B'day special : बचपन में एक्टर नहीं ट्रेन ड्राइवर बनना चाहते थे ओम पुरी

Om puri wanted to become a train driver in his childhood
B'day special : बचपन में एक्टर नहीं ट्रेन ड्राइवर बनना चाहते थे ओम पुरी
B'day special : बचपन में एक्टर नहीं ट्रेन ड्राइवर बनना चाहते थे ओम पुरी

डिजिटल डेस्क, मुंबई। हिंदी सिनेमा में अपने दमदार अभिनय के लिए पहचाने जाने वाले ओमपुरी की आज 68वीं जन्मतिथि है। लगभग तीन दशकों तक दर्शकों को अपना दीवाना बनाए रखने वाले ओम पुरी के बारे में यह एक बड़ी अजीब बात है कि बचपन में उन्हें अभिनय में कोई दिलचस्पी नहीं थी। वह अभिनेता नहीं, बल्कि रेलवे ड्राइवर बन कर आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनना चाहते थे। बहुत कम लोग जानते हैं कि अंबाला में 18 अक्टूबर 1950 में जन्मे ओम पुरी का आरंभिक जीवन बेहद तकलीफदेह रहा। आर्थिक परेशानियों ने उन्हें बुरी तरह तोड़ दिया था। स्थिति यहां तक आ पहुंची थी कि परिवार के भरण-पोषण के लिए उन्हें एक ढाबे में नौकरी करनी पड़ी। यह नौकरी भी ज्यादा दिनों तक नहीं चल पाई। ढाबे के मालिक ने कुछ दिनों बाद ही चोरी का आरोप लगाते हुए उन्हें नौकरी से निकाल दिया। ओम पुरी के बारे में यह भी कहा जाता है कि उन्होंने 14 साल की उम्र में अपने घर की नौकरानी के साथ सेक्स किया था।

बचपन में बनना चाहते थे रेलवे ड्राइवर 
बचपन में ओमपुरी जिस मकान में रहते थे उससे ठीक पीछे रेलेवे यार्ड था। ओमपुरी अक्सर रात में रेलवे यार्ड में खड़ी किसी ट्रेन में सोने चले जाते थे। ट्रेनों से इसी नाते की वजह से वह ट्रेन ड्राइवर बनना चाहते थे। कुछ बड़े हुए हुए तो ओम पुरी अपनी ननिहाल पटियाला चले गए। उन्होंने पटियाला से अपनी प्रारंभिक शिक्षा पूरी की। इसी दौरान अभिनय की ओर आकर्षित हुए तो उन्होंने नाटकों में भाग लेना शुरू कर दिया। उच्च शिक्षा के लिए ओमपुरी ने खासला कालेज में एडमीशन लिया। आर्थिक दिक्कतें थीं इस लिए उन्होंने पढ़ाई के साथ-साथ एक वकील के यहां बतौर मुंशी काम करना शुरू कर दिया। 

नाटक में भाग लेने पर नौकरी से निकाला
एक बार नाटक में भाग लेने की वजह से वह वकील के यहां काम पर नहीं जा पाए। इससे वकील नाराज हो गया और उसने ओमपुरी को काम से हटा दिया। अब तक ओमपुरी के अभिनय के लिए जाने जाने लगे थे। जब नौकरी से निकाले जाने की बात उनके कॉलेज के प्राचार्य को चता चली तो उन्होंने ओमपुरी को कैमिस्ट्री लैब में सहायक की नौकरी दे दी। नौकरी के साथ-साथ वह कालेज में होने वाले नाटकों में भी हिस्सा लेते रहे। यहीं उनकी मुलाकात हरपाल और नीना तिवाना से हुई, जिनके सहयोग से वह पंजाब कला मंच से जुड़ गए। इस नाट्य संस्था से वह तीन सालों तक जुडे रहे। इसके बाद उन्होंने दिल्ली स्थित राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय (एनएसडी) में एडमीशन ले लिया। इसके बाद उन्होंने पुणे फिल्म संस्थान में भी अभिनय की बारीकियां सीखीं। 

आक्रोश से रातो-रात स्टार बने 
सन 1976 में पुणे फिल्म संस्थान से प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद ओमपुरी ने लगभग डेढ़ वर्ष तक एक स्टूडियो में लोगों को अभिनय की शिक्षा दी। इसके बाद उन्होंने अपने निजी थिएटर ग्रुप ‘मजमा’ की स्थापना की। सन 1976 में “घासीराम कोतवाल” से उनके फिल्मी सफर की शुरूआत हुई। मराठी नाटक पर बनी इस फिल्म में ओमपुरी ने घासीराम का किरदार निभाया था।
इसके बाद ओमपुरी ने गोधूलि, भूमिका, भूख, शायद, सांच को आंच नहीं जैसी अनेक कला फिल्मों में अभिनय किया। सन 1980 में प्रदर्शित “आक्रोश” ने ओम पुरी को रातो-रात स्टार बना दिया। 
गोविन्द निहलानी निर्देशित इस फिल्म में ओम पुरी ने एक ऐसे व्यक्ति का किरदार निभाया जिस पर पत्नी की हत्या का आरोप लगाया जाता है। फिल्म में दमदार अभिनय के लिये ओमपुरी को सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता का फिल्म फेयर पुरस्कार दिया गया। 

कमर्शियल फिल्मों में बनाई जगह
सन 1983 में प्रदर्शित फिल्म “अर्धसत्य” ओमपुरी के सिने करियर की सबसे महत्वपूर्ण फिल्मों में गिनी जाती है। इस फिल्म में उन्होंने एक पुलिस निरीक्षक की भूमिका निभाई थी। फिल्म में अपने विद्रोही तेवर के कारण ओमपुरी दर्शकों के बीच काफी सराहे गये थे। फिल्म में अपने दमदार अभिनय के लिए वह सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किये गये। अस्सी के दशक के आखिरी सालों में ओमपुरी ने व्यावसायिक सिनेमा की ओर रुख कर लिया और वहां भी अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज कराई। हिंदी फिल्मों के अलावा उन्होंने अंग्रेजी और पंजाबी सिनेमा में भी अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज कराई। ओमपुरी ने अपने करियर में कई हॉलीवुड फिल्मों में अभिनय किया है। इनमें ‘ईस्ट इज ईस्ट, माई सन द फैनेटिक, द पैरोल ऑफिसर, सिटी ऑफ जॉय, वोल्फ, द घोस्ट एंड द डार्कनेस, चार्ली विल्सन वार’ जैसी फिल्में प्रमुख हैं।

लंबे कैरियर में दीं कई यादगार फिल्में 
ओमपुरी बड़े पर्दे तक ही सीमित नहीं रहे। दर्शकों की पसंद को ध्यान में रखते हुये नब्बे के दशक में उन्होंने छोटे पर्दे की ओर रूख किया और धारावाहिक कक्काजी कहिन में अपने अभिनय से दर्शकों को दीवाना बना लिया। भारतीय सिनेमा में उनके योगदान को देखते हुए 1990 में उन्हें पद्मश्री से अलंकृत किया गया। ओमपुरी ने अपने चार दशक लंबे सिने करियर में लगभग 200 फिल्मों में अभिनय किया। अपने दमदार अभिनय से दर्शकों को मंत्रमुग्ध करने वाले ओमपुरी का 06 जनवरी 2017 को निधन हो गया। “अल्बर्ट पिंटो को गुस्सा क्यों आता है, स्पर्श, कलयुग, विजेता, गांधी, मंडी, डिस्को डांसर, गिद्ध, होली, पार्टी, मिर्च मसाला, कर्मयोद्धा, द्रोहकाल, कृष्णा, माचिस, घातक, गुप्त, आस्था, चाची 420, चाइना गेट, पुकार, हेराफेरी, कुरूक्षेत्र, पिता, देव, युवा, हंगामा, मालामाल वीकली, सिंह इज किंग, बोलो राम आदि उनकी चर्चित फिल्में हैं।

रहस्यमय मौत

ओम पुरी ने काफी पहले एक इंटरव्यू में कहा था कि उनकी मौत अचानक होगी और हुआ भी कुछ ऐसा ही। 6 जनवरी 2017 को वे रहस्यमय तरीके से किचन में मृत पाए गए। बताया जाता है कि उनकी मौत दिल का दौरा पड़ने से हुई थी, हालांकि उनके सिर पर गहरे चोट के निशानों ने मौत पर सस्पेंस बना दिया था। पीएम रिपोर्ट में भी उनके सिर पर चोट और हाथ में फ्रेक्चर की पुष्टि हुई थी। हालांकि पुलिस का मानना था कि यह चोट उन्हें अचानक फर्श पर गिरने से आई होगी।

Created On :   17 Oct 2017 5:59 PM GMT

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