परशुराम जयंती आज, भगवान परशुराम से जुड़ी कुछ कथाएं

परशुराम जयंती आज, भगवान परशुराम से जुड़ी कुछ कथाएं

डिजिटल डेस्क, भोपाल। भगवान परशुराम का जन्म वैशाख शुक्ल की तृतीया को हुआ था। इस दिन अक्षय तृतीया भी मनाई जाती है। भगवान परशुराम माता रेणुका और महर्षि जमदग्नि के पुत्र थे। भगवान परशुराम ने जन्म तो ब्राह्मण कुल में लिया था पर गुणों से वो क्षत्रिय थे। भगवान परशुराम को भगवान विष्णु का का छठवां रूप भी कहा जाता है। इन्हें न्याय का देवता भी कहा जाता है।

शास्त्रों के अनुसार उन्होंने तीर चलाकर गुजरात से केरल तक समुन्द्र को पीछे की ओर धकेल दिया था। यही वजह है कि परशुराम जी को कोंकण, गोवा और केरल में पूजा जाता है। वे जानवरों की भाषा भी समझते थे और उनसे बातें भी करते थे, इतना ही नहीं खूंखार जानवर भी उनसे मित्रता कर लेते थे। परशुराम जी हमेशा बड़ों का आदर और छोटों से प्यार करते थे। पर जब उन्हें क्रोध आता तो उस क्रोधाग्नि से बच पाना मुश्किल होता था। एक बार अपने क्रोध के चलते उन्होंने अपने फरसे के प्रहार से गणेश जी का एक दाँत तोड़ दिया था। 



 

माता-पिता के परमभक्त थे परशुराम 

श्रीमद्भागवत के अनुसार एक बार माता रेणुका हवन के लिए गंगा तट पर जल लेने गई थीं। वहां गंधर्वराज चित्ररथ अप्सराओं के साथ विहार कर रहे थे जिन्हें देखकर माता रेणुका आसक्त हो गईं और कुछ देर वहीं रुक गईं। इस वजह से हवन काल व्यतीत हो गया। जिससे  मुनि जमदग्नि क्रोधित हो गए और अपनी को आर्य मर्यादा विरोधी आचरण और मानसिक व्याभिचार करने के लिए दंडस्वरूप सभी पुत्रों को माता रेणुका का वध करने की आज्ञा दी, जिसका पालन किसी भी पुत्र ने नहीं किया।

पिता के तपोबल से प्रभावित परशुराम ने उनकी आज्ञा का पालन करते हुए माता का सिर धड़ से अलग कर दिया और उन्हें बचाने के लिए आगे आए अपने समस्त भाइयों का वध कर डाला। उनके इस कार्य से प्रसन्न उनके पिता जमदग्नि ने जब उनसे वर मांगने का आग्रह किया तो परशुराम ने माता के साथ ही सभी भइयों को पुनर्जीवित होने और उनके द्वारा वध किए जाने संबंधी सारी स्मृति नष्ट हो जाने का वर मांगा।
 

 

21 बार किया पृथ्वी से क्षत्रियों का विनाश 

कहा जाता है कि वंशाधिपति सहस्त्रार्जुन ने घोर तप से भगवान दत्तात्रेय को प्रसन्न कर सहस्त्र भुजाएं और युद्ध में किसी से परास्त न होने का वर पाया था। संयोगवश वन में आखेट करते हुए वह जमदग्निमुनि के आश्रम जा पहुँचा और देवराज इन्द्र द्वारा प्रदत्त कपिला कामधेनु की सहायता से हुए समस्त सैन्यदल के अद्भुत आतिथ्य सत्कार पर लोभवश जमदग्नि की अवज्ञा करते हुए कामधेनु को बलपूर्वक छीनकर ले गया।

जिससे कुपित परशुराम ने फरसे के प्रहार से उसकी समस्त भुजाएँ काट डालीं और सिर को धड़ से अलग कर दिया। तब सहस्त्रार्जुन के पुत्रों ने प्रतिशोध लेने के लिए परशुराम की अनुपस्थिति में उनके ध्यानस्थ पिता जमदग्नि की हत्या कर दी और माता रेणुका पति की चिता पर सती हो गईं। इस घटना से क्रोधित परशुराम ने पूरे वेग से महिष्मती नगरी पर आक्रमण कर दिया और उस पर अपना अधिकार कर लिया। इसके बाद उन्होंने एक के बाद एक पूरे इक्कीस बार इस पृथ्वी से क्षत्रियों का विनाश किया। यही नहीं उन्होंने हैहय वंशी क्षत्रियों के रुधिर से स्थलत पंचक क्षेत्र के पाँच सरोवर भर दिये और पिता का श्राद्ध सहस्त्रार्जुन के पुत्रों के रक्त से किया। अन्त में महर्षि ऋचीक ने प्रकट होकर परशुराम को ऐसा घोर कृत्य करने से रोका।
 


श्री गणेश को बनाया एकदंताय 

पौराणिक कथा के अनुसार एक बार भगवान परशुराम कैलाश स्थित भगवान शिव के अंतःपुर में प्रवेश कर रहे थे। जिन्हें गणेश जी ने द्रार पर ही रोक दिया। परशुराम ने बलपूर्वक अंदर जाने की कोशिश की। तब घणेश जी ने उन्हें स्तंभित कर अपनी सूंड में लपेटकर समस्त लोकों का भ्रमण करवाया। जब परशुराम चेतनावस्था में आए तो क्रोधित होकर गणेश जी पर अपने फरसे से प्रहार कर दिया जिससे उनका एक दांत टूट गया, और गणेश जी एक दंताय करलाए।

Created On :   18 April 2018 4:42 AM GMT

और पढ़ेंकम पढ़ें
Next Story