VIDEO : गंगा के तट पर बाबा विश्वनाथ, त्रिशूल पर बसी है पूरी नगरी

Most famous Kashi Vishvanath Temple is dedicated to Lord Shiva
VIDEO : गंगा के तट पर बाबा विश्वनाथ, त्रिशूल पर बसी है पूरी नगरी
VIDEO : गंगा के तट पर बाबा विश्वनाथ, त्रिशूल पर बसी है पूरी नगरी

डिजिटल डेस्क, वाराणासी। पवित्र मां गंगा नदी के पश्चिमी तट पर स्थित वाराणसी नगर विश्व के प्राचीनतम शहरों में से एक माना जाता है। इस नगर के हृदय में बसा है भगवान काशी विश्वनाथ का मंदिर। जो भगवान शिव के 12 ज्योर्तिंलिंगों में से एक है। ऐसा माना जाता है कि एक बार इस मंदिर के दर्शन करने और पवित्र गंगा में स्‍नान कर लेने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। 

कण-कण में चमत्कार 

ऐसा माना जाता है कि भगवान शिव यहां माता पार्वती के साथ साक्षात वास करते हैं। यहां का कण-कण चमत्कारों से भरा पड़ा है। मान्यता है कि कभी भगवान विष्णु व ब्रम्हदेव का भी यहां आगमन हुआ था। भगवान शिव काशी को अपने त्रिशूल पर धारण करते हैं। जिसका उल्लेख स्कंद पुराण में है। जिसकी वजह से ये कहा जाता है कि काशी शिव के त्रिशूल पर बसी है। 

यहां मिलता है मोक्ष 

ऐसी मान्यता है कि काशी के तट पर जिस इंसान की भी अंतिम क्रिया होती है उसे मोक्ष की प्राप्ती होती है, इसलिए यहां दूर-दूर से लोग अपने प्रियों, रिश्तेदारों को लेकर अंतिम संस्कार करने अाते हैं। यहां स्थित श्मशान को सबसे बड़ा श्मशान भी माना जाता है। एेसी भी मान्यता है कि भूतभावन का इस श्मशान में वास है।

आरती का समय 

यह मंदिर प्रतिदिन 2.30 बजे भोर में मंगल आरती के लिए खोला जाता है जो सुबह 3 से 4 बजे तक होती है। दर्शनार्थी टिकट लेकर इस आरती में भाग ले सकते हैं। तत्पश्चात 4 बजे से सुबह 11 बजे तक सभी के लिए मंदिर के द्वार खुले होते हैं। 11.30 बजे से दोपहर 12 बजे तक भोग आरती का आयोजन होता है। 12 बजे से शाम के 7 बजे तक पुनः इस मंदिर में सार्वजनिक दर्शन की व्यवस्था है। 

शाम 7 से 8.30 बजे तक सप्तऋषि आरती के पश्चात रात के 9 बजे तक सभी दर्शनार्थी मंदिर के भीतर दर्शन कर सकते हैं। 9 बजे के पश्चात मंदिर परिसर के बाहर ही दर्शन संभव होते हैं। अंत में 10.30 बजे रात्रि से शयन आरती प्रारंभ होती हैए जो 11 बजे तक संपन्न होती है। चढ़ावे में चढ़ा प्रसादए दूधए कपड़े व अन्य वस्तुएं गरीबों व जरूरतमंदों में बांट दी जाती हैं।  

Created On :   31 Aug 2017 4:11 AM GMT

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