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नागपुर में 10 हजार से अधिक बच्चे कुपोषण के शिकार
लिमेश कुमार जंगम,नागपुर। कुपोषण जैसी घातक बीमारी से लड़ने के सरकार के दावे नागपुर में सामने आए आंकड़े खोखले साबित हो रहे हैं। नागपुर सहित पूर्व विदर्भ में इस साल 10 हजार 208 बच्चे कुपोषण के शिकार पाए गए, जबकि सरकार हर साल कुपोषण दूर करने के लिए करोड़ों रुपए का बजट खर्च करती है। अफसरों और कर्मचारियों की छोटी-मोटी लापरवाही भी इस समस्या का मुख्य कारण है।
कांटा मशीन ही नहीं है उपलब्ध
कुपोषण का स्तर जानने के लिए सभी आंगनवाड़ियों को कांटा मशीन दे रही है। वजन के आधार पर ही कुपोषण का स्तर तय किया जाता है। मगर आश्चर्य की बात यह है कि पूर्व विदर्भ की 11,944 आंगनवाड़ियों के 22,889 वजन नापने वाली मशीनों में से 11,390 बेकार पड़ी हैं। और करीब 500 आंगनवाड़ियों में एक में भी वजन नापने के लिए कांटा उपलब्ध नहीं। जबकि आंगनवाड़ियों में रख-रखाव के लिए ही 1.19 करोड़ रुपए आते हैं, बावजूद इसके नाप मशीन सुधारवाने के लिए भी विभाग हजारों रुपए भी खर्च नहीं कर सका। बजट को अन्य गैर जरूरी कामों में बता दिया गया। दूसरी ओर पूर्व विदर्भ में ही हर साल अमृत आहार योजना पर 10 करोड़ 96 लाख खर्च होते हैं ताकि बच्चे और माताएं स्वस्थ रहें।
सारी व्यवस्था चरमराई
वजन कांटे उपलब्ध कराने एवं उसे दुरुस्त रखने के मामले में पूर्व विदर्भ के 6 जिलों में से नागपुर, भंडारा, चंद्रपुर, गड़चिरोली व गोंदिया की व्यवस्था बेहद चिंताजनक है। एक बार यदि वजन कांटे बिगड़ जाएं तो उसके सुधार की प्रक्रिया पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है। यही कारण है कि पूर्व विदर्भ के करीब 500 आंगनवाड़ियों में एक भी वजन कांटा उपलब्ध नहीं है। और जहां वजन कांटे उपलब्ध हैं, उनमें से 50 फीसदी बेकार होकर धूल फांक रहे हैं। ऐसे में वहां काम करने वाली सेविकाओं को बच्चों के वजन से लेकर समय-समय पर प्रशासन के आला अधिकारियों को भेजने वाली रिपोर्ट को तैयार करने में काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है।
आंगनवाड़ियों की कमी
नागपुर शहर में करीब 446 झोपड़पटि्टयां मौजूद हैं। परिसर के गांवों में बेरोजगारी एवं गरीबी से जूझ रहे नागरिक रोजगार की तलाश में बड़े पैमाने पर शहर पहुंच रहे हैं। छिट-पुट रोजगार मिलते ही वे किसी तरह से अपनी झोपड़ी व अस्थाई आशियाने का प्रबंध कर परिवार को ले आते हैं। परंतु झोपड़पट्टी क्षेत्र में अपेक्षा के अनुरूप आंगनवाड़ियां उपलब्ध न होने तथा मजदूरी के चलते अभिभावकों का बच्चों की देखभाल पर असर होने के कारण उनके नन्हें बच्चों को पोषक आहार नहीं मिल पाता। बीते वर्ष किए गए सर्वेक्षण में आंगनवाड़ियों की कमी एवं पोषक आहार के अभाव में कुपोषण की बढ़ती समस्या उजागर हुई थी। इसके बावजूद हालातों में कोई खास बदलाव नहीं हो पाया।
मेेंटनेंस के लिए प्रत्येक आंगनवाड़ी को हर साल 1 हजार
पूर्व विदर्भ के 6 जिलों में मौजूद मिनी व मुख्य कुल 11,944 आंगनवाड़ियों के लिए करीब 1 करोड़ 19 लाख 44 हजार रुपए रख-रखाव के लिए सरकार की ओर से दिए जाते हैं। प्रत्येक आंगनवाड़ी को हर साल 1 हजार रुपए के हिसाब से इस राशि को वितरित किया जाता है। इसमें वजन कांटों के सुधार का भी प्रावधान किया गया है। मामूली गड़बड़ी के लिए स्थानीय स्तर पर इसका सुधार करने की सूचना है। बड़ी गड़बड़ी पाए जाने पर इन मशीनों की आपूर्ति करने वाले एजेंसी से संपर्क किया जाता है। बताया जाता है कि सॉल्टर स्केल, डिजिटल मशीन, मैन्युअल मशीन आदि से बालकों का वजन किया जाता है। यह मशीनें 400 से 8 हजार रुपए तक में खरीदी जाती हैं। डिजिटल मशीन की कीमत करीब 7 से 8 हजार रुपए तथा मैन्युअल मशीन की कीमत 400 से 600 रुपए होती है। इसके बावजूद प्रशासन एवं सरकार की ओर से इन मशीनों के रख-रखाव व सुधार पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है।
10 हजार से अधिक बालक कुपोषण के शिकार
पूर्व विदर्भ के 6 जिलों में प्रशासन के पास शून्य से 5 वर्ष आयु सीमा वाले कुपोषण गणना की दो पद्धतियां हैं। इसमें कम वजन के बालकों की संख्या 49 हजार 316 है, जिन्हें सरकार कुपोषित नहीं मानती। जबकि तीव्र कम वजन के कुपोषित बालकों की संख्या 10 हजार 208 बताई जाती है। इसमें मध्यम तीव्र कुपोषित बालकों की संख्या 3 हजार 413 हैं, जबकि गंभीर रूप से कुपोषण से जूझ रहे अति तीव्र कुपोषित बालकों की संख्या महज 802 दर्शाई गई है। हालांकि इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि सरकारी आंकड़ों से परे कुपोषण की स्थिति हमेशा से भयावह देखी गई है।
योजना सवालों के घेरे में
नागपुर, वर्धा, भंडारा, गोंदिया, चंद्रपुर एवं गड़चिरोली जिले के आंगनवाड़ियों तथा मिनी आंगनवाड़ियों में यदि 50 फीसदी वजन कांटे बेकार पड़े हों तो वहां शिक्षा व आहार पाने वाले नन्हें बालकों का वजन कैसे लिया जाता होगा, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। यही कारण है कि कुपोषण से संबंधित सरकार के अधिकृत आंकड़ों पर अनेक विशेषज्ञ तथा कुपोषण मुक्ति से जुड़ी संस्थाएं भरोसा नहीं करतीं। नागपुर जिले के 73 आंगनवाड़ियों में वजन कांटे ही उपलब्ध नहीं है। इसके चलते कुपोषण व बाल स्वास्थ्य से जुड़ी सरकार की कल्याणकारी योजनाएं सवालों के घेरे में हैं।
समस्या गंभीर है, शीघ्र हल करेंगे
वजन कांटे उपलब्धता की कमी एवं अनेक कांटे खराब होने की समस्या से हम परिचित हैं। यह समस्या बेहद गंभीर है। अनेक बार इस विषय को लेकर बैठकें की गई हैं। प्रस्ताव तैयार कर सरकार को भेजा जा चुका है। नए वजन कांटों की खरीदी करने के लिए शीघ्र ही बैठक लेकर निर्णय लिया जाएगा।
-एम. डी. बोरखेडे, विभागीय उपायुक्त, महिला व बाल कल्याण विभाग, विभागीय कार्यालय, नागपुर
Created On :   7 March 2018 5:46 AM GMT