दुर्गा अष्टमी पर हो रही है महागौरी की आराधना

Navratri 2018:on Durga Ashtami,goddess MahaGauri will be Worship
दुर्गा अष्टमी पर हो रही है महागौरी की आराधना
दुर्गा अष्टमी पर हो रही है महागौरी की आराधना

डिजिटल डेस् । नवरात्रि के पर्व में आठवां दिन माता महागौरी "दुर्गाअष्टमी" का होता है। इस बार अष्टमी की पूजा 17 अक्टूबर 2018 को मनाई जा रही है। देवी दुर्गा जी की आठवीं शक्ति का नाम महागौरी है। दूर्गा पूजा के आठवें दिन महागौरी की पूजा,साधना,उपासना का विधान दिया गया है। महागौरी की शक्ति अमोघ और उच्च फलदायिनी है। माता की उपासना से भक्तों को सभी कार्य हो जाते हैं और जीवन में किए गए कई पाप भी नष्ट हो जाते हैं। फिर भविष्य में पाप,संताप, दुःख और पीड़ा उसके पास कभी नहीं आते और माता का भक्त सभी प्रकार के पवित्र और अक्षय पुण्य फलों का अधिकारी हो जाता है।

 

माता की स्तुति का श्लोक :-

श्वेते वृषे समारुढा श्वेताम्बरधरा शुचिः | महागौरी शुभं दद्यान्महादेवप्रमोददा ||

अर्थ:-

माता का वर्ण पूर्णतः गौर (गोरा) है। माता के गौरता की उपमा शंख, चंद्र और कुंद के फूल से की गई है। 

इनकी आयु आठ वर्ष की मानी गई है- "अष्टवर्षा भवेद् गौरी।"  
माता के वस्त्र एवं समस्थ आभूषण आदि भी श्वेत ही हैं।

माता महागौरी की चार भुजाएं हैं। इनका वाहन वृषभ (बैल) है। 
इनके ऊपर के सीधे हाथ में अभय मुद्रा और नीचे वाले सीधे हाथ में त्रिशूल है। 
ऊपरवाले उल्टे हाथ में डमरू और नीचे वाले उल्टे हाथ में वर-मुद्रा हैं। और माता की मुद्रा अत्यंत शांत है।

 

माता महागौरी की कथा:-

माता महागौरी ने देवी पार्वती रूप में भगवान शिव को अपने पति-रूप में प्राप्त करने के लिए कठोर तपस्या की थी। एक बार भगवान भोलेनाथ पार्वती जी को देखकर कुछ कह देते हैं। जिसे सुनकर माता पार्वती का मन बहुत आहत हो जाता है और पार्वती जी रुष्ट होकर तपस्या में लीन हो जाती हैं और कई वर्षों तक कठोर तप करने पर जब माता पार्वती जी नहीं आती तो पार्वती को खोजते हुए भगवान शिव जी स्वमं ही उनके पास पहुंचते हैं। वहां पहुंचकर शिव जी पार्वती जी को देखकर आश्चर्य चकित रह जाते हैं। 

पार्वती जी का रंग अत्यंत ओजपूर्ण दिखता है और माता की छटा चांदनी के सामान श्वेत और कुन्द के फूल के समान धवल सफेद दिखाई पड़ती है, उनके वस्त्र और आभूषण से प्रसन्न होकर देवी उमा को गौर वर्ण का वरदान दे देते हैं।

एक कथा ये भी है कि, भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए पार्वती जी ने कठोर तपस्या की थी। जिस कारण इनका शरीर काला पड़ जाता है। पार्वती जी की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव जी पार्वती जी को स्वीकार करते हैं और शिव जी इनके शरीर को गंगा-जल से अभिषेक करतें हैं। उसके बाद देवी पार्वती की देह बिजली के समान अत्यंत कांतिमान गौर वर्ण की हो जाती हैं और तभी से इनका नाम गौरी पड़ा और महागौरी के रूप में देवी अत्यंत ही करूणामयी, स्नेहमयी, शांत और मृदुल रूप में दर्शन देतीं हैं। 

देवी महागौरी के इस रूप की प्रार्थना करते हुए देव और ऋषिगण स्तुति करते हुए कहते हैं।
 
“सर्वमंगल मंग्ल्ये, शिवे सर्वार्थ साधिके शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोस्तुते”। 

देवी महागौरी की पूजा का विधान भी पूर्ववत है अर्थात जिस प्रकार सप्तमी तिथि तक आपने माता की पूजा साधना की है उसी प्रकार अष्टमी के दिन भी प्रत्येक दिन की ही तरह देवी की पंचोपचार सहित पूजा की जाती हैं। माता महागौरी का ध्यान, स्मरण, पूजन-आराधना एवं साधना भक्तों के लिए सर्वत्र ही कल्याणकारी है। भक्तों को सदैव इनका ध्यान या सुमिरण करना चाहिए। माता की कृपा से अलौकिक सिद्धियों की प्राप्ति सहज ही हो जाती है। मन को अनन्य भाव से एकनिष्ठ कर जातक को सदैव इनके ही पादारविन्दों का ध्यान करना चाहिए।

माता महागौरी भक्तों का कष्ट अवश्य ही दूर करती हैं। इनकी उपासना से सभी जनों के असंभव कार्य भी संभव हो जाते हैं। अतः इनके चरणों की शरण पाने के लिए भक्तों को सर्वविध प्रयत्न करना चाहिए। पुराणों में माता महागौरी की महिमा का प्रचुर मात्रा में वर्णन किया गया है। माता जातक की वृत्तियों को सत्य की ओर प्रेरित कर असत्य का विनाश करती हैं। जातक को शुद्ध भाव से सदा माता की शरणागत रहना चाहिए। 

 

स्तुति मंत्र

या देवी सर्वभूतेषु मां गौरी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

 

स्तुती अर्थ :- 

हे मां! सर्वत्र विराजमान और मां गौरी के रूप में प्रसिद्ध अम्बे, आपको मेरा बार-बार प्रणाम है। 
हे मां, मुझे सुख-समृद्धि प्रदान करो।

Created On :   16 Oct 2018 7:38 AM GMT

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