष मुहूर्त नहीं हैं अगले बरस तक। 

 

शायद भगवान की इच्छा के आगे कोई मुहूर्त क्या था। वो दिन गोपाष्टमी का था। जब श्री कृष्ण ने गैया चराना आरंभ किया। उस दिन यशोदा माता ने अपने कान्हा को बहुत सुन्दर तैयार किया। मौर मुकुट लगाया, पैरों में घुंघरू पहनाये और सुंदर सी पादुका पहनने दी लेकिन कान्हा ने वे पादुकायें नहीं पहनी। उन्होंने मैया से कहा अगर तुम इन सभी गैया को चरण पादुका पैरों में बांधोगी तब ही मैं यह पहनूंगा।  मैया ये देख कर भावुक हो जाती हैं और कान्हा बिना पैरों में कुछ पहने अपनी गैया को चराने के लिये ले जाते। गौ चरण करने के कारण ही, श्री कृष्णा को गोपाल या गोविन्द के नाम से भी जाना जाता है।

 

पौराणिक कथा 2 

ब्रज में इंद्र का प्रकोप इस तरह बरसा की लगातार बर्षा होती रही, जिससे बचाने के लिए कृष्ण ने जी सात दिन तक गोबर्धन पर्वत को अपनी सबसे छोटी ऊँगली से उठाये रखा, उस दिन गोबर्धन पूजा की जाती है। गोपाष्टमी के दिन ही इंद्र ने अपनी हार स्वीकार की थी, जिसके बाद श्रीकृष्ण ने गोबर्धन पर्वत नीचे रखा था। भगवान कृष्ण स्वयं गौ माता की सेवा करते हुए, गाय के महत्व को सभी के सामने रखा। गौ सेवा के कारण ही इंद्र ने उनका नाम गोविंद रखा था।

 

पौराणिक कथा 3 

गोपाष्टमी ने जुड़ी एक बात और ये है कि राधा भी गाय को चराने के लिए वन में जाना चाहती थी, किन्तु कन्या होने के कारण उन्हें इस बात के लिये कोई हामी नहीं करता था। तब राधा जी को एक युक्ति सूझी, उन्होंने ग्वाला जैसे वस्त्र धारण किये और वन में कान्हा जी के साथ गाय चराने चली गई।

Created On :   14 Nov 2018 6:45 AM GMT

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