यहां अब शुरू हुआ न्यू ईयर, जानिए क्या है इन आदिवासियों की परंपरा, खूब करते हैं एन्जाय

new year of tribal case with budapen mahadev pooja in maharashtra
यहां अब शुरू हुआ न्यू ईयर, जानिए क्या है इन आदिवासियों की परंपरा, खूब करते हैं एन्जाय
यहां अब शुरू हुआ न्यू ईयर, जानिए क्या है इन आदिवासियों की परंपरा, खूब करते हैं एन्जाय

डिजिटल डेस्क, एटापल्ली/गड़चिरोली। वैसे तो पूरी दुनिया में अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार 1 जनवरी को न्यू ईयर मनाया जाता है, जबकि हिन्दू पंचांग के अनुसार गुढ़ीपाड़वा से नववर्ष शुरू होता है। इस्लामिक कैलेंडर में मुहर्रम से नए साल की शुरुआत होती है। ठीक इसी तरह आदिवासी समुदाय भी आदिवासी नववर्ष का स्वागत बूढ़ापेन महादेव की पूजा-अर्चना कर करते हैं। इस दौरान यहां खूब एन्जाय किया जाता है। हर वर्ष अप्रैल या मई माह में एक तिथि निर्धारित कर छत्तीसगढ़ राज्य की सीमा पर बसे घोटसुर समीपस्थ कारका (बु) गांव में यह पूजा आयोजित की जाती है। इस वर्ष  16 अप्रैल को बूढ़ापेन महादेव की पूजा का आयोजन किया गया। इसी के साथ यहां के आदिवासियों के नववर्ष की शुरुआत हुई। एटापल्ली तहसील के अति नक्सल प्रभावित घोटसुर पोस्ट के छत्तीसगढ़ राज्य की सीमा पर कारका गांव बसा हुआ है। गांव में आदिवासियों के आराध्य दैवत जय सेवा जुगे डोकरी देवस्थान में सदियों से पूजा-अर्चना चलती आ रही है। नववर्ष का स्वागत करने के लिए बूढ़ापेन महादेव में मेले का आयोजन किया जाता है। 

32 गांव के लोग होते हैं इकट्‌ठा
पूजा के लिए क्षेत्र के 32 गांवों के आदिवासी दो दिनों के लिये कारका गांव में इकठ्ठा होते हैं। दो दिनों तक विभिन्न सांस्कृतिक और सामाजिक कार्यक्रमों का आयोजन कर समाज प्रबोधन भी किया जाता है। आदिवासी युवाओं के लिए लगातार दो दिवसीय रेला नृत्य का आयोजन किया जाता है। पूजा के माध्यम से आदिवासी अपने देवताओं को प्रसन्न रखते हुए गोंड समाज में सुख-शांति लाने का प्रयास करते हैं।  

होते हैं विभिन्न कार्यक्रम
बूढ़ापेन महादेव की पूजा के लिए आयोजित दो दिवसीय मेले के दौरान आदिवासी समुदाय द्वारा विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। इसके माध्यम से समाज को एकजुट करने का प्रयास किया जा रहा है। यहां जमा होने वाले 32 गांवों के आदिवासी नागरिक मेले के दौरान शादी-ब्याह भी तय करते हैं। किसी के घर में कोई परेशानी हो तो उसे हल करने के लिये समाज के बड़े-बुजुर्गों के मार्गदर्शन में निर्णय भी लिए जाते हैं। इसके अलावा गांव में विभिन्न प्रकार के कार्य करने का नियोजन भी किया जाता है। आमतौर पर आदिवासी समुदाय वनों पर आधारित विभिन्न प्रकार के रोजगार किया करते हैं। यह कार्य आरंभ करने का निर्णय भी मेले के दौरान लिया जाता है। महुआ संकलन, ताड़ी निकालना समेत तेंदूपत्ता संकलन के कार्य इसी दौरान तय किये जाते हैं। 

यहां बंद नहीं हुई बलि प्रथा
आदिवासी समाज में बलि को विशेष महत्व प्राप्त है। कारका के बूढ़ापेन महादेव की पूजा-अर्चना के दौरान भी समाज के नागरिक मुर्गा, बकरा और सुअर की बलि देते है। यह प्रथा सदियों से चलती आ रहीं है। आदिवासियों का मानना है कि बलि देने के बाद ही बूढ़ापेन महादेव प्रसन्न होते हैं। इस दौरान देवताओं को महुआ शराब भी भेंट स्वरूप चढ़ायी जाती है। नारियल, अगरबत्ती, धूप, विभिन्न प्रकार की पत्तियों से पूजा अर्चना की जाती है। किसी भी प्रकार की मन्नत पूरी करने के लिये बली देना आदिवासी समाज में पवित्र माना गया है। इस वर्ष भी कारका के मेले में बलि चढ़ाई गई। 

Created On :   19 April 2018 8:33 AM GMT

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