अंधविश्वास : यहां नाले के पानी में नहलाकर दूर कर रहे हैं बच्चों का कुपोषण

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अंधविश्वास : यहां नाले के पानी में नहलाकर दूर कर रहे हैं बच्चों का कुपोषण
अंधविश्वास : यहां नाले के पानी में नहलाकर दूर कर रहे हैं बच्चों का कुपोषण
हाईलाइट
  • कुपोषण मिटाने का काम आंकड़ों की बाजीगरी में सिमटा हुआ है।
  • वहीं दूसरी ओर विभागीय आंकड़ों में अत्यंत कम संख्या दर्शायी गई है।
  • सीधी जिले में आज भी लोग अति कुपोषित बच्चों को नाले के पानी में नहलाकर कुपोषण (सूखा रोग) का इलाज कर रहे हैं।

डिजिटल डेस्क, सीधी। भारत देश में लोगों के सिर पर अंधविश्वास इस कदर हावी है कि लोग अपनी और अपने बच्चों की जिंदगी खतरे में डाल देते हैं। अक्सर देखा जाता है कि सांप के काटने पर लोग डॉक्टर के पास न जाकर साधू-संतों के पास झाड़-फूंक के लिए चले जाते हैं, तो कभी रोग दूर करने के लिए मिट्टी अपने शरीर पर लगा लेते हैं। ऐसा ही एक अंधविश्वास का मामला मध्य प्रदेश के सीधी जिले से सामने आ रहा है। यहां कुपोषण से बचाने के लिए मासूम बच्चों को नाले के गंदे पानी में नहलाया जा रहा है, जो नन्हें-मुन्हों के लिए प्राण-घातक है। 

अब अगर किसी से पूछा जाए कि क्या नाले के पानी में बच्चों को नहलाकर कुपोषण दूर किया जा सकता है? तो कोई भी जानकार न में ही जवाब देगा। मगर सीधी जिले में आज भी लोग अति कुपोषित बच्चों को नाले के पानी में नहलाकर कुपोषण (सूखा रोग) का इलाज कर रहे हैं। एक तरफ जहां जिले में कुपोषित बच्चों की संख्या हर गांव में देखी जा रही है। वहीं दूसरी ओर विभागीय आंकड़ों में अत्यंत कम संख्या दर्शायी गई है। कुपोषण मिटाने का काम आंकड़ों की बाजीगरी में सिमटा हुआ है।

शहर के बीच से गुजरने वाले सूखा नाला का उपयोग भले ही दूसरे काम में न हो रहा हो, लेकिन गरीबों के लिए यह नाला बच्चों के इलाज का जरिया बना हुआ है। रविवार के दिन सूखा रोग यानि कुपोषण से पीड़ित बच्चों को अलसुबह इसलिए नहलाया जाता है कि रोग दूर हो जाए। समीपस्थ गांव महराजपुर से आईं सितवा और देउआ अपने-अपने दुधमुंहे बच्चों को नाले के गंदे पानी में नहलाने का कारण बताते हुए कहा, "यहां का पानी रोग दूर करने में कारगर होता है।" ऐसा उन्होनें सुन रखा है, इसलिए वह भी सूखा रोग से पीड़ित बच्चों को नाले में नहलाने लाई हुई हैं। अस्पताल की दवा पर उन्हें ज्यादा भरोसा नही है जितना कि टोंटके पर है।

जिला चिकित्सालय परिसर में ही अति कुपोषित बच्चों के इलाज की व्यवस्था बनाई गई है किंतु इसके बाद भी कई ऐसे परिवार हैं जो टोंटके से ही बच्चों का कुपोषण दूर कर रहे हैं। जिला मुख्यालय के आसपास के ही नहीं बल्कि दूर दराज के गांवों से भी नाले के पानी में बच्चो केा स्नान कराने महिलाएं पहुंचती हैं। आदिवासी अंचल में तो इसी बीमारी को झाडफ़ूंक से दूर करने का प्रयास लंबे समय से किया जा रहा है। सरकार कितनी भी योजनाएं लागू कर दे पर अशिक्षा के साए में जी रहे अधिकांश परिवार आज भी पुरानी रूढिय़ों पर चल रहे हैं। सूखा नाला से सूखा रोग दूर होगा इसे कम से कम कोई भी पढ़ा लिखा व्यक्ति तो स्वीकार नही करेगा। जिले के लिए यह अनोखी बात ही है कि इस टोटके को अपनाने वालों की संख्या कम नहीं हो पाई है।

गंदे पानी में लगा देती हैं डुबकी
सूखा नाला का पानी हमेशा ही प्रदूषण और गंदगी युक्त रहा है, लेकिन इस गंदे पानी में संबंधित महिला भले ही न नहाए पर सूखा रोग से पीड़ित बच्चे को डुबकी लगवा ही देती है। रविवार को अल सुबह जब लोगों की नींद भी नही खुली होती उसी दौरान वह बच्चों का नाले में इलाज कर रवाना हो जाती हैं। ऐसा ही वाक्या देखने पर जब महराजपुर से आई महिलाओं से पूछा गया तो पहले तो वह टोंटके के खण्डित हो जाने के भय से बात करने बचती रहीं फिर बच्चों के रोग का हवाला देकर चलती बनीं। नाले का गंदा पानी  भी उन्हें दुधमुहे बच्चों पर रहम नहीं दिला पाया। 

कागज में है 2170 बच्चे अति कुपोषण के शिकार 
6 माह से पांच वर्ष तक के बच्चों में कुपोषण दूर करने की जिम्मेवारी सरकार ने महिला बाल विकास विभाग को सौंपी है। कुपोषण केा लेकर पिछले वर्षों में राष्ट्रीय स्तर पर हो हल्ला होने के कारण अब कागजों में अति कुपोषित बच्चों की संख्या कम कर दर्ज की जा रही है। जानकारी के मुताबिक जिले में सामान्य वजन के 1 लाख 16 हजार 290 बच्चे हैं तो कम वजन के 24 हजार 78 बच्चे शामिल हैं। अति कम वजन यानि जिन्हें कुपोषण के गंभीर दायरे में माना जाता है जिले में ऐसे 2170 बच्चे शामिल किए गए हैं। यानि चार सैकड़ा ग्राम पंचायत वाले जिले में प्रति पंचायत अतिकुपोषित बच्चों की संख्या पांच-छ: के अनुपात में दर्ज की गई है। जबकि हकीकत ठीक इसके उलट देखी जा रही है। 

1903 आंगनवाड़ी केन्द्र
जिले में 1903 आंगनवाड़ी केन्द्र संचालित किए गए हैं। आंगनवाड़ी केन्द्रों में पांच वर्ष तक के बच्चों के लिए शासन स्तर पर पोषण आहार की व्यवस्था बनाने इतनी ही संख्या में आंगनवाड़ी कार्यकर्ता और सहायिका नियुक्त की गई हैं। बेहतर व्यवस्था के लिए जिले को सात परियोजना में विभक्त किया गया है। कार्यकर्ता और सहायिका की निगरानी के लिए 73 सुपरवाईजर नियुक्त किए गए हैं। जिलास्तर पर अधिकारी और दूसरे लोग तो तैनात ही किए गए हैं वावजूद इसके 50 फीसदी से ज्यादा आंगनवाड़ी केन्द्र नियमित रूप से संचालित होते हों इसकी संभावना कम ही रहती है। इतना जरूर है कि ऊपरी निर्देश पर कागज में  चाक चौबंद व्यवस्था दर्शाने में कोई कमी नहीं की जाती। 

सिविल सर्जन डॉ. एसबी खरे ने मामले में कहा है कि यह एक तरह से भ्रांति ही है कि सूखा नाला में बच्चों को नहलाकर रोग दूर हो सकता है। यदि ऐसा होता तो फिर अस्पताल ही बंद हो जाते। नाले के गंदे पानी में बच्चों केा नहलाने से इंफेक्शन का भय रहता है जिससे लोगों को बचना चाहिए। अस्पताल में एक से बढ़कर एक दवा उपलब्ध हैं जिसका इलाज के लिए लाभ लेने की जरूरत है। 

Created On :   27 Sep 2018 6:58 PM GMT

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