गजब की है इनकी अदा, हो जाते हैं लोग फिदा

male artists played role as female character no one recognize
गजब की है इनकी अदा, हो जाते हैं लोग फिदा
गजब की है इनकी अदा, हो जाते हैं लोग फिदा

दीप्ति मुले, नागपुर।   उपराजधानी में ऐसे भी मेल कलाकार हैं जिन्होंने फिमेल का किरदार जिस खूबी से निभाया उससे उन्हें पहचान पाना उतना आसान नहीं था। देेखा जाए तो पुरुष होकर महिला का किरदार निभाना न सिर्फ एक चुनौती नहीं है, बल्कि यह बहुत बड़ा चैलेंज है। उस किरदार में इस ढंग से फिट होना चाहिए कि कोई जज ही न कर पाए कि, पुरुष द्वारा महिला का किरदार निभाया जा रहा है और हम कलाकारों के महिला किरदार के जाॅब को भी एक्सेप्ट किया।  महिला के किरदार के लिए सबसे ज्यादा चैलेंजिंग है साड़ी पहनना। तब हमने सोचा कि, महिलाएं  साड़ी पहनकर कैसे सर्वाइव करती हैं। यह कहना था उन कलाकारों का, जिन्होंने  कई नाटक, फिल्में तथा नुक्कड़ नाटक में महिला किरदार का रोल प्ले किया है। उनसे चर्चा के दौरान ये सारी बातें सामने आईं। सभी कलाकारों ने अपने-अपने अनुभवों को शेयर किया। 

पहले दिन अजीब लगा 
कलाकार को चाहे जो भी रोल दिया जाए, उसे पूरा करना ही होता है। बस, यही बात सोची। जब निर्देशक ने मुझे आने वाली मराठी फिल्म "फैमिली 420' के लिए "नारंगी' के रोल के लिए कहा। पहले दिन तो सेट पर बड़ा अजीब लगा, पुरुष होकर महिला की तरह बोलना, चलना, पर मैंने उस रोल को बखूबी निभाया। साड़ी पहनकर पूरे दिन शूटिंग करना थोड़ा इरिटेटिंग रहा। पर फिर सोचा कलाकार को अपनी कला दिखाने का जब भी मौका मिले तो उसे दिखाना चाहिए। 
(अनिल पालकर, आर्टिस्ट)

डिसेंसी के साथ निभाए किरदार
वैसे तो मैंने कई जगह महिला किरदार की भूमिका निभाई है, पर "मोरू ची मावशी' मराठी नाटक में  "मावशी" का किरदार निभाने के बाद अलग ही पहचान बनी। जब आप प्ले कर रहे होते हैं तो उसमें हर रोल के लिए तैयार रहना पड़ता है। जब मुझे "मोरू ची मावशी' में "कनकलक्ष्मी ऑफ कांदा की महारानी' का किरदार मिला तो मैं उस रोल के लिए बड़ा ही उत्साहित था। मैंने बखूबी उस किरदार को पूरा किया। यह थोड़ा हटकर था क्योंिक हमेशा पुरुष किरदार में कई रोल प्ले किए हैं, पर महिला का किरदार निभाते समय कॉस्ट्यूम, मेकअप, एक्सप्रेशन, बॉडी लैंग्वेज सभी चीजों पर ध्यान देना होता है। इसके अलावा मैंने महिला किरदार के रोल में नव्वारी साड़ी भी पहनी है और उसमें भी सक्सेस रहा। 
(राजेश चिटणीस, आर्टिस्ट)

साठ-सत्तर के दशक में ज्यादा करते थे 
साठ-सत्तर के दशक में जब लड़कियों को नाटक और कला के क्षेत्र में आने की अनुमति नहीं थी, तब ज्यादातर महिला के किरदार पुरुष ही किया करते थे। आजकल तो गर्ल्स हर क्षेत्र में है। सत्तर के दशक में मैंने "होती एक शारदा' नाटक में "शारदा' का रोल प्ले किया था। सभी ने उस किरदार को बहुत सराहा था। कलाकर होने के नाते मेरा तो यही कहना है कि कलाकार को जो भी किरदार करने को कहा जाए उसे पूरी ईमानदारी के साथ निभाना चाहिए। 
(प्रभाकर अंबोने, आर्टिस्ट)

Created On :   17 Jan 2018 8:05 AM GMT

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