HMT चावल के जनक की बिस्तर पर कट रही जिंदगी, शासकीय सहायता की प्रतीक्षा

Krishi Ratna Dadaji Khobragade in nander, World famous HMT paddy
HMT चावल के जनक की बिस्तर पर कट रही जिंदगी, शासकीय सहायता की प्रतीक्षा
HMT चावल के जनक की बिस्तर पर कट रही जिंदगी, शासकीय सहायता की प्रतीक्षा

डिजिटल डेस्क, चंद्रपुर। विश्वप्रसिद्ध HMT धान (चावल) समेत अन्य 8 से अधिक धान की नई प्रजातियों के  संशोधक नांदेड़ निवासी 80  वर्षीय कृषिरत्न दादाजी खोब्रागड़े की जिदंगी आज पैरालिसिस के कारण बिस्तर पर ही कट रही है। एक समय में धान के पौधे के गुण, उसकी विशेषता और अलग पहचान का निरंतर निरीक्षण कर इसके लाभ की जानकारी कृषकों तक पहुंचानेवाले संशोधक सरकारी उपेक्षा व सामाजिक विस्मरण के चलते दयनीय जीवन व्यतीत करने के लिए विवश हैं।

 

बोलबाला था HMT चावल का
गौरतलब है कि चंद्रपुर जिले की नागभीड़ तहसील के ग्राम नांदेड़ में वर्ष 1969 में एक दलित कृषि मजदूर परिवार आकर बसा। उस वक्त दादाजी रामाजी खोब्रागड़े सिर्फ 3 री कक्षा तक की शिक्षा अर्जित कर पाए। थोड़ी-सी कृषि भूमि में परंपरागत पद्धति से धान की फसल लेकर और बचे हुए समय में मजदूरी कर यह परिवार अपना गुजारा करता था। कुछ नया करने की चाह में दादाजी हर चीज का गहनता से अध्ययन करते थे। जिससे उनकी निरीक्षण शक्ति बढ़ी। परंपरागत प्रजाति से अलग प्रजाति का उत्पादन करने का विचार मन में आते ही उन्होंने वर्ष 1983 को पटेल-3  नामक धान प्रजाति की फसल बोयी। उसमें उन्हें तीन अलग-अलग किस्म के धान के बीज मिले। उन्होंने तीन वर्ष में कड़ी मेहनत कर धान की नई प्रजातियां तैयार कीं। उस वक्त इन प्रजातियों के धान का नाम रखे बिना ही इन्हें बाजार में बिक्री के लिए लाया गया।

 

व्यापारियों ने जब उनसे इस धान के नाम पूछे तो उन्होंने इसका नाम उस समय की प्रसिद्ध घड़ी HMT बता दिया। तब से सामने आई HMT चावल की नई प्रजाति। इससे दादाजी खोब्रागड़े HMT चावल के जनक के रूप में सुप्रसिद्ध हुए। उसके बाद उन्होंने डेढ़ एकड़ जमीन में आठ से अधिक नई प्रजातियों का संशोधन किया। कृषि क्षेत्र में दिए गए योगदान के लिए राज्य सरकार ने 2006 में कृषि क्षेत्र के सर्वोच्च पुरस्कार कृषि रत्न से उन्हें सम्मानित किया। 5  जनवरी 2005  को अहमदाबाद में तत्कालीन राष्ट्रपति डा. एपीजे अब्दुल कलाम के हाथों उनका अनुसंधान के लिए सम्मानित किया गया। 2010 में अंतरराष्ट्रीय फोब्र्स मैग्जीन ने विश्व के सर्वोत्तम ग्रामीण उद्योजकों की सूची में स्थान देकर उन्हें सम्मानित किया था। इस तरह वर्ष 1990 से लेकर 2015  तक वे अनेक पुरस्कारों से नवाजे गए।

 

कृषि रत्न पुरस्कार मिलने के बाद उन्हें इस संशोधन को आगे बढ़ाने के लिए सरकारी भूमि व अनुसंधान केंद्र उपलब्ध करवाने का भी सरकार ने आश्वासन भी मिला, जो पूरा नहीं किया गया। राष्ट्रवादी कांग्रेस के तत्कालीन उपमुख्यमंत्री अजीत पवार ने राकांपा फंड से उन्हें ५ एकड़ जमीन देने की घोषणा की थी। उसकी पूर्तता पवार ने 2010 में ही की। दादाजी ने अपना संपूर्ण जीवन धान की प्रजातियों के संशोधन में लगा दिया। सरकारी कृषि अनुसंधान केंद्र ने भी उनके संशोधन का लाभ लिया। वह और भी संशोधन करना चाहते थे, किन्तु 2015  में उन्हें अर्धागवायु अर्थात पैरालिसिस का अटैक आया और उनका काम वहीं रुक गया। अब दादाजी पिछले तीन वर्ष से बिस्तर पर हैं। 

आर्थिक रूप से बदहाल हुआ परिवार
बता दें कि प्राकृतिक आपदा के चलते लगातार फसलों का नुकसान हो रहा है। परिवार की कम आमदनी में उनके इलाज का खर्च और परिवार का गुजारा मुश्किल से हो रहा है। उनके पुत्र मित्रजीत पिता की विरासत को आगे बढ़ाना चाहते हैं, किन्तु बिना सरकारी सहायता के ऐसा कर पाना उनके लिए कठिन है। डा. कलाम से लेकर शरद पवार जैसी कई बड़ी हस्तियों के हाथों सम्मानित इस संशोधक की मौजूदा स्थिति देखकर केवल पुरस्कारों के दम पर जीवन की गाड़ी नहीं चल सकती, ऐसा अनुभव हो रहा है। उनके इलाज के लिए विशेष सहायता देने के लिए सरकार, जनप्रतिनिधि और कृषक समाज को आगे आने की जरूरत है। 

 

सरकारी सहायता की आशा
पुरस्कारों का शतक पार करनेवाले मेरे पिता आज जिंदगी और मौत के बीच संघर्ष कर रहे हैं। लगातार अउपज से गुजारा करना मुश्किल है। ऐसे में पिता   का इलाज और उनके संशोधन को आगे बढ़ाने सरकारी स्तर पर सहायता मिलने की अपेक्षा है। मैंने भी पिता के नक्शे कदम पर चलकर संशोधन शुरू किया है। इसके लिए सरकारी सहायता मिले तभा यह काम आगे बढ़ सकेगा।   (मित्रजीत खोब्रागड़े कृषि रत्न दादाजी के सुपुत्र)
 

Created On :   27 April 2018 10:03 AM GMT

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