Movie Review: प्यार के अनोखे अहसास की दिल छू लेने वाली कहानी है ‘अक्टूबर’

October movie Review A heart touching love story with special feeling
Movie Review: प्यार के अनोखे अहसास की दिल छू लेने वाली कहानी है ‘अक्टूबर’
Movie Review: प्यार के अनोखे अहसास की दिल छू लेने वाली कहानी है ‘अक्टूबर’

डिजिटल डेस्क, मुंबई। बॉलीवुड में काफी समय बाद प्रेम की अलग परिभाषा दर्शाती फिल्म रिलीज हुई है। निर्देशक शूजीत सरकार के स्पेशल टच वाली फिल्म "अक्टूबर" रिलीज हो गई है। इस फिल्म की कहानी कुछ अलग है। आइए समीक्षा के जरिए जानते हैं कि वरुण धवन की यह फिल्म कैसी रही और दर्शकों पर कितना असर कर पाएगी....

फिल्म का नाम: अक्टूबर
डायरेक्टर: शूजीत सरकार
स्टार कास्ट: वरुण धवन, बनिता संधू, गीतांजली राव
अवधि: 1 घंटा 55 मिनट
सर्टिफिकेट: U
रेटिंग: 3.5 स्टार

कहानी

फिल्म की कहानी दिल्ली के एक होटल से शुरू होती है जहां पर दानिश उर्फ डैन (वरुण धवन) अपने दोस्तों के साथ इंटर्नशिप करता है। डैन बेफिक्री की जिंदगी जीने वाला एक शख्स हैं, इसी होटल में शिउली (बनिता संधू ) की एंट्री होती है, वह भी एक इंटर्न के तौर पर वहां काम करने लगती है। शिउली को हर एक काम परफेक्ट करने की आदत है। वहीं दूसरी तरफ डैन के काम को देखते हुए उसे अक्सर एक डिपार्टमेंट से दूसरे डिपार्टमेंट में शिफ्ट कर दिया जाता है। इस कहानी में अजीब मोड़ तब आता है जब एक दिन होटल के चौथे माले से शिउली गिर जाती है। इसके बाद डैन की जिंदगी में सब कुछ बदल जाता है। दरअसल होटल में चल रही 31 दिसंबर की पार्टी में वरुण नहीं पहुंचता है और इसी पार्टी में एक हादसा होता है और शिवली घायल हो जाती है। यूं तो डेन और शिवली की इस बीच कोई बातचीत या दोस्‍ती नहीं दिखाई गई है, लेकिन अस्‍पताल के बिस्‍तर पर पड़ी शिवली को देख डेन को एक अनोखा बंधन महसूस होता है। अस्पताल में शिउली डैन के बारे में पूछती है, यह बात उसकी सहेली डैन को बताती है, बस यही से डैन बदल जाता है, वह सोचता रहता है कि आखिर शिउली ने उसके बारे में क्यों पूछा। डैन ज्यादा समय हॉस्पिटल में बिताने लगता है, किन्हीं कारणों से उसे होटल से निकाल दिया जाता है। इसके बाद वह मनाली जाकर एक मैनेजर के तौर पर होटल में काम करने लगता है। कहानी एक बार फिर से डैन को मनाली से दिल्ली ले आती है।

पटकथा और निर्देशन

फिल्म एक अलग तरह की लव स्टोरी दिखाती है, फिल्म की सबसे अच्छी बात इसकी कहानी है। जिसे बड़े ही बेहतरीन ढंग से पर्द पर उतारा गया है। शूजीत सरकार ने बिल्कुल अगल तरह का सिनेमा पेश किया है। फिल्म का स्क्रीनप्ले जबरदस्त हैं। जूही चतुर्वेदी की इसके लिए तारीफ करनी होगी। इस फिल्म की एक और खासियत है कि इसमें कोई भी जबरदस्ती के गाने नहीं हैं। बैकग्राउंड स्कोर शानदार है। यह एक ऐसी फिल्म है, जिसे महसूस किया जा सकता है। डायरेक्शन, सिनेमेटोग्राफी, लोकेशन, आर्ट सब कुछ फिल्म के कहानी के साथ चलता है।

अभिनय और संगीत

अभिनय के हिसाब से वरुण धवन को आपने इस अवतार में कभी नहीं देखा होगा और एक तरह से यह उनकी सबसे अच्छी परफॉर्मेंस है। बदलापुर के बाद वरूण ने दोबारा साबित किया है कि उन्हें गंभीर किरदार करने आते हैं। वरुण धवन के अभिनय में एक अलग तरह का फ्लेवर मिलेगा। दूसरी तरफ फिल्म में एक्टिंग डेब्यू कर रही बनिता संधू ने भी बढ़िया काम किया है। फिल्‍म में बनीता संधु की मां का किरदार करने वाली एक्‍ट्रेस गीतांजति रॉय ने भी तारीफ के काबिल काम किया है। फिल्म का संगीत सुखद है।

क्यों देखें

लंबे समय से अगर आपने कोई ऐसी फिल्म नहीं देखी है जिसकी कहानी दिल छू लेने वाली हो तो फिल्म "अक्टूबर" आपके लिए एक बेहतरीन फिल्म हैं। फिल्म एक कैनवास की तरह है, जिसमें जैसे जैसे रंग भरते जाते हैं, एक सुंदर सी तस्वीर उभरती चली जाती है और एक पेंटिग का रूप ले लेती है। इस फिल्म का हरसिंगार से गहरा नाता है। दरअसल, हरसिंगार का पेड़ अक्टूबर में अपने उरूज पर होता है। इस माह में उस पर सबसे ज्यादा फूल खिलते हैं। फिल्म की नायिका का नाम शिवली है, जो हरसिंगार का ही दूसरा नाम है। ‘अक्टूबर’ की स्पेलिंग में भी दूसरे ‘ओ’ की जगह हरसिंगार का ही एक फूल है। यह फिल्म भी हरसिंगार की तरह ही सादगीपूर्ण सौंदर्य से भरी है और उसी की तरह भीनी-भीनी खुशबू बिखेरती है। हरसिंगार के पेड़ को ‘दुखों का वृक्ष’ भी कहते हैं।  

Created On :   13 April 2018 9:25 AM GMT

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