बिहार की सियासत के वो दिन जब लालू चलाते थे तानाशाही हुक्म

Lalu prasad yadav used to dictatorship order in bihar politics
बिहार की सियासत के वो दिन जब लालू चलाते थे तानाशाही हुक्म
बिहार की सियासत के वो दिन जब लालू चलाते थे तानाशाही हुक्म

डिजिटल डेस्क, पटना। बिहार की सियासत में इन दिनों काफी हलचल मची हुई है। एक तरफ लालू यादव को जेल में हैं, तो वहीं दूसरी तरफ उनके विरोधी खेमे खुशिया मनाई जा रही हैं। एक बार फिर से लालू प्रसाद यादव को जेल में बंद देख उनके विपक्षियों की खुशी का ठिकाना नहीं है। कोई लालू यादव के खिलाफ बोल रहा है तो कोई उनके पक्ष में, पक्ष में बोलने वालों का कहना है कि लालू ने जनहित का काम किया है, तो विपक्ष में बोलने वालों ने कहा कि उनके पापों का घड़ा भर गया है। चारा घोटाले का पीछा अभी नहीं छूटने वाला है। जेल मैनुअल के पन्‍ने पलटे गए हैं। लालू को पहले जैसे जेल में बैठकर एकछत्र राज करने का मौका नहीं मिलेगा।

 

 

बता दें कि इस साल लालू यादव के 12 ठिकानों में सीबीआई ने छापेमारी की है। मीसा भारती, राबड़ी, और बेटों समेत सभी इस साल कंट्रोवर्सी में रहे। लालू यादव पर रेल मंत्री रहते गड़बड़ी करने के आरोप हैं। मामला साल 2006 में रेलवे के होटल आवंटन में गड़बड़ी से जुड़ा है। उस समय लालू यादव रेल मंत्री थे। लालू यादव और उनका परिवार बेनामी संपत्ति मामले को लेकर भी घिरे हुए हैं। उनके परिवार पर अपने प्रभाव का इस्तेमाल करते हुए बेनामी संपत्ति अर्जित करने का आरोप है। इस मामले में उनकी बेटी मीसा भारती और दामाद शैलेश कुमार पर भी आरोप लग रहे हैं। हालांकि लालू यादव का आरोप है कि यह सब केंद्र सरकार की साजिश है।

 

 

लल्लन सिंह से हुआ था मनमुटाव

हालांकि उन्हें रांची की बिरसा जेल में वीआईपी ट्रीटमेंट दिया जा रहा है। जानकारी के अनुसार, हफ्ते में तीन लोग से अधिक उनसे नहीं मिल सकते हैं। वह मुलाकात भी मात्र दस मिनटों की होगी। बता दें कि चारा घोटाले में लालू प्रसाद को घेरने में सबसे बड़ी भूमिका सरयू राय, शिवानंद तिवारी, ललन सिंह और सुशील कुमार मोदी ने निभाई है। मंत्री ललन सिंह को ‘कागजों का डॉक्‍टर’ भी कहा जाता है। उनके बारे में बताया जाता है कि वे दूसरों के लिए बे मतलब से दिखने वाले कागजों को भी संभाल कर रखते हैं। कई बार उन्हीं कागजों की मदद से वे भ्रष्टाचार करने वाले लोगों का पर्दाफाश भी करते हैं। बता दें कि चारा घोटाले के पर्दाफाश में भी कागजों को जुटाने-सहेजने का सबसे बड़ा काम ललन सिंह और सरयू राय ने मिलकर ही किया था। सरयू राय झारखंड में मंत्री हैं, वे सुशील कुमार मोदी बिहार के डिप्‍टी सीएम भी हैं। ललन सिंह संघर्ष के दिनों से नीतीश कुमार के भरोसेमंद रहे हैं। बीच में, कुछ समय के लिए वे अलग हुए थे, लेकिन जल्‍द ही फिर से साथ हो लिए।

 

 

नीतीश कुमार चाहते थे गुड गवर्नेंस

हालांकि अभी शिवानंद तिवारी राजनीतिक कारणों से लालू प्रसाद यादव के साथ खड़े हैं। चारा घोटाले का पर्दाफाश होने से पहले 1992 में ही लालू यादव के चाल-चलन से नीतीश कुमार का मन विद्रोही बन गया था। हालांकि उन्होंने कभी इस पर खुले तौर पर कुछ नहीं कहा और लालू के साथ बने रहें। उस वक्‍त तक केन्‍द्र में प्रधानमंत्री विश्‍वनाथ प्रताप सिंह की सरकार का पतन हो चुका था। ऐसे में, नीतीश कुमार भी देवी लाल के अधीन कृषि राज्‍य मंत्री की कुर्सी गंवा चुके थे। जर्नलिस्‍ट संकर्षण ठाकुर की बुक सिंगल मैन: द लाइफ एंड टाइम्स ऑफ नीतीश कुमार में लिखा है कि 1992 के अंतिम महीनों में लालू प्रसाद से नीतीश कुमार का मतभेद सतह पर आने लगा था। उस समय भी नीतीश कुमार गुड गवर्नेंस की बात पर ही लालू प्रसाद से बहस कर रहे थे।  

  

 

सिर्फ अपनी मनमानी चलाते थे लालू


लालू प्रसाद सीएम की हैसियत से दिल्‍ली के बिहार भवन में आए हुए थे। जहां नीतीश कुमार बिहार के एक गुट के नेताओं समेत उन्हें मिलने के लिए गए थे। नीतीश कुमार अपने साथ कुछ ऐसे कामों की सूची भी लेकर गए थे, जो उनके हिसाब से सरकार द्वारा किए जाने चाहिए थे। इस दौरान उनके साथ शिवानंद तिवारी, वृष्णि पटेल और ललन सिंह भी मौजूद थे। भाजपा नेता सरयू राय तब नालंदा और सोन क्षेत्र के किसानों के सिंचाई तथा बिजली मुद्दे को तेजी से उठा रहे थे। बिहार का किसान भी उन दिनों महीनों से शांतिपूर्वक आंदोलन कर रहा था। सीएम लालू प्रसाद के कमरे में नीतीश कुमार की चल रही बैठक से कुछ ही देर में गाली-गलौज की आवाजें आने लगी। बुक में यहां तक लिखा था कि कमरे में मारपीट भी हुई। कमरे से लालू यादव के चीखने की सबसे ज्यादा आवाजें आ रहीं थीं। लालू सबसे ज्यादा लल्लन सिंह पर गुस्सा थे और उन्हें घसीट कर कमरे से बाहर फेंक देने का हुक्म दे रहे थे।

 

इससे पहले कि लालू प्रसाद यादव किसी को भी मीटिंग रूम से अपने बॉडीगार्ड के द्वारा बाहर फिकवा पाते नीतीश कुमार अपने साथ लेकर आए लोगों को लेकर वहां से निकल पड़े और लालू से कहते गए कि ‘अब साथ चल पाना मुश्किल है’….लालू जी। 
 

Created On :   27 Dec 2017 5:58 AM GMT

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