विश्वसनीय होने पर ही मृत्यु से पहले दिया गया बयान सजा का हो सकता है आधार-HC

Only after being reliable can the sentence given before death be punished
विश्वसनीय होने पर ही मृत्यु से पहले दिया गया बयान सजा का हो सकता है आधार-HC
विश्वसनीय होने पर ही मृत्यु से पहले दिया गया बयान सजा का हो सकता है आधार-HC

डिजिटल डेस्क, मुंबई। बांबे हाईकोर्ट ने अपने एक आदेश में स्पष्ट किया है कि मृत्यु से पहले दिया गया बयान विश्वसनीय व प्रामणिक होना चाहिए। क्योंकि आरोपी के पास यह बयान देनेवाले पीड़ित से जिरह करने का मौक नहीं मिलता है। यदि मृत्यु से पहले दिया गया बयान कल्पनिक व सिखाया पढ़ाया पाया जाता है तो उसके आधार पर आरोपी को सजा नहीं सुनाई जा सकती है। न्यायमूर्ति बीपी धर्माधिकारी व न्यायमूर्ति पीडी नाइक की खंडपीठ ने पत्नी को जलाकर मारने के आरोप में आजीवन कारावास की सजा भुगत रहे एक आरोपी को बरी करते हुए यह फैसला सुनाया है। मुंबई की शिवडी कोर्ट ने आरोपी अश्विनी शर्मा को पत्नी की हत्या के लिए दोषी ठहराते हुए उसे आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। जिसके खिलाफ शर्मा ने हाईकोर्ट में अपील की थी। शर्मा पर पत्नी को जलाकर मारने का आरोप था। 

अपील पर पर सुनवाई के दौरान शर्मा की ओर से परैवी कर रही अधिवक्ता नेहा भिडे ने दावा किया कि मेरे मुवक्किल पर लगाया गया आरोप आधारहीन है। क्योंकि जैसे ही मेरे मुवक्किल को पता चला उसकी पत्नी जल रही है तो उसने पहले आग बुझाने की कोशिश की और खुद पत्नी को इमारत की सातवीं मंजिल से नीचे लेकर आया। यहीं नहीं उसने अपने ससुरालवालों को भी फोन पर इसकी जानकारी दी। फिर वह अपनी पत्नी को लेकर अस्पताल में ले गया। इस दौरान मेरे मुवक्किल के शरीर में कई चोटें लगी है। जहां तक बात पीड़िता के मौत से पहले दिए गए बयान की है तो वह बिल्कुल भी प्रमाणिक व विश्वसनीय नहीं है। क्योंकि यह बयान किस समय दर्ज किया गया इसका दस्तावेज में उल्लेख नहीं है। इसके अलावा मौत से पहले पीड़िता का बयान दर्ज करने के लिए मैजिस्ट्रेट को बुलाने का प्रयास नहीं किया गया है। बयान देते समय पीड़िता की मानसिक स्थिति कैसी थी इसका भी डाक्टरों ने उल्लेख नहीं किया है।

पीड़िता का जब बयान लिया गया तो उस समय अस्पताल में उसके भाई मौजूद थे। इसलिए पीड़िता को सिखाए-पढ़ाए जाने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है। आरोपी की वकील ने दावा किया कि पीड़िता ने खुद अपने शरीर पर मिट्टी का तेल डालकर आत्महत्या की है। मेरे मुवक्किल की इसमे कोई भूमिका नहीं है। वहीं अभियोजन पक्ष ने दावा किया कि निचली अदालत ने पीड़िता के मौत से पहले दिए गए बयान व 11 गवाहों की गवाही को सुनने के बाद सजा का फैसला सुनाया है। निचली अदालत का फैसला सही। इसलिए इसे यथावत रखा जाए। मामले से जुड़े दोनों पक्षों को सुनने के बाद खंडपीठ ने कहा कि मृत्यु से पहले दिया गया सजा का आधार हो सकता है बशर्ते वह  स्वेच्छा से दिया गया हो और विश्वसनीयता व प्रमाणिकता की कसौटी पर खरा उतरे। कल्पनिक व सीखाए पढाए बयान के आधार पर सजा नहीं सुनाई जा सकती है। इस मामले में पीड़िता की ओर से दिया गया बयान प्रमाणिकता की कसौटी में खरा उतरता नहीं दिख रहा है। इसलिए आरोपी को सुनाई गई सजा को रद्द किया जाता है और उसे बरी किया जाता है। 
 

Created On :   25 May 2019 12:49 PM GMT

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