पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव परिणाम से संघ की चिंता बढ़ी, भाजपा की पराजय चुभ रही

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पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव परिणाम से संघ की चिंता बढ़ी, भाजपा की पराजय चुभ रही
पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव परिणाम से संघ की चिंता बढ़ी, भाजपा की पराजय चुभ रही

डिजिटल डेस्क, नागपुर। पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव के परिणाम को लेकर भाजपा ही नहीं, मातृ संगठन माने जाने वाले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में चिंता व चिंतन की स्थिति बनी है। विशेषकर मध्यप्रदेश में भाजपा की पराजय सबसे अधिक संघ को चुभ रही है। हालांकि संघ की ओर से इस मामले में खुलकर कुछ नहीं कहा जा रहा है। लेकिन सूत्र बता रहे हैं कि संघ मध्यप्रदेश में भाजपा की पराजय पर अपनी ओर से समीक्षा करेगा। संघ से जुड़े व भाजपा के महासचिव रहे रामलाल के अलावा निवर्तमान मुख्यमंत्री शिवराजसिंह की अगुआई में विशेष समीक्षा की जाएगी। संघ को लगता है कि मध्यप्रदेश में कांग्रेस राजनीतिक लिहाज से संघ की परेशानी बढ़ाने का प्रयास कर सकती है। 

समयांतर में बदलती रही भूमिका
संघ मामलों के जानकार के अनुसार, मध्यप्रदेश में चुनाव को लेकर संघ की भूमिका बदलती रही है। इस चुनाव के पहले संघ कुछ मामलों को लेकर भाजपा से नाराज था। विजयादशमी उत्सव के दौरान मंदिर र्माण का मामला उछालकर संघ के सरसंघचालक डॉ.मोहन भागवत ने एक तरह से भाजपा व केंद्र सरकार के कान खींचने का काम भी किया। बाद में मुंबई में बैठक में सरकार्यवाह भैयाजी जोशी ने तो खुलकर कह दिया कि संघ मंदिर के लिए सड़क पर उतर आएगा। मध्यप्रदेश में संघ की संगठनात्मक स्थिति काफी सक्षम मानी जाती है। सेवा कार्यों के साथ संघ घर-घर पहुंचने लगा है। शिवराजसिंह को लेकर संघ की कोई नाराजगी सामने नहीं आई, लेकिन एससी एक्ट को लेकर शिवराज का बयान व निर्णय कई स्वयंसेवकों को खटका था। कहा जा रहा है कि सपाक्स जैसे संगठनों के सक्रिय होने व एक धार्मिक उपदेशक के तल्ख बयानों के साथ संघ के कई स्वयंसेवकों की नाराजगी भी जुड़ी थी।

मध्यप्रदेश में संघ मामलों की रिपोर्टिंग देने वाले स्वयंसेवकों का कहना था कि शिवराज की एससी एक्ट को लेकर राजनीति सवर्णों के साथ अन्याय करने वाली है। लिहाजा संघ के स्वयंसेवकों ने शिवराज व भाजपा को चेताया भी। हालांकि संघ की ओर से कुछ नहीं कहा गया, लेकिन चुनाव के समय संघ के सर्वे के तौर पर जो रिपोर्ट सामने आई, उसमें उज्जैन, ग्वालियर व इंदौर विभाग की स्थिति के बहाने संघ के स्वयंसेवकों ने अपना रोष व्यक्त किया। सोशल मीडिया पर वायरल संघ का पत्र मध्यप्रदेश भाजपा के अध्यक्ष राकेश सिंह को लिखा गया था। उस पत्र को लेकर अब तक साफ नहीं किया गया है कि वह संघ की ओर से लिखा गया था या नहीं। चुनाव के दौरान संघ की भूमिका अचानक बदली। कांग्रेस ने मध्यप्रदेश के लिए घोषणा-पत्र जारी किया। उसमें संकल्प लिया गया कि सरकार में आने पर संघ की गतिविधियों पर पाबंदियां लगाई जाएंगी। सरकारी भवनों के परिसर में संघ की शाखाएं लगाने पर रोक लगाई जाएगी। साथ ही सरकारी कर्मचारियों को संघ की शाखा में जाने की अनुमति नहीं दी जाएगी। कांग्रेस के इस घोषणापत्र के बाद संघ के स्वयंसेवकों ने मध्यप्रदेश में बूथ स्तर पर ताकत झोंक दी थी। भाजपा की जीत के लिए अधिकाधिक मतदान का आह्वान किया। कहा भी जा रहा है कि इन राज्यों में मतदान प्रतिशतांक बढ़ने में संघ का ही बड़ा याेगदान है। संघ को लेकर मध्यप्रदेश कांग्रेस के घोषणापत्र के दौरान ही कांग्रेस के महासचिव मलिकार्जुन खड़गे ने नागपुर में आकर कहा था कि संघ सामाजिक व गैर-राजनीतिक संगठन कैसे हो सकता है। कांग्रेस के संघ को लेकर इन तेवर पर स्वयंसेवकाें की पहले से ही नजर है।

शिवराज ने शुरू कराई थी शाखा
मध्यप्रदेश में संघ पर बार-बार संकट लाया जाता रहा है। 1993 में उत्तरप्रदेश में बाबरी प्रकरण हुआ। तब मध्यप्रदेश में सुंदरलाल पटवा के नेतृत्व की भाजपा सरकार को बर्खास्त कर दिया गया था। 1981 में मध्यप्रदेश सरकार ने सरकारी भवनों में संघ की गतिविधियों पर पाबंदी लगाई गई थी। 2000 में दिग्विजयसिंह सरकार ने प्रतिबंध को सिविल सर्विसेज कंडक्ट रुल के तहत जारी किया था। नवंबर 2003 में उमा भारती मुख्यमंत्री बनीं। उन्होंने भी प्रतिबंध जारी रखा। बाबूलाल गौर के मुख्यमंत्री रहते भी वह जारी था। 2006 में शिवराजसिंह चव्हाण ने बतौर मुख्यमंत्री संघ को सामाजिक व सांस्कृतिक संगठन के तौर पर काम करने की अनुमति दी। पाबंदी हटाई। शिवराज ने ही संघ की शाखा नए सिरे से शुरू करवाई थी।

चिंता का कारण नहीं
संघ विचारों से जुड़े जाने माने लेखक दिलीप देवधर का कहना है कि संघ को लेकर कांग्रेस की भूमिका कभी अनुकूल नहीं रही है। लिहाजा अब भी यह नहीं कहा जा सकता है कि संघ को मध्यप्रदेश में पाबंदी की चिंता हो सकती है। संघ व गांधी परिवार के बीच बरसों से शह मात का क्रम चलता रहा है। जवाहरलाल नेहरू से लेकर राहुल गांधी तक यही स्थिति है। राजनीति में एक वर्ग यह माननेवाला भी है कि संघ को बदनाम करने के लिए कांग्रेस ने महात्मा गांधी की हत्या हाेने दी। महात्मा गांधी की हत्या के कुछ दिन पहले ही नेहरू ने भाषण में कहा था कि वे संघ को कुचल डालेंगे। इंदिरा गांधी ने आपातकाल के समय संघ पर पाबंदी लगाई। स्वयंसेवकों काे जेल भेजा गया। 2008 के दरमियान हिंदू आतंकवाद का जो शोर-शराबा हुआ व तत्कालीन केंद्र सरकार कुछ ठोस कदम उठाने की बात कर रही थी। उस समय सरकार का नेतृत्व सोनिया गांधी व राहुल गांधी ही कर रहे थे। श्री देवधर यह भी कहते हैं कि राजनीति सब कुछ कराने लगती है। राहुल गांधी धार्मिक स्थलों पर जाकर अपनी राजनीति को हिंदुओं के प्रति साफ्ट दर्शाने लगते हैं। हो सकता है वे कल को संघ के ही अधिक करीब दिखने लगें। जनसंघ के अध्यक्ष रहे पं.बच्छराज व्यास के पुत्र व भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता गिरीश व्यास सीधे चुनौती देने लगते हैं। वे कहते हैं-कांग्रेस की ताकत नहीं है कि वह संघ पर पाबंदी लगा पाए। संघ संविधान के अनुरूप कार्य कर रहा है। सीमा सुरक्षा से लेकर आपदा प्रबंधन में संघ का सेवाकार्य सबको मालूम है। घोषणापत्र के अनुरूप कांग्रेस कोई कदम उठाएगी तो उसे बड़ा परिणाम भुगतना पड़ेगा।

Created On :   13 Dec 2018 9:06 AM GMT

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