फिलिस्तीन ने अमेरिका से अपने राजदूत को वापस बुलाया, लेकिन क्यों? 

Palestine recalls US ambassador after Donald Trumps Jerusalem move
फिलिस्तीन ने अमेरिका से अपने राजदूत को वापस बुलाया, लेकिन क्यों? 
फिलिस्तीन ने अमेरिका से अपने राजदूत को वापस बुलाया, लेकिन क्यों? 

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। येरूशलम को इजरायल की राजधानी के तौर पर मान्यता देने के अमेरिकी प्रेसिडेंट डोनाल्ड ट्रंप के फैसले के कई हफ्तों बाद फिलिस्तीन ने अमेरिका से अपने राजदूत को वापस बुलाने का फैसला लिया है। इस मामले में फिलिस्तीन का कहना है कि वो अपने राजदूत के साथ कुछ विचार-विमर्श करना चाहता है, इसलिए अपने राजदूत को वापस बुला रहा है। वहीं फिलिस्तीनी प्रेसिडेंट महमूद अब्बास ने कहा है कि अब वो अमेरिका की किसी शांति योजना को एक्सेप्ट नहीं करेंगे। इस बात की जानकारी फिलिस्तीनी न्यूज एजेंसी वफा ने दी है।

क्या कहना है फिलिस्तीन का? 

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, फिलिस्तीनी विदेश मंत्री रियाद अल मलिकी वे फिलिस्तीनी लिबरेशन ऑर्गनाइजेशन (पीएलओ) के राजदूत हुसम जोमलोट को अमेरिका से वापस बुलाया है। फिलिस्तीन ने ये कदम डोनाल्ड ट्रंप के येरूशलम को इजरायल की राजधानी के तौर पर मान्यता देने के कई हफ्तों बाद उठाया है। साथ ही फिलिस्तीन का ये भी कहना है कि अमेरिका के इस फैसले के बाद अब वो अमेरिका की किसी भी शांति योजना को एक्सेप्ट नहीं करेगा। बता दें कि येरूशलम को इजरायल की राजधानी को मान्यता देने के बाद इजरायल और फिलिस्तीनियों के बीच कई हिंसक झड़पें भी हुई, जिसमें कई लोगों को अपनी जान भी गंवानी पड़ी।

6 दिसंबर को ट्रंप ने दी थी मान्यता 

6 दिसंबर को अमेरिकी प्रेसिडेंट डोनाल्ड ट्रंप ने येरूशलम को इजरायल की राजधानी के तौर पर मान्यता दी थी। येरूशलम वो इलाका है, जिसपर इजरायल और फिलीस्तीन दोनों ही देश अपना दावा करते हैं। व्हाइट हाउस में दिए अपने भाषण में ट्रंप ने कहा था कि "अब समय आ गया है कि येरूशलम को इजरायल की राजधानी बनाया जाए।" उन्होंने कहा कि "फिलीस्तीन से विवाद के बावजूद येरूशलम पर इजरायल का अधिकार है।" ट्रंप ने अपने इस कदम को शांति स्थापित करने वाला कदम बताते हुए कहा है कि "येरूशलम को इजरायल की राजधानी की मान्यता देने में देरी की पॉलिसी शांति स्थापित नहीं कर पाई और इससे कुछ भी हासिल नहीं हुआ।" ट्रंप ने ये भी कहा कि हम एक ऐसा समझौता चाहते हैं जो इजरायल और फिलीस्तीन दोनों के लिए बेहतर हो।

128 देशों ने अमेरिका के खिलाफ किया था वोट

हाल ही में येरूशलम को इजरायल की राजधानी के तौर पर मान्यता देने वाले अमेरिकी प्रेसिडेंट डोनाल्ड ट्रंप के फैसले का भारत समेत 128 देशों ने विरोध किया था। यूनाइटेड नेशन में ट्रंप के इस फैसले को रद्द करने की मांग पर लाए गए प्रपोजल पर भारत ने भी अमेरिका-इजरायल के खिलाफ और फिलिस्तीन के सपोर्ट में वोट डाला है। इस प्रपोजल में कहा गया था कि येरूशलम को लिया गया कोई भी फैसला अमान्य होगा और इसे रद्द किया जाना चाहिए। इस प्रपोजल के समर्थन में भारत समेत 128 देशों ने वोट किया था, जबकि सिर्फ 9 देशों ने ही इसके खिलाफ वोट डाला था। अमेरिका और इजरायल के खिलाफ वोट डालने पर भारत में ही इसका कड़ा विरोध हुआ था और बीजेपी नेता सुब्रह्मण्यम स्वामी ने भारत के इस कदम को गलत ठहराया था।

तीन धर्मों के लिए महत्वपूर्ण है ये जगह

येरूशलम वो जगह है, जिसपर इजरायल और उससे ही लगा फिलिस्तीन देश दोनों ही अपना-अपना हक जताते रहते हैं। इजरायल है तो यहूदियों का देश, लेकिन इसकी राजधानी येरूशलम यहूदियों के साथ-साथ मुस्लिम और ईसाईयों के लिए भी बहुत महत्व रखती है। येरूशलम में टेंपल माउंट है, जो यहूदियों का सबसे पवित्र स्थल है। वहीं अल-अक्सा मस्जिद को मुसलमान बेहद पाक मानते हैं। उनकी मान्यता है कि अल-अक्सा मस्जिद ही वो जगह है जहां से पैगंबर मोहम्मद जन्नत पहुंचे थे। इसके अलावा कुछ ईसाइयों की मान्यता है कि येरूशलम में ही ईसा मसीह को सूली पर चढ़ाया गया था। यहां मौजूद सपुखर चर्च को ईसाई बहुत ही पवित्र मानते हैं। बताया ये भी जाता है कि यहां पर यहूदियों का पवित्र स्थल सुलेमानी मंदिर हुआ करता था, जिसे रोमनों ने नष्ट कर दिया था।

इजरायल हमेशा से मानता रहा है राजधानी

1948 में इजरायल एक आजाद देश बना और इसके एक साल बाद येरूशलम का बंटवारा हो गया। येरूशलम पर इजरायल और फिलिस्तीन दोनों ही दावे करते रहे हैं। इसके बाद इजरायल ने करीब 6 दिनों तक फिलिस्तीनियों से लड़ने के बाद इस शहर पर कब्जा कर लिया था। इसके बाद 1980 में इजरायल ने येरूशलम को अपनी राजधानी बनाने की घोषणा की, लेकिन यूनाइटेड नेशंस ने इस कब्जे की निंदा की। यही वजह है कि येरूशलम को कभी भी इजरायल की राजधानी के तौर पर अंतर्राष्ट्रीय मान्यता नहीं मिली। वहीं फिलिस्तीन ने भी हमेशा से इस शहर को अपनी राजधानी बनाने की मांग करते आ रहे हैं।

क्यों है येरूशलम को लेकर विवाद? 

दरअसल, येरूशलम इजरायल का बहुत बड़ा शहर है। इसके साथ ही ये इस्लाम, ईसाई और यहूदियों के लिए भी काफी अहम जगह है। इसी जगह पर यहूदियों का दुनिया में सबसे स्थान है, जबकि इस्लाम में मक्का और मदीना के बाद ये तीसरा सबसे पवित्र स्थान है। इसके साथ ईसाईयों की भी मान्यता है कि यहां पर जीजस क्राइस को सूली पर चढ़ाया गया था। येरूशलम के पूर्वी हिस्से में मुस्लिम आबादी ज्यादा है, जबकि पश्चिमी हिस्सों में यहूदी आबादी रहती है। इसके साथ ही यहां मौजूद अल अक्सा मस्जिद में इजरायल 18-50 साल के लोगों को जाने से रोकता है, क्योंकि उसका मानना है कि ये लोग अक्सर यहां प्रदर्शन करते हैं।

इजरायल और फिलिस्तीन के बीच क्यों है विवाद? 

फिलिस्तीन एक अरब देश था और पहले वर्ल्ड वॉर के बाद यहां नई सरकार बनी। इसी के बाद से दुनियाभर के यहूदियों ने फिलिस्तीन में बसना शुरू कर दिया। शुरुआत में यहां पर यहूदियों की आबादी 30 फीसदी थी, जो अगले 30 सालों में बढ़कर 30 फीसदी तक पहुंच गई। इसके बाद यहूदियों ने अरब लोगों के खिलाफ बगावत शुरू कर दी। इसके बाद ब्रिटेन ने यहूदियों के फिलिस्तीन जाने पर पाबंदी लगा दी। इसके बाद यहूदियों ने अपना एक अलग देश होने की मांग की। आखिरकार 1947 में यूनाइटेड नेशंस में एक रिजोल्यूशन पास किया गया, जिसके तहत इसे दो हिस्सों में बांट दिया गया। इसका एक हिस्सा अरब देश बना और दूसरा यहूदियों का राज्य- इजरायल बना। अलग होने के बाद से ही दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ गया। इसकी वजह थी येरूशलम। येरूशलम वो हिस्सा था, जहां यहूदी और मुसलमान दोनों रहते थे। इसलिए यूएन ने फैसला लिया कि येरूशलम को अंतर्राष्ट्रीय सरकार चलाएगी। येरूशलम के अलावा यहां की "गाजा पट्टी" भी हमेशा से दोनों देशों के बीच विवाद का कारण रही है।

कई देशों ने की ट्रंप ने की निंदा

वहीं येरूशलम को इजरायल की राजधानी के तौर पर मान्यता देने पर दुनियाभर में ट्रंप की निंदा भी होने लगी है। मुस्लिम देशों ने ट्रंप के इस फैसले को शांति के खिलाफ और हिंसा भड़काने वाला बताया है। तुर्की के फॉरेन मिनिस्टर ने इस फैसले को गैरजिम्मेदाराना बताते हुए ट्वीट किया जिसमें लिखा है कि "ये फैसला इंटरनेशनल लॉ और यूनाइटेड नेशंस के इस बारे में पास किए गए प्रपोजल्स के खिलाफ है।" वहीं सऊदी अरब का भी कहना है कि इस फैसले से शांति को नुकसान पहुंचेगी और इलाके में तनाव बढ़ेगा। इसके अलावा इजिप्ट के प्रेसिडेंट अब्दुल फतह अल सीसी ने भी कहा है कि इस फैसले से शांति की उम्मीदें कमजोर होंगी। इसके साथ ही ट्रंप के इस फैसले के विरोध में पाकिस्तान में निंदा प्रस्ताव भी पारित हो चुका है। वहीं इस मामले में यूरोपियन यूनियन भी कह चुका है जब तक शांति समझौता नहीं हो जाता, तब तक येरूशलम को इजरायल की राजधानी नहीं माना जाएगा। 

Created On :   1 Jan 2018 4:23 AM GMT

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