बिजनेसमैन : ऑटो से शुरू किया था सफर, आज सालाना टर्न ओवर 400 करोड़ है

pyare jiya khan is a successful businessman story in nagpur district
बिजनेसमैन : ऑटो से शुरू किया था सफर, आज सालाना टर्न ओवर 400 करोड़ है
बिजनेसमैन : ऑटो से शुरू किया था सफर, आज सालाना टर्न ओवर 400 करोड़ है

डिजिटल डेस्क, नागपुर। ऑटो, बस, ट्रक चलाने वाले व्यक्ति पर भारतीय प्रबंधन संस्थान, अहमदाबाद अध्ययन करे, ऐसा कम ही होता है। मगर संतरानगरी नागपुर के खाते में यह उपलब्धि दर्ज हुई है। इस व्यक्ति का नाम है प्यारे जिया खान। 24 साल पहले खान ने ऑटो, ट्रक चलाया, बस चलाई, आर्केस्ट्रा में काम किया, पर संघर्षों के सामने हार नहीं मानी। बड़ा ताजबाग़ निवासी खान की ट्रांसपोर्ट कंपनी का सालाना टर्नओवर आज 400 करोड़ रुपए का है। ट्रांसपोर्ट-क्षेत्र में काम करने वाली देश की तीन बड़ी कंपनियां जो 65,000 टन सामग्री का परिवहन करती हैं, इनमें खान की कंपनी की भागीदारी 80 प्रतिशत है।

प्यारे खान का सफर बेहद तंगहाली से शुरू हुआ था। उन्होंने मामा की सहायता से ऑटो चलाना सीखा। 1994 में एक निजी कंपनी की आर्थिक सहायता से ऑटो खरीदा। अतिरिक्त आय के लिए आर्केस्ट्रा कंपनी में की-बोर्ड भी बजाते थे। यहीं से खुद का व्यवसाय आरंभ करने की प्रेरणा मिली। ऑटो बेचकर सेकंडहैंड बस खरीदी। आगे बढ़ने की इच्छा से 2004 में ट्रांसपोर्ट क्षेत्र में हाथ आजमाने का इरादा किया। प्रतिस्पर्धा और झूठे प्रचार से कई बार उनके हौसलों को तोड़ने की कोशिश की गई लेकिन खान जिद पर डटे रहे। लोन पर ट्रक लेने के लिए कई बैंकों और वित्तीय संस्थाओं से संपर्क किया लेकिन अनुभवहीनता और गारंटी नहीं होने से 8 बैंकों और संस्थानों ने इंकार कर दिया।

एक निजी बैंक के मैनेजर ने खान पर भरोसा किया। खुद की गारंटी पर 11 लाख रुपए का कर्ज दिलाया। बैंक की क़िस्त के रूप में प्यारे खान को प्रतिमाह 22,000 रुपए का भुगतान करना होता था लेकिन वे 50,000 रुपए 6 माह तक भुगतान करते रहे। हालांकि यहां भी उनकी किस्मत ने पलटी खाई। 6 माह बाद ट्रक दुर्घटनाग्रस्त हो गया । 80,000 रुपए खर्च कर ट्रक को सड़क पर वापस लाए। उस दौर में खराब रास्तों के चलते ज्यादा रकम मिलने के बाद भी कोई ट्रक चालक नागपुर से संभलपुर जोड़ा माइन नहीं जाना चाहता था। प्यारे खान ने इस रास्ते पर चलने का जोखिम उठाया और आगे दो नए ट्रक खरीदे। इसके बाद खान सफलता की सीढ़ी चढ़ते गए। 

शिक्षा का हौसला, उम्र नहीं बाधा 
सामान्य ट्रकों की खरीद के बाद साल 2010 में लंबी छलांग लगाने के संकल्प के साथ शहर में पहली बार ढाई करोड़ की कीमत वाला 160 चक्कों वाला वाल्वो ट्रक खरीदा। इस ट्रक में भारी वजन की मशीनरी की आवाजाही की जाती है। इसके बाद खान ने नये व्यवसाय में हाथ आजमाने का निर्णय लिया। हिंदुस्तान पेट्रोलियम कंपनी का पेट्रोल पंप राष्ट्रीय महामार्ग पर शुरू करने का इरादा किया लेकिन लाइसेंस मिलने में शैक्षणिक योग्यता आड़े आ गई। रोटी-रोटी की जद्दोजहद में शिक्षा का समय ही नहीं मिल पाया था। दो बार असफलता हाथ लगी, आखिरकार तीसरे प्रयास में 10वीं उत्तीर्ण कर ली। इसके बाद, नोटबंदी की मंदी के बावजूद दिसंबर 2016 में विहिरगांव परिसर में दो एकड़ में जिले का सबसे बड़ा पेट्रोल पंप आरंभ किया है। इस पंप से प्रतिदिन 20,000 लीटर ईंधन की बिक्री से 6 लाख तक आमदनी हो रही है।

कार्यप्रणाली को मिली सराहना 
करीब एक साल पहले आयकर विभाग ने भी प्यारे जिया खान की कंपनी को 100 प्रतिशत टीडीएस कटौती वाली कंपनी के रूप में मान्यता दी है। उनके हौसलों और नीतियों की कार्पोरेट घरानों ने भी सराहना की है। काम को हर हाल में बेहतरीन बनाने की उनकी जिद को देखते हुए उन्हें अवसर भी बड़े दिए गए। 7 सितंबर 2016 को सीमावर्ती इलाके में भूटान पावर कार्पोरेशन का थर्मल पावर प्लांट बनाने का काम आरंभ हुआ था। तीस्ता नदी के किनारे पर डोकलाम सीमा से जुड़े रास्ते में बोडो आतंकियों के साथ ही पड़ोसी देशों की सेना की गोलियों का खतरा भी बना हुआ था। अंतरराष्ट्रीय सीमा से जुड़े हेरिटेज द्वार के समीप से निर्माणकार्य की सामग्री को ट्रकों में लेकर जाने की समस्या खड़ी हो  गई।

असम के बोंडाई से भूटान तक 
करीब 33 किमी तक सुरंग बनाकर सामग्री पहुंचाने का निर्णय लिया गया। इस काम की जिमीदारी खान ने ली। कड़ी मशक्कत और खतरे के बावजूद तड़के खुदाई और दिन भर रास्ते के बीच आने वाले पेड़ों की कटाई कर सामग्री पहुंचाई। उनकी क्षमता की सीमा सुरक्षा बल सहित भूटान प्रशासन द्वारा भी प्रशंसा की गई।

IIM में हो रहा अध्ययन
प्यारे खान के मैनेजमेंट-गुर को समझने का प्रयास अब अहमदाबाद स्थित भारतीय प्रबंधन संस्थान भी कर रहा है। उन्होंने जुलाई माह में खान को आमंत्रित कर चर्चा की। अंग्रेजी भाषा से होने वाली दिक्कतों के चलते IIM के शिक्षकों और विशेषज्ञों ने पूरा सत्र हिंदी में संचालित किया। उनकी कार्यप्रणाली पर भी अध्ययन किया जा रहा है। अगले सत्र में, दिसंबर में IIM ने प्यारे खान को दोबारा आमंत्रित किया है।

मल्टीमॉडल इनोवेशन
जिया खान 240 गाड़ियों के साथ केईसी, जिंदल स्टील्स, स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया, सांगवी क्रेन्स और टाटा स्टील्स समेत कई कार्पोरेट कंपनियों के साथ काम कर रहे हैं। टाटा स्टील्स द्वारा देश की विश्वसनीय ठेका एजेंसी में 33वें स्थान पर उन्हें रखा गया है। रामझूला की केबल लाने के साथ ही एनटीपीसी मौदा के कई महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट भी खान की कंपनी ने पूरे किए हैं। जल्द ही जल-यातायात को भी व्यवसाय में शामिल करने की योजना बनाई जा रही है। बुरे दिनों में सहायता करने वालों को प्यारे खान भूलते नहीं हैं। उन पर विश्वास जताने वाले बैंक मैनेजर भूषणसिंह का मुंबई में बैंक उपाध्यक्ष के रूप में स्थानांतरण हुआ तो उन्हें खान ने अपनी कंपनी में काम करने का ऑफर दिया। 30 लाख रुपए सालाना के वेतन को छोड़कर भूषणसिंह ने उनके साथ जुड़ना मंजूर किया।

प्यारे खान का मानना है कि सामान्य तौर पर कच्चा माल ही ट्रक पर ले जाया जाता है लेकिन प्रगति के लिए मल्टीमॉडल इनोवेशन अपनाना जरूरी है। इस लिहाज से, कच्चे माल के साथ ही तैयार माल भी ट्रेन-ट्रांसपोर्ट में ले जाने का प्रयोग किया है। खान के पास कन्स्ट्रक्शन और स्टील इंड्रस्टी में रोजाना होने वाले दामों के उतार-चढ़ाव को पहचानने की कला है। उनका सफलता-सूत्र चार बिंदुओं से बनता है- इनोवेशन, साथियों और स्टाफ पर भरोसा, धैर्य और सकारात्मक नजरिया और चौथा, जोखिम का साहस। छोटी विफलताओं पर निराश होने की युवा-प्रवृत्ति पर खान कहते हैं, ‘इस सूत्र पर मेहनत और लगन से अमल किया जाना चाहिए और भीड़ से हटकर कुछ विशेष करने का ज़ज्बा होना चाहिए।’

सपना है, लेकिन हकीकत कठिन
पिछले पांच सालों से ऑटो चला रहा हूं। परिवार की रोजी-रोटी इसी पर आश्रित है। सपना है कि इस ऑटो की बदौलत कई और ऑटो ले लूं लेकिन महंगाई और जरूरताें के चलते सपने को पूरा कर पाना आसान नहीं है। फिर भी कोशिश कर रहा हूं कि जल्द ही ज्यादा क्षमता वाला ऑटो खरीद पाऊं।
सुनील क्षत्रिय, आॅटोचालक, वनदेवी नगर

आर्थिक सहायता का अभाव
पिछले कई सालों से नागपुर से गढ़चिरोली के बीच ट्रक चला रहा हूं। खुद का ट्रक खरीदने की इच्छा है, लेकिन बैंक अथवा वित्तीय संस्थाओं से सहायता नहीं मिल पाई, इसलिए खुद का ट्रक नहीं खरीद पा रहा हूं। सपने को पूरा करने की कोशिश में परिवार की रोजी-रोटी खतरे में आने का डर लगने लगता है।
सचिन लांडगे, ट्रक ड्राइवर, कुही रोड

Created On :   3 Dec 2018 11:01 AM GMT

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