मरघट में फागाेत्सव, इस श्मशान में 'शिव' ने खेली थी होली
डिजिटल डेस्क, काशी। मनघट के सन्नाटे को चीरकर होली के रंग बिखर जाते हैं। जलती चिताओं के बीच औघड़, बाबा साधु ठंडी चिताओं की भस्म उड़ाकर होली मनाते हैं। डमरू के नाद के बीच भोले बाबा के जयकारे हर ओर गूंज उठते हैं। आपने अब तक जहां भी जितने भी होली के रंग देखे हैं उनमें ये सबसे अलग है। यहां होली की खुशियां बिखरी होती हैं, किंतु वहीं दूसरी ओर कोई चिता को अग्नि दे रहा होता है तो कहीं चिता से लपटें उठती हुई नजर आती हैं।
जी हां, यहां हम बात कर रहे हैं महाश्मशान की, जिसके बारे में कहा जाता है कि यहां महादेव साक्षात निवास करते हैं। महाश्मशान से मणिकर्णिका घाट तक होली का उत्साह देखने मिलता है।
गिरा था शिव का कुंडल
काशी के इस श्मशान के बारे में कहा जाता है कि यहां दाह संस्कार करने से मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति होती है। मर्णिकर्णिका घाट पर शिव के कानों का कुण्डल गिरा था जो फिर कहीं नहीं मिला, जिसकी वजह से यहां मुर्दे के कान में पूछा जाता है कि कहीं उसने शिव का कुंडल तो नही देखा।
भस्म की होली
पूरे भारत में ये स्थान सबसे विरल माना जाता है। यहां भूत प्रेत भी होली के रंग में रंगने आते हैं। काशी में होली की शुरूआत रंगभरी एकादशी से हो जाती है। इस दिन महादेव की चांदी की पालकी पर सवारी निकाली जाती है। इस स्थान के बारे में कहा जाता है कि मां पार्वती से गौना के बाद महादेव ने अपने भक्तों व गणों के साथ यहीं होली खेली थी। यहां अबीर गुलाल का चिता की भस्म से एकाकार हाेता है। इसे मोक्ष की नगरी भी कहा जाता है। श्मशान में रंग गुलाल के साथ ही भस्म की होली भी खेली भी जाती है। ऐसा भी माना जाता है कि गाैना के उपरांत काशीवासियाें को शिव ने हाेली की हुड़दंग का उपहार दिया था।
Created On :   24 Feb 2018 4:00 AM GMT