नीतीश की चाल ने किया विरोधियों पर वार, 2019 में दिखेगा असर

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नीतीश की चाल ने किया विरोधियों पर वार, 2019 में दिखेगा असर
नीतीश की चाल ने किया विरोधियों पर वार, 2019 में दिखेगा असर

डिजिटल डेस्क, पटना। नीतीश कुमार ने कल देर शाम अपना इस्तीफा देकर सियासी गलियारे में हड़कंप मचा दिया। इसके कुछ देर बाद ही नीतीश का NDA में शामिल होना और देर रात तक दोबारा से सीएम बन जाना विपक्ष के लिए बहुत बड़ा खतरा साबित हो सकता है। नीतीश कुमार एक बेहतरीन राजनेता है और वो पहले ही चीजों को भांप लेते हैं। भले ही 2015 में सत्ता पाने के लिए उन्हें लालू और कांग्रेस का साथ लेना पड़ा, लेकिन वो इस बात को अच्छी तरह से जानते हैं कि केवल लालू और कांग्रेस के बलबूते ही वे 2019 में कोई खास काम नहीं कर सकते।

अगले चुनाव में मोदी लहर का अंदेशा

नीतीश को इस बात का अंदाजा भी है कि अगर 2019 में मोदी लहर चली तो अगले विधानसभा और लोकसभा चुनावों में भी इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है। इस कारण माना जा रहा है कि नीतीश ने ये चाल चलकर अपने 2019 का रास्ता साफ कर लिया है। आइए जानते हैं उन कारणों के बारे में जिसकी वजह से नीतीश 20 महीने में ही महागठबंधन का साथ छोड़ अपने पुराने प्यार की तरफ वापस लौट आए।

1. लालू बन सकते थे मुसीबत

बीते दिनों लालू और उनके परिवार पर जिस तरह से भ्रष्टाचार के आरोप लगे, उससे नीतीश को भी काफी नुकसान हुआ। नीतीश की बिहार में इमेज बहुत साफ है और उन्हें "सुशासन बाबू" के नाम से भी जाना जाता है। लेकिन लालू के बेटे तेजस्वी यादव पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों ने नीतीश की इस इमेज को थोड़ा नुकसान पहुंचा दिया था। नीतीश चाहकर भी तेजस्वी से इस्तीफा नहीं ले पाए और न ही लालू ने तेजस्वी को इस्तीफा देने के लिए कहा, जिससे नीतीश विरोधियों के निशाने पर आ गए और BJP पूरी तरह से नीतीश पर दबाव बनाते रहे। इस बात को नीतीश समझ चुके थे कि अब लालू उनके लिए मुसीबत बन सकते हैं।

2. परदे के पीछे से लालू चला रहे थे सरकार

बिहार विधानसभा में किसी भी पार्टी के पास बहुमत नहीं है और सरकार बनाने के लिए JDU और RJD साथ आए। विधानसभा में RJD के पास 80 विधायक हैं और वो सबसे बड़ी पार्टी है। लालू पर चारा घोटाले के आरोप लगने के बाद चुनाव लड़ने पर बैन है। इस वजह से उन्होंने अपने दोनों बेटों को सरकार में मंत्री बनाया। पॉलिटिकल एनालिस्ट का कहना है कि नीतीश भले ही सीएम की कुर्सी पर बैठें हों, लेकिन सरकार तो लालू ही चला रहे थे। लालू कई बार नीतीश पर ज्यादा विधायक होने की वजह से दबाव डालते रहते थे।

इस बात का अंदाजा नीतीश की उस बात से भी लगाया जा सकता है कि जब उन्होंने बुधवार को इस्तीफा देने के बाद मीडिया से कहा कि लालू चाहते थे कि हम उनका इस मामले में साथ दें, लेकिन मैं अपने सिद्धांतों से कोई समझौता नहीं करना चाहता। सियासी गलियारों में इस बात की गूंज हमेशा से ही रही कि लालू जिस तरीके से अपनी सरकार चलाते थे उसी तरह से वो नीतीश से भी सरकार चलाना चाहते थे।

3. तेजस्वी से भी नहीं लिया इस्तीफा

बिहार में अगर महागठबंधन टूटा है तो इसके लिए लालू प्रसाद यादव ही जिम्मेदार हैं। लालू चाहते तो ये सब नहीं होने देते, लेकिन वो अपने पुत्रमोह में इस तरह से फंसे रहे कि उन्हें सत्ता गंवानी पड़ गई। बुधवार जब नीतीश मीडिया के सामने आए तब उन्होंने भी यही कहा कि तेजस्वी पर लगे आरोपों के बाद से लालू ने कुछ नहीं कहा। सच तो ये है कि लालू नहीं चाहते थे कि तेजस्वी इस्तीफा दें। इस कारण पहले भी RJD की तरफ से कहा जा चुका था कि अगर तेजस्वी का इस्तीफा होता है तो RJD के सभी मंत्री भी इस्तीफा दे देंगे, हालांकि वो सरकार को समर्थन करेंगे। इसी बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि लालू किस तरह से पुत्रमोह में फंसे हुए थे।

4. महीनाें पहले ही नीतीश ने कर दिया था BJP में शामिल होने का इशारा

बिहार के सीएम नीतीश कुमार भले ही कल ऑफिशियल रुप से NDA में शामिल हो गए हों, लेकिन इस बात की प्लानिंग उन्होंने लगभग 6 महीने पहले से ही शुरु हो गई थी। फरवरी में पटना में आयोजित एक बुक फेयर में जब नीतीश ने "कमल" में कलर किया, उसी समय से ये कयास लगाने शुरु हो गए थे कि नीतीश BJP में शामिल हो सकते हैं। इसके बाद से नोटबंदी में मोदी के फैसले का स्वागत करना, सर्जिकल स्ट्राइक के लिए मोदी की तारीफ करना और फिर NDA के राष्ट्रपति उम्मीदवार रामनाथ कोविंद का खुलकर सपोर्ट करना। इन सब बातों ने नीतीश के BJP प्रेम को उजागर कर दिया और आखिरकार बुधवार को नीतीश अपने 17 साल पुराने प्यार के पास वापस लौट आए।

Created On :   27 July 2017 11:12 AM GMT

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