वॉटर कप स्पर्धा में शामिल हुए आदिवासी व ग्रामीण

Many tribal and rural participated in the water cup competition
 वॉटर कप स्पर्धा में शामिल हुए आदिवासी व ग्रामीण
 वॉटर कप स्पर्धा में शामिल हुए आदिवासी व ग्रामीण

डिजिटल डेस्क, मोर्शी (अमरावती)। समीपस्थ भोईकुंडी गांव में पानी फाउंडेशन व सत्यमेव जयते वॉटर कप स्पर्धा में ग्रामवासी सक्रिय रूप से श्रमदान करने शामिल हुए। स्पर्धा की शुरुआत आदिवासी नृत्य व ढोलताशे से की गई। जहां स्पर्धा की शुरुआत हुई है, वह मोर्शी तहसील का भोईकुंडी आदिवासी बहुल गांव है। वॉटर कप अंतर्गत गांव में बड़े पैमाने पर जनसहयोग से श्रमदान द्वारा यह योजना आरंभ की जा रही है, जिसमें गांव का हर शख्स हिस्सा ले रहा है।

गांव के महिला, पुरुष, युवक यहां तक नौनिहाल भी इसमें शामिल हो रहे हैं। इसी तरह न्यू जनरेशन केअर फाउंडेशन की टीम, चिकित्सक भी कार्यक्रम में हिस्सा ले रहे हैं। ग्रामवासियों ने ढोलताशे के साथ जुलूस निकाल कर जगह-जगह आदिवासी नृत्य की प्रस्तुति दी। खुदाई के लिए निर्धारित जगह पर सभी सामग्री का पूजन किया गया एवं उत्साही वातावरण में जलसंधारण के कार्य की शुरुआत की गई। 45 दिनों तक लगातार श्रमदान किया जाएगा, यह संकल्प ग्रामवासियों की ओर से दोहराया गया। इस समय सूखे पर मात करने के लिए ग्रामवासी हर संभव प्रयास कर रहे हैं। पानी फाउंडेशन के विशेषज्ञों द्वारा ग्रामवासियों को जलसंधारण के काम कैसे करना चाहिए, इस बारे में मार्गदर्शन किया गया। 

कार्यक्रम में गांव के सरपंच, ग्रामपंचायत सदस्य, आंगनवाड़ी सेविका, विद्यार्थी, गांव के युवक, वृध्दा, न्यू जनरेशन फाउंडेशन के अध्यक्ष नवीनकुमार पेठे, संतोषकुमार पेठे, आकाश भोंडे, अक्षय राऊत, डा. विजय वानखडे, डा. पंकज मुले, मंगेश अकर्ते, एड. श्रीवास, अनिल जावले, हिमांशु मालवीय, पानी तथा फाउंडेशन के उमक व कार्यकर्ता उपस्थित थे।

बढ़ता तापमान पर्यावरण के लिए बन रहा घातक
दिनोदिन बढ़ने के चलते पेड़-पौधों पर इसका बुरा असर पड़ रहा है। गत वर्ष बरसात अपर्याप्त होने के कारण शहर में एक दिन के अंतराल पर जलापूर्ति की जा रही है। किंतु बरसात व शीतकाल में पानी की अधिक आवश्यकता न रहने के चलते शहरवासी, परिसर में रोपे गए पौधों को पानी से सींचकर जीवनदान देते थे किंतु ग्रीष्मकाल में पानी की आवश्यकता बढ़ गई है।

नष्ट होने के बाद पनपना मुश्किल 
पौधों को ग्रीष्मकाल में पर्याप्त प्रमाण में पानी नहीं मिला तो वे नष्ट हो सकते हैं। उनका दुबारा पनपना लगभग असंभव होता है। कई स्थानों पर सड़क किनारे के पौधों को दोपहर के समय पानी से सिंचित किया जाता है। यह गलत है। क्योंकि तेज धूप के कारण पानी पौधों तक पहुंच ही नहीं पाता। इसलिए सुबह या शाम के समय ही पानी देना उचित है। 
- सागर मैदानकर, अध्यक्ष, पोहरा जंगल बचाव समिति
 

Created On :   10 April 2019 10:21 AM GMT

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