नागपुर : अंतिम सांसें गिन रहा देश का पहला मूविंग रेस्टाेरेंट

Nagpur: countrys first moving restaurant counting last breaths
नागपुर : अंतिम सांसें गिन रहा देश का पहला मूविंग रेस्टाेरेंट
नागपुर : अंतिम सांसें गिन रहा देश का पहला मूविंग रेस्टाेरेंट

डिजिटल डेस्क, नागपुर। उपराजधानी सहित देश का पहला मूविंग रेस्टाेरेंट अंतिम सांसें गिन रहा है। दक्षिण मध्य पूर्व रेल विभाग ने मोतीबाग के रेल संग्रहालय के भीतर देश के पहले मूविंग रेस्टाेरेंट को शुरू किया था। इस अनूठे रेस्टाेरेंट के माध्यम से टर्न टेबल की विलुप्त तकनीक को नई पीढ़ी के सामने लाने का लक्ष्य रखा गया था। इस तकनीक में इंजन की दिशा को बदला जाता था। इस प्रक्रिया में स्टैंड पर इंजन को खड़ा करने के बाद दो कर्मचारी मैन्युअल पद्धति से इंजन की दिशा बदल देते थे। लेकिन पिछले 10 सालों में रेस्टाेरेंट के संचालन के लिए कोई भी स्थायी ठेका एजेंसी ही नहीं मिली। रेल विभाग ने प्रायोगिक तौर पर दो बार निजी एजेंसी को अल्पकाल के लिए इसके संचालन की अनुमति दी थी, लेकिन तकनीकी और कानूनी प्रक्रिया के चलते सकारात्मक परिणाम नहीं मिले। रेलवे विभाग के मुताबिक संग्रहालय में आने वाले नागरिकों की कमी के चलते व्यापक प्रतिसाद नहीं मिल रहा है।

रेस्टाेरेंट के संचालन के लिए कोई नहीं आया सामने 

समेत आसपास के जिलों को दक्षिण पूर्व रेल विभाग ने कभी रेलवे की अभिन्न सेवा के रूप में गाेंदिया, जबलपुर, मंडला, सिवनी और छिंदवाड़ा को छोटी रेल सेवा (नैरोगेज रूट) से जोड़ा था। बरसों तक दक्षिण पूर्व रेल विभाग का संचालन मुख्यालय कोलकाता में गार्डन रीच से हुआ करता था। बदलते दौर में नैरोगेज रूट की प्रासंगिकता न होने पर वर्ष 2003 में दक्षिण मध्य पूर्व रेल विभाग में भी बदलाव किया  गया। उपराजधानी में मुख्यालय होने के बाद पुराने अवशेषों और इंजन को संग्रहालय में तब्दील कर दिया गया। नई पीढ़ी के सामने रेलवे के प्राचीन इतिहास और तकनीक को प्रस्तुत करने के लिए रेल प्रशासन ने देश में पांच बड़े संग्रहालय बनाए है। इसमें नई दिल्ली, हावड़ा, चेन्नई और मैसूर के अलावा नागपुर का समावेश है। भारतीय रेलवे की 150वीं वर्षगांठ पर संग्रहालयों को तत्कालीन रेलमंत्री नीतीश कुमार ने 14 दिसंबर 2002 को देश को समर्पित किया था। इन संग्रहालयों की विशेषता यह है कि क्यूरेटर की बजाय खुद रेल कर्मचारी ही इनकी देखभाल करते हैं। शहर के ऐतिहासिक संग्रहालय में ही 10 साल पहले देश का पहला मूविंग रेस्टाेरेंट बनाया गया था। ट्रेन के डिब्बाें के भीतर वातानुकूलित रेस्टाेरेंट में बैठकर खाद्य सामग्री के साथ बाग के नजारों का भी दीदार किया जा सकता था लेकिन संग्रहालय में बहुत कम ही नागरिक आते हैं। इससे इस रेस्टाेरेंट के संचालन के लिए कोई भी एजेंसी सामने नहीं आ रही है। हालांकि दो बार रेल प्रशासन ने प्रायोगिक तौर इसके संचालन का प्रयास किया, लेकिन तकनीकी और कानूनी दिक्कतों के चलते यह प्रयास भी सफल नहीं हो पाया।

कोई ठेका एजेंसी तैयार नहीं

दक्षिण मध्य रेल विभाग का लक्ष्य नई पीढ़ी और नागरिकों के सामने रेलवे के गौरवशाली इतिहास को रखना था। इसके मद्देनजर खराब हाेते नैरोगेज के दो कोच को मूविंग रेस्टाेरेंट में तब्दील किया गया था। शुरू में रेल प्रशासन ने दो ठेका एजेंसियों को प्रायोगिक तौर पर तीन-तीन माह के लिए इसके संचालन का जिम्मा सौंपा था, लेकिन इसके बाद कानूनी बाध्यता के चलते टेंडर प्रक्रिया करने के प्रयास शुरू किये गये। इस प्रक्रिया में दो बार निजी एजेंसी से रेस्टाेरेंट के संचालन के लिए प्रस्तावों को आमंत्रित किया गया, लेकिन रेल विभाग के मापदंडों को कोई भी एजेंसी पूरा नहीं कर पाई। इसके बाद दो बार ओपन टेंडर बोली के माध्यम से भी इसका ठेका देने का प्रयास किया गया। 4 साल पहले निजी ठेका कंपनी कोलकाता रोल्स को दोबारा से प्रायोगिक तौर पर संचालन का जिम्मा सौंपा गया, लेकिन नागरिकों का व्यापक प्रतिसाद नहीं मिलने से यह प्रयास विफल हो गया। पिछले साल अगस्त माह में भी रेल विभाग ने रेस्टाेरेंट के संचालन के लिए टेंडर प्रक्रिया शुरू किया, लेकिन किसी एजेंसी के सामने नहीं आने से मामला ठंडे बस्ते में चला गया है। हालांकि निर्धारित शुल्क के साथ पर्यटकों को मूविंग रेस्टाेरेंट में बैठकर साथ लाई खाद्य सामग्री का आनंद उठाने की इजाजत दी गई है। 

Created On :   10 Aug 2019 12:08 PM GMT

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