फर्जी जाति प्रमाणपत्र के आधार पर सरकारी नौकरी पाने वालों पर तीन माह में फैसला ले सरकार

On basis of fake caste certificates got job, Govt should take a decision in 3 month
फर्जी जाति प्रमाणपत्र के आधार पर सरकारी नौकरी पाने वालों पर तीन माह में फैसला ले सरकार
फर्जी जाति प्रमाणपत्र के आधार पर सरकारी नौकरी पाने वालों पर तीन माह में फैसला ले सरकार

डिजिटल डेस्क, नागपुर। राज्य में फर्जी जाति प्रमाणपत्र के आधार पर आरक्षित श्रेणी से सरकारी नौकरियां पाने वाले कर्मचारियों की सेवा बर्खास्त करने पर तीन माह के भीतर निर्णय लेने के आदेश बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर खंडपीठ ने शुक्रवार को राज्य सरकार को जारी किए। प्रदेश में आरक्षित प्रवर्ग की सीटों पर नौकरी कर रहे करीब 63 हजार सरकारी कर्मचारी हैं। इनमें से 13 हजार के दावों को जाति वैधता पड़ताल समिति ने खारिज कर दिया है। बता दें कि ऑर्गनाइजेशन फॉर द राइट्स ऑफ ट्राइबल की याचिका पर बीते दिनों सर्वोच्च न्यायालय फर्जी तरीके से नियुक्ति पाने वाले कर्मचारियों को सेवा से निकाल देने का आदेश जारी किया था। इसके कार्यान्वन के लिए महाराष्ट्र सरकार ने 5 जून को जीआर निकाला, जिसमें उन्होंने दलील दी कि सर्वोच्च न्यायालय के इस आदेश के दूरगामी परिणाम होंगे। ऐसे में विविध विभागों में नियुक्त आरक्षित प्रवर्ग के कर्मचारियों के दस्तावेजों की पड़ताल जरूरी है। ऐसे में सरकार ने आदिवासी विकास विभाग मंत्री की अध्यक्षता में एक उपसमिति भी गठित की। तब तक किसी कर्मचारी को नहीं निकालने का फैसला लिया गया है। साथ ही उन्हें खुले प्रवर्ग के तहत सेवा में कायम रहने का मौका दिया गया है। दरअसल शुक्रवार को कोर्ट मंे वर्धा जिले के निवासी जीवन और महेंद्र चांदेकर नामक दो भाइयों की याचिका पर सुनवाई हो रही थी। जीवन सहायक शिक्षक है और महेंद्र थाणे में महावितरण में बतौर सहायक अभियंता नौकरी कर रहे हैं। उनके जाति प्रमाणपत्र को अवैध ठहरा कर राज्य सरकार ने सेवा समाप्त करने का आदेश जारी किया था। जिसे उन्होंने हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। उनके अधिवक्ता शैलेष नारनवरे ने कोर्ट में दलील दी कि कोर्ट के पिछले आदेशों के अनुसार जब तक उपसमिति अपनी पड़ताल पूरी नहीं कर सकती, तब तक िकसी कर्मचारी को निकाला नहीं जा सकता। जिसके बाद कोर्ट ने उपसमिति को दो माह के भीतर कार्रवाई पूरी करके राज्य सरकार को रिपोर्ट सौंपने को कहा है। 


टैक्स बढ़ोतरी पर अकोला मनपा के खिलाफ हाईकोर्ट पहुंचे आंबेडकर

उधर अकोला महानगर पालिका द्वारा बढ़ाए गए टैक्स के फैसले के खिलाफ भारिप बहुजन महासंघ अध्यक्ष एड. प्रकाश आंबेडर ने बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर खंडपीठ की शरण ली है। शुक्रवार को उन्होंने स्वयं कोर्ट के समक्ष युक्तिवाद किया। उन्होंने कोर्ट में दलील दी कि मनपा द्वारा लिया गया  संपत्ति कर में बढ़ोतरी का यह निर्णय अवैध है, और इसे रद्द करार दिया जाना चाहिए। मामले में याचिकाकर्ता का पक्ष सुनकर हाईकोर्ट ने प्रतिवादी नगरविकास विभाग सचिव, अकोला मनपा आयुक्त को नोटिस जारी कर 15 फरवरी तक जवाब मांगा। अकोला मनपा में भारतीय जनता पार्टी की सत्ता है। अप्रैल 2018 में सत्ताधारी पक्ष ने संपत्ति कर में बढ़ोतरी का निर्णय लिया। इस निर्णय को उनके विरोधी पक्ष भारिप बहुजन महासंघ के नगरसेवकों ने विभागीय आयुक्त के पास चुनौती दी। विभागीय आयुक्त ने लंबे समय बाद भी इस पर अपना कोई फैसला नहीं दिया। इसके बाद नगरसेवकों ने मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस से मुलाकात की, लेकिन आश्वासन के बावजूद अब तक मुख्यमंत्री ने भी कोई निर्णय नहीं लिया। ऐसे में नगरसेविका धनश्री अभ्यंकर और अन्य ने हाईकोर्ट में यह याचिका दायर की है। उनकी ओर से स्वयं एड. प्रकाश आंबेडकर ने कोर्ट में हाजिर होकर पैरवी की। उन्हें एड. संदीप चोपडे और एड. संतोष राहाटे ने सहयोग किया।

Created On :   9 Feb 2019 1:13 PM GMT

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