आज है महेश नवमी, जानिए क्या है इसकी पौराणिक कथा
डिजिटल डेस्क, भोपाल। प्रतिवर्ष ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को "महेश नवमी" के नाम से जाना जाता है। इस वर्ष ये तिथि 21 जून 2018 को पड़ रही है। परंपरागत मान्यता के अनुसार माहेश्वरी समाज की वंशोत्पत्ति युधिष्ठिर संवत के ज्येष्ठ माह शुक्ल पक्ष नवमी को हुई थी, तभी से माहेश्वरी समाज प्रतिवर्ष की ज्येष्ठ माह शुक्ल पक्ष नवमी को "महेश नवमी" के नाम से माहेश्वरी वंशोत्पत्ति दिन के रूप में बहुत धूम-धाम से मनाता है। यह पर्व मुख्य रूप से भगवान महेश (महादेव) और माता पार्वती की आराधना को समर्पित है।
मान्यता है कि, युधिष्ठिर संवत 9 ज्येष्ठ माह शुक्ल नवमी के दिन भगवान महेश और आदिशक्ति माता पार्वती ने ऋषियों के श्राप के कारण पत्थर बने हुए 72 क्षत्रिय उमराओं को श्रापमुक्त किया और पुनर्जीवन देते हुए कहा कि "आज से तुम्हारे वंश पर हमारी छाप रहेगी, तुम "माहेश्वरी" कहलाओगे"।
भगवान महेश और माता पार्वती की कृपा से 72 क्षत्रिय उमरावों को पुनर्जीवन मिला और माहेश्वरी समाज की उत्पत्ति हुई। इसलिए भगवान महेश और माता पार्वती को माहेश्वरी समाज के संस्थापक मानकर माहेश्वरी समाज में यह उत्सव "माहेश्वरी वंशोत्पत्ति दिन" के रुप में बहुत ही भव्य रूप धूम-धाम से मनाया जाता है। इस उत्सव की तैयारी पहले से ही शुरु हो जाती है। इस दिन धार्मिक व सांस्कृतिक कार्यक्रम किए जाते हैं, शोभायात्रा निकाली जाती है, भगवान महेशजी की महाआरती होती है। यह पर्व भगवान महेश और पार्वती के प्रति पूर्ण भक्ति और आस्था प्रकट करता है।
महेश स्वरूप में आराध्य भगवान "शिव" पृथ्वी से भी ऊपर कोमल कमल पुष्प पर बेलपत्ती, त्रिपुंड, त्रिशूल, डमरू के साथ लिंग रूप में शोभायमान होते हैं। भगवान शिव के इस बोध चिह्न के प्रत्येक प्रतीक का अपना महत्व है। पृथ्वी गोल परिधि में है परंतु भगवान महेश ऊपर हैं अर्थात पृथ्वी की परिधि भी
उन्हें नहीं बांध सकती वह एक लिंग के रूप में संपूर्ण ब्रह्मांड में सबसे ऊपर हैं।
ॐ का महत्व
कमल के बीच की पंखुड़ी पर अंकित है ॐ। अखिल ब्रह्मांड का द्योतक, सभी मंगल मंत्रों का मूलाधार, परमात्मा के अनेक रूपों का समावेश किए सगुण-निर्गुणाकार एकाक्षर ब्रह्म आदि से सारे ग्रंथ भरे पड़े हैं। हमारा समाज आस्तिक एवं प्रभु पर विश्वास एवं श्रद्धा रखने वाला है। अतः ईश्वरीय श्रद्धा का प्रतीक है ॐ।
त्रिपुंड का महत्व
इसमें तीन आड़ी रेखाएं हैं, जो कि संपूर्ण ब्रह्मांड को समाए हुए हैं। एक खड़ी रेखा यानी भगवान शिव का ही तीसरा नेत्र, जो कि दुष्टों के दमन हेतु खुलता है। यह त्रिपुंड भस्म से ही लगाया जाता है जो कि देवाधिदेव महादेव की वैराग्य वृत्ति के साथ ही त्यागवृत्ति की ओर इंगित करता है तथा हमें आदेश देता है कि हम भी अपने जीवन में हमेशा त्याग व वैराग्य की भावना को समाहित कर समाज व देश का उत्थान करें।
त्रिशूल का महत्व
विविध तापों को नष्ट करने वाला एवं दुष्ट प्रवृत्ति का दमन कर सर्वत्र शांति की स्थापना करता है।
डमरू का महत्व
स्वर, संगीत की शिक्षा देकर कहता है उठो, जागो और जनमानस को जागृत कर समाज व देश की समस्याओं को दूर करो, परिवर्तन का डंका बजाओ।
कमल का महत्व
जिसमें नौ पंखुड़ियां हैं, जो कि नौ दुर्गाओं का प्रतीक है। नवमी ही हमारा उत्पत्ति दिवस है। कमल ही ऐसा पुष्प है जिसे भगवान विष्णु ने अपनी नाभि से अंकुरित कर ब्रह्माजी की उत्पत्ति की। महालक्ष्मी कमल पर ही विराजमान हैं व दोनों हाथ में कमल पुष्प लिए हैं।
ज्ञान की देवी सरस्वतीजी भी श्वेत कमल पर विराजमान हैं। इतना ही नहीं कमल कीचड़ में खिलता है, जल में रहता है, परंतु किसी में भी लिप्त नहीं रहता है। यही भाव हमारे समाज का होना चाहिए। काम करेंगे और करते रहेंगे, न कोई फल की इच्छा, न कोई पद की चाह, न कोई मान-सम्मान। बस हम भी कमल की तरह खिलते रहें, मंगल करते रहें।
बेलपत्ती का महत्व
त्रिदलीय बिल्व पत्र हमारे स्वास्थ्य का प्रतीक है। भगवान महेश के चरणों में अर्पित है श्रद्धा युक्त बेलपत्र, जो कि शिव को परमप्रिय है।
सेवा का महत्व
समाज का बहुत बड़ा ऋण हमारे ऊपर रहता है। अतः यह नहीं सोचें कि समाज ने हमें क्या दिया वरन समाज को हम क्या दे रहे हैं। यही सेवा भाव होना चाहिए। जैसे माता पुत्र की सेवा करती है, परंतु बदले में कुछ नहीं चाहती। सेवा में अनेक समस्याएं आती हैं, जिसे हम सुलझा सकते हैं।
त्याग का महत्व
त्याग की महिमा से तो हिन्दुओं के ही नहीं संसार के समस्त धर्मों के शास्त्र भरे पड़े हैं। हमारे पूर्वज सादगीपूर्ण जीवन अपनाकर बची पूंजी समाजोपयोगी कार्य में लगाकर स्वयं को धन्य मानते थे।
सदाचार का महत्व
मानव जीवन में सदाचार का बहुत ऊंचा स्थान है। जिस व्यक्ति में, परिवार में, समाज में चरित्रहीनता, व्यसनाधीनता, अनैतिकता, गुंडागर्दी, भ्रष्टाचार आदि बड़े पैमाने पर व्याप्त हों तो उस समाज की उन्नति नहीं हो सकती और जब समाज प्रगति नहीं करता तो उस देश की प्रगति नहीं होती। इसलिये व्यक्ति का सदाचारी होना बहुत आवश्यक है।
Created On :   15 Jun 2018 8:26 AM GMT