प्रणब दा ने संघ के मंच से नेहरू के राष्ट्रवाद को सराहा तो कांग्रेस ने ली चैन की सांस

Pranab Mukharjee admired Nehrus nationalism from Sanghs stage
प्रणब दा ने संघ के मंच से नेहरू के राष्ट्रवाद को सराहा तो कांग्रेस ने ली चैन की सांस
प्रणब दा ने संघ के मंच से नेहरू के राष्ट्रवाद को सराहा तो कांग्रेस ने ली चैन की सांस
हाईलाइट
  • अब तक आलोचना करने वाले लोग प्रणब दा के इतिहासबोध की तारीफ कर रहे हैं।
  • कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने कहा कि पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने संघ को सच का आईना दिखाया है।
  • उन्होंने नागपुर में संघ के मंच पर संघ की उस कोशिश को हतोत्साहित किया
  • जिसके तहत संघ के नेता नेहरू के मुकाबले कभी सरदार वल्लभभाई पटेल तो कभी सुभाषचंद्र बोस को खड़ा करने की कोशिश करते रहे हैं।
  • पूर्व राष


जिडिटल डेस्क, नई दिल्ली। पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने नागपुर से पूरे देश को जो संदेश दिया है, उससे कांग्रेस खेमे ने राहत की सांस ली है। उनकी एक बड़ी उपलब्धि यह भी रही कि उन्होंने पहली बार संघ के नेताओं को जवाहरलाल नेहरू और महात्मा गांधी की तारीफ करने पर विवश कर दिया। प्रणब दा का पूरा भाषण नेहरू के राजनीतिक दर्शन पर आधारित रहा। उन्होंने नागपुर में संघ के मंच पर संघ की उस कोशिश को हतोत्साहित किया, जिसके तहत संघ के नेता नेहरू के मुकाबले कभी सरदार वल्लभभाई पटेल तो कभी सुभाषचंद्र बोस को खड़ा करने की कोशिश करते रहे हैं। अंग्रेजी में दिए भाषण में प्रणब मुखर्जी ने देश के इतिहास, संस्कृति और उसकी पहचान पर जिस तरह रोशनी डाली, वह संघ की विचारों से मेल नहीं खाती। 

संघ को पढ़ाया वास्तविक राष्ट्रवाद का पाठ
संघ के गढ़ नागपुर जा कर प्रणब मुखर्जी ने कहा कि भारत की महानता विशाल है। उसे किसी एक विचारधारा में नहीं बांधा जा सकता। मुखर्जी ने कहा कि वैचारित स्तर पर मतभेद होने के बाद भी हमें संवाद का रास्ता कभी बंद नहीं करना चाहिए। भारत का जैसा सांस्कृति स्वरूप है, उसमें असहिष्णुता का कोई स्थान नहीं हो सकता। उन्होंने अपने भाषण की शुरुआत में ही स्पष्ट कर दिया कि में अपनी समझ साझा करने आया हूं राष्ट्र, राष्ट्रवाद और देशभक्ति। कम से कम भारत में ये तीनों इस तरह एक दूसरे से जुड़ी हुई हैं कि उन्हें किसी तरह अलग नहीं किया जा सकता।

इसके बाद उन्होंने नेशन शब्द की परिभाषा पर बात शुरू की। उसी समय लग गया था कि प्रणब दा के भाषण का टोन क्या रहने वाला है। उन्होने जवाहरलाल नेहरू की मशहूर पुस्तक डिस्कवरी आफ इंडिया से उद्धरण उठाते हुए कहा कि कुछ बुनियादी मुद्दों पर हमें अपनी धारणाएं स्पष्ट कर लेनी चाहिए। उन्होंने अपने भाषण की शुरूआत ईसापूर्व महाजनपदों के दौर से शुरू करते हुए देश के ठोस, तार्किक और तथ्यपरक इतिहास पर प्रकाश डाला। 

 



 

कल्पनालोक से बाहर निकलने का आह्वान 
महत्वपूर्ण बात यह थी कि प्रणव दा ने जो कुछ कहा वह उस इतिहास के बिल्कुल विपरीत है, जिसे संघ प्रचारित करने की कोशिश करता रहा है। हिंदू मिथकों से भरे संघ के काल्पनिक इतिहास में जब तक सब हिंदू हैं, सब ठीक है, लेकिन जैसे ही बाहरी लोगों का पदार्पण होता है, पूरी सांस्कृतिक धारा ही प्रदूषित हो जाती है। संघ के इतिहास में भारत में ज्ञान, विज्ञान और समस्त वैभवों का उत्कर्ष दिखाई देता है। उसमें पुष्पक विमान उड़ते हैं, प्लास्टिक सर्जरी होती है और यहा तक कि इंटरनेट का भी जम कर इस्तेमाल होता है।  प्रणब मुखर्जी ने कहा कि ईसा से 400 साल पहले ग्रीक यात्री मेगास्थनीज़ आया तो उसने महाजनपदों वाला भारत देखा। उसके बाद उन्होंने चीनी यात्री ह्वेन सांग का ज़िक्र किया जिसने उन्होंने 7वीं शताब्दी के भारत पर विस्तार से प्रकाश डालने की कोशिश की। उन्होंने कहा कि उस दौर में तक्षशिला और नालंदा जैसे विश्वविद्यालय पूरी दुनिया की प्रतिभाओं को आकर्षित करते थे। उनका यह यह ऐतिहासिक ब्यौरा पूरी तरह से नेहरू की पुस्तक डिस्कवरी आफ इंडिया पर आधारित था। प्रचीन भारत के उद्धरणों का जिक्र करते हुए प्रणव मुखर्जी ने कहा कि प्राचीन भारत में किस तरह सहिष्णुतापूर्ण माहौल में रचनात्मक विकास हुआ। उन्होंने इतिहास का मनमाना ब्यौरा पेश करने वाले लोगों को नसीहत दी कि अगर उन्होंने नेहरू की डिस्कवरी आफ इंडिया पुस्तक नहीं पढ़ी है, तो उन्हें श्याम बेनेगल का धारावाहिक "भारत एक खोज" देखना चाहिए। 

भारत में सहष्णुता सबसे बड़ा मूल्य 
प्रणब मुखर्जी ने भारत में "उदारता" से भरे वातावरण में रचनात्मकता, कला-संस्कृति और ज्ञान-विज्ञान का विकास हुआ। उन्होने कहा कि भारत में राष्ट्र की अवधारणा यूरोप से बहुत पुरानी और उससे बहुत अलग है। इसका हमेशा ध्यान रखा जाना चाहिए। उन्होंने बताया कि राष्ट्र के दो मॉडल हैं, यूरोपीय और भारतीय। यूरोप का राष्ट्र एक धर्म, एक भाषा, एक नस्ल और एक साझा शत्रु की अवधारणा पर टिका है, जबकि भारत की पहचान सदियों से विविधता और सहिष्णुता की वजह से रही है। प्रणव ने स्पष्ट किया कि भारत की राष्ट्रीयता एक भाषा और धर्म में नहीं है। हमारा आदर्श वसुधैव कुटुंबकम में है। भारत के लोग 122 से अधिक भाषाएं और 1600 से अधिक बोलियां बोलते हैं। भारत में 7 बड़े धर्मों के अनुयाई रहते हैं, लेकिन सभी की पहचान भारतीय की है। 

सुरजेवाला ने कहा संघ को दिखाया आईना 
इस अवसर पर उन्होंने महात्मा गांधी को याद किया, जिन्होंने कहा था कि भारत का राष्ट्रवाद आक्रामक और विभेदकारी नहीं हो सकता। वह समन्वय पर ही चल सकता है। पूर्व राष्ट्रपति के भाषण से पहले कांग्रेसी बहुत चिंतित थे। बहुत सारे लोग उनके वैचारिक स्तर पर संघ समर्थक बन जाने से आशंकित थे। प्रणब दा का भाषण खत्म होने के बाद कांग्रेस ने यू टर्न ले लिया है। अब तक आलोचना करने वाले लोग प्रणब दा के इतिहासबोध की तारीफ कर रहे हैं।

 

 

 

 

 

कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने कहा कि पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने संघ को सच का आईना दिखाया है। प्रणब मुखर्जी के बयान का समर्थन करते हुए कांग्रेस के मीडिया प्रभारी रणदीप सिंह सुरजेवाला ने कहा कि देश हिंसा से नहीं चल सकता है। संविधान के मूल भाव सहिष्णुता है, इसी के आधार पर ही देश को चलाया जा सकता है। 

Created On :   8 Jun 2018 6:40 AM GMT

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