बिहार का घमासान : तेजस्वी का इस्तीफा है या 'बीरबल की खिचड़ी'

Nitish is also in problems with tejasvi at Bihar
बिहार का घमासान : तेजस्वी का इस्तीफा है या 'बीरबल की खिचड़ी'
बिहार का घमासान : तेजस्वी का इस्तीफा है या 'बीरबल की खिचड़ी'
डिजिटल डेस्क, पटना। बिहार की राजनीति में पिछले एक महीने से उठापठक जारी है। लालू के बेटे और डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव जिस तरह से सीबीआई के शिकंजे में फंस चुके हैं, वो असल में बिहार के सीएम नीतीश कुमार के गले की फांस है। गठबंधन की राजनीति में होने के बावजूद लालू अपना पुत्र मोह नहीं छोड़ पा रहे हैं, जिससे बिहार की राजनीति में घमासान मचा है। बावजूद इसके राजनीतिक समीकरण सुलझने का नाम नहीं ले रहे हैं। बुधवार को लालू प्रसाद यादव का एक नया बयान सामने आया है, जिसमें उन्होंने नीतीश की ओर से इस्तीफा न मांगे जाने की बात कही है। राजनीतिक पंडित इसके अलग-अलग मतलब निकाल रहे हैं, बहरहाल जो भी हो यह तो तय है कि नीतीश पर अपनी साख बचाने का भारी दबाव है। अब तो बिहार सहित देश की जनता भी शायद यही सोच रही होगी कि यह तेजस्वी का इस्तीफा है या 'बीरबल की खिचड़ी', जो पककर सामने 'थाली' में आने का नाम ही नहीं ले रही है ? 
 
भ्रष्टाचार के आरोपों में घिरे तेजस्वी के बचाव या समर्थन में अभी तक JDU की तरफ से कोई भी स्पष्ट बयान सामने नहीं आया है। नीतीश भी तेजस्वी यादव के इस्तीफे पर चुप्पी साधे बैठे हैं और दूसरी तरफ BJP लगातार हमले कर नीतीश पर दबाव बनाने की कोशिश कर रही है। 
 
एक साथ दो नाव पर सवारी 
बिहार के इस पूरे घटनाक्रम ने सीएम नीतीश की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। एक तरफ नीतीश अपनी 'सुशासन बाबू' वाली इमेज भी बरकरार रखना चाहते हैं और दूसरी तरफ महागठबंधन में भी बने रहना चाहते हैं। लेकिन ये बात नीतीश भी अच्छी तरह से जानते हैं कि वो एक साथ दो नाव पर सवार नहीं हो सकते। नीतीश के सामने सबसे बड़ी मुश्किल BJP है, क्योंकि वो  BJP को रोकना भी चाहते हैं और अपनी साख बचाने के लिए BJP की मांग भी मानना चाहते हैं। यदि अगले कुछ दिनों में नीतीश तेजस्वी से इस्तीफा नहीं लेते हैं, तो फिर BJP और आक्रामक रवैया अपना सकती है। बिहार की राजनीति ने पिछले दिनों जिस तेजी से करवट बदली है, उससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि ये सबकुछ नीतीश, लालू और महागठबंधन के लिए काफी बुरा साबित हो सकता है।
 
तेजस्वी को इस्तीफा लेना जरूरी क्यों 
बिहार के डिप्टी सीएम और लालू के बेटे तेजस्वी यादव भले ही अपने ऊपर लगे आरोपों को राजनीतिक षड़यंत्र बताते रहे हों, लेकिन एक न एक दिन उन्हें इस्तीफा देना ही पड़ेगा। उन पर जिस तरह के आरोप लगे हैं, उसे BJP पूरी तरह से भुनाना चाहती है। नीतीश पर महागठबंधन का नेता होने के नाते तेजस्वी के इस्तीफे के बहाने अपनी साख बचाने का भी भारी दबाव है। BJP नेता सुशील मोदी आए दिन लालू परिवार पर कई गंभीर आरोप लगाकर महागठबंधन की राजनीति की पोल खोल रहे हैं। ऐसे में यदि BJP को चुप कराना है, तो नीतीश को अपनी बेदाग छवि बचाने के लिए तेजस्वी का इस्तीफा लेना ही पड़ेगा। तब जाकर बिहार की राजनीति में शांति आएगी। नहीं तो इसका खामियाजा नीतीश, लालू और महागठबंधन को 2019 के आम चुनावों में भुगतना पड़ सकता है। 
BJP के साथ क्यों नहीं जा सकते नीतीश?
सीएम नीतीश चाहते तो हैं कि वो BJP से दोस्ती कर लें, लेकिन कुर्सी से उठना संभव नहीं है। उनके साथ सबसे बड़ी दिक्कत यही है कि उन्हें भले ही 'लालू एंड पार्टी' से कितनी भी दिक्कत क्यों न हो वो उनसे किनारा नहीं कर सकते हैं। और जब तक वो लालू को नहीं छोड़ेंगे BJP उनके साथ नहीं आ सकती। वैसे भी अब फिर बीजेपी के साथ जाना अपनी साख को बट्टा लगाने जैसा है, क्योंकि इस कदम से उनकी ही पार्टी में बगावत हो जाएगी। कई यादव और मुस्लिम नेता नीतीश का साथ छोड़ सकते हैं। खबर है कि सरफराज आलम, मुजाहिद आलम, सरफुद्दीन आलम और नौशाद आलम कुछ ऐसे नाम हैं, जो  BJP के साथ जाने पर JDU का साथ छोड़ सकते हैं। माना जा रहा है कि यदि नीतीश BJP के साथ जाते हैं, तो पार्टी के 71 में से 20 विधायक और 12 में से 6 सांसद नीतीश के खिलाफ जा सकते हैं।
 
तो क्या टूट सकता है महागठबंधन? 
बिहार की राजनीति में नीतीश बुरी तरह से फंस चुके हैं और उनके साथ ये परेशानी है कि उन्हें अपने दो हाथों से ही सबको गले लगाते हुए चलना है। जो इस समय काफी मुश्किल है। महागठबंधन बनाने का आइडिया नीतीश का ही था, क्योंकि वो BJP को पूरी तरह से रोकना चाहते थे और बिहार में कामयाब भी हुए। लेकिन अब जो राजनीतिक हालात बन रहे हैं, उसने महागठबंधन की नींव को हिला दिया है। तेजस्वी पर कोई भी फैसला न ले पाने से नीतीश ही चौतरफा घिर रहे हैं। अगर तेजस्वी इस्तीफा नहीं देते हैं, तो इससे उनकी और पार्टी की भी इमेज खराब होगी। और यदि लालू को बिना भरोसे में लिए तेजस्वी को पार्टी से बाहर किया गया तो महागठबंधन के अस्तित्व को झटका लगेगा।
 
लालू का पुत्र मोह बिहार की राजनीति पर भारी 
लालू किसी भी तरह से यह मानने को तैयार नहीं हैं कि उनके बेटे का इस्तीफा जायज है। वह पुत्र मोह में घृतराष्ट्र की तरह अंधे दिखाई दे रहे हैं, जो उनकी सियासत के साथ-साथ नीतीश पर भी भारी पड़ता दिख रहा है। इस पूरे विवाद पर राष्ट्रीय जनता दल (RJD) साफ कर चुकी है कि तेजस्वी पर जो भी आरोप लगाए गए हैं, वो पूरी तरह से राजनीति से प्रेरित हैं और BJP इस पूरे मामले में राजनीति कर रही है। लालू खुद ये देखना चाहते हैं कि नीतीश उन पर दबाव बनाने के लिए किस हद तक जा सकते हैं। अगर नीतीश तेजस्वी को कैबिनेट से बाहर करती है, तो भी लालू इसका राजनीतिक लाभ लेने की कोशिश करेंगे। 
 
बे-असर रही सोनिया से मुलाकात 
18 जुलाई को ही नीतीश और तेजस्वी के बीच लगभग आधे घंटे तक बंद कमरे में बातचीत हुई थी। ये बैठक तेजस्वी को भ्रष्टाचार का आरोपी बनाए जाने के बाद पहली बार हुई थी। माना जा रहा था कि इस बैठक के बाद नीतीश तेजस्वी से या तो इस्तीफा ले लेंगे या फिर उनकी बातें मानकर उनका स्टैंड लेंगे। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। सीएम नीतीश की कांग्रेस प्रेसीडेंट सोनिया गांधी से मुलाकात भी नहीं हो सकी। हालांकि मंगलवार शाम को ही तेजस्वी ने सोनिया से मुलाकात की थी, जिसमें बिहार के राजनीतिक हालात पर चर्चा के बाद भी स्थिति साफ नहीं हो पाई है। ऐसे में महागठबंधन की गांठ सुलझती नहीं दिख रही है। ना ही उम्मीद है कि अगले 24 से 48 घंटों में बिहार की राजनीति का घमासान थम सके।

Created On :   25 July 2017 4:50 AM GMT

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