एक संपूर्ण भारत का निर्माण कर सरदार पटेल बने 'लौह पुरुष'
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। आज देश के लौह पुरुष कहे जाने वाले सरदार वल्लभ भाई पटेल की 67वीं पुण्यतिथि है। इस मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सरदार को याद करते हुए ट्वीट किया है। जिसमें उन्होंने लिखा कि "हम महान सरदार पटेल को उनकी पुण्यतिथि पर याद करते हैं। भारत का हर एक नागरिक देश के प्रति किए गए सरदार पटेल के महान कार्यों के लिए उनका ऋणी है।" सरदार पटेल का जन्म जन्म 31 अक्टूबर 1875 को गुजरात के नाडियाड में हुआ था, सरदार वल्लभ पटेल के पिता झावेरभाई किसान थे और मां लाडबाई एक घरेलू महिला थीं। सरदार वल्लभ पटेल ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा करमसद में हासिल की। उनका विवाह झबेरबा से हुआ था। सरदार पटेल को उनके बड़े भाई ने वकालत की पढ़ाई पढ़ने के लिए लंदन भेजा था।
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We remember the great Sardar Patel on his Punya Tithi. Every Indian is indebted to Sardar Patel for his monumental service to our nation.
— Narendra Modi (@narendramodi) December 15, 2017
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"Take to the path of dharma – the path of truth and justice. Don’t misuse your valour. Remain united. March forward in all humility, but fully awake to the situation you face, demanding your rights with firmness"
— Office of RG (@OfficeOfRG) December 15, 2017
My humble tributes to Sardar Patel on his Punyatithi.
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सरदार पटेल महात्मा गांधी के विचारों से बहुत प्रेरित थे। लंदन से वकालत की पढ़ाई करने के बाद 1913 में वे भारत लौट आए और अहमदाबाद में उन्होंने वकालत करनी शुरू की। इसी बीच गांधी जी के साथ भी उन्होंने भारत के स्वतन्त्रता आन्दोलन में भाग लिया। स्वतंत्रता संग्राम में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका थी। जब भारत आजाद हुआ तब वो देश के प्रथम गृह मंत्री व उप प्रधानमंत्री बने थे। हालांकि उन्हें गांधी जी प्रधानमंत्री बनाने के पक्ष में थे। ऐसे कहा जाने लगा था "सरदार" आज़ादी के बाद विभिन्न रियासतों में बनते भारत को एक सूत्र में पिरोने का काम भी सरदार पटेल ने ही किया।
बारदौली कस्बे में ज़ोरदार व सशक्त सत्याग्रह करने के बाद उन्हें सरदार कहा जाने लगा। उसके बाद ही उन्हें लौह पुरुष भी कहा जाने लगा। गुजरात का खेडा खण्ड (डिविजन) उन दिनों भयंकर सूखे की चपेट में था। किसानों ने अंग्रेज सरकार से भारी कर में छूट की मांग की, लेकिन जब यह मांग स्वीकार नहीं की गई तो सरदार पटेल, गांधीजी एवं अन्य लोगों ने किसानों का नेतृत्व किया और उन्हे कर न देने के लिए प्रेरित किया। जिसके बाद अंग्रेज सरकार झुकी और उस वर्ष करों में राहत दी गयी। यह सरदार पटेल की पहली सफलता थी। पटेल को भारत का बिस्मार्क भी कहा जाता है। सरदार पटेल ने देश के लिए बहुत योगदान दिए है जिन्हें एक लेख में समेट पाना मुश्किल है।
नेहरू और पटेल के तनावपूर्ण संबंध
बता दें कि अधिकांश प्रान्तीय कांग्रेस समितियां सरदार पटेल के पक्ष में हीं थीं, लेकिन नेहरू भी प्रधानमंत्री बनना चाहते थे, चूंकि नेहरू गांधी जी के ज्यादा करीबी थे और अंग्रेजों के भी मेजोरिटी वोटिंग के बाद जब नेहरू को सरदार पटेल से कम वोट मिले तो नेहरू जी नाराज हो गए और गांधी जी ने पटेल को अपने को प्रधानमंत्री पद की दौड से अपने को दूर रहने के लिए कहा, उनकी इच्छा का आदर करते हुए सरदार पटेल ने इस पद के लिए अपनी दावेदारी छोड़ दी। इसके बाद उन्हे उपप्रधान मंत्री एवं गृह मंत्री का कार्य सौंपा गया। हालांकि इसके बाद भी नेहरू और पटेल के संबंध तनावपूर्ण ही रहे।
पीवी मेनन के साथ मिलकर किया देश जोड़ने का काम
अब गृह मंत्री के रूप में सरदार पटेल की पहली प्राथमिकता थी कि देसी रियासतों (राज्यों) को भारत में मिलाना। उन्होंने यह कर भी दिखाया। वह भी बिना देश के किसी नागरिक का खून बहे, सिर्फ हैदराबाद के आपरेशन पोलो के लिए उनको सेना भेजनी पड़ी थी। सरदार पटेल ने आजादी के ठीक पूर्व ही पीवी मेनन के साथ मिलकर कई देसी राज्यों को भारत में मिलाने के लिए कार्य आरम्भ कर दिया था। पटेल और मेनन ने देसी राजाओं को बहुत समझाया कि उन्हें स्वायत्तता देना सम्भव नहीं होगा। इसके परिणामस्वरूप तीन को छोड़कर शेष सभी राजवाडों ने स्वेच्छा से भारत में विलय का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। केवल जम्मू एवं कश्मीर, जूनागढ तथा हैदराबाद के राजाओं ने ऐसा करना नहीं स्वीकार नहीं किया। इसी बीच जब जूनागढ के नवाब के विरुद्ध जब बहुत विरोध हुआ तो वह भागकर पाकिस्तान चला गया और जूनागढ भी भारत में मिल गया, लेकिन जवाहरलाल नेहरू ने कश्मीर को यह कहकर अपने पास रख लिया कि यह समस्या एक अन्तराष्ट्रीय समस्या है। 562 छोटी-बड़ी रियासतों को एक में विलयकर सरदार पटेल ने एक संपूर्ण भारत बनाने में अपना योगदान दिया। 5 जुलाई 1947 को एक रियासत विभाग की स्थापना की गई थी।
रक्तहीन क्रांति के लिए गांधी जी ने की तारीफ
सरदार पटेल ने एक बार सुना कि बस्तर की रियासत में कच्चे सोने का बड़ा भारी इलाका है और इस भूमि को दीर्घकालिक पट्टे पर हैदराबाद की निजाम सरकार खरीदना चाहती है। इसके बाद पटेल ने वीपी मेनन को साथ लिया और उड़ीसा पहुंचे, वहां के 23 राजाओं से कहा, "कुएं के मेढक मत बनो, महासागर में आ जाओ।" इसके बाद वे फिर नागपुर पहुंचे, यहां के 38 राजाओं से मिले। इन्हें सैल्यूट स्टेट कहा जाता था, यानी जब कोई इनसे मिलने जाता तो तोप छोड़कर सलामी दी जाती थी। पटेल ने इन राज्यों की बादशाहत को आखिरी सलामी दी। 562 रियासतों का एकीकरण करना उस समय विश्व इतिहास में एक आश्चर्य का विषय था। भारत की यह रक्तहीन क्रांति थी। महात्मा गांधी ने भी सरदार पटेल की इस उपलब्धि पर कहा था कि "रियासतों की समस्या इतनी जटिल थी जिसे केवल तुम ही हल कर सकते थे।"
चीन के इरोदों से किया सावधन
सरदार वल्लभभाई पटेल ने 1950 में प्रधानमंत्री नेहरू को पत्र लिखकर चीन से आगाह रहने की सलाह भी दी थी। फिर भी जवाहरलाल नेहरू इस खतरे को भांप नहीं पाए। उन्होंने पटेल की बातों को नजरअंदाज किया जिसका नतीजा यह रहा कि भारत को साल 1962 में चीन से युद्ध का सामना करना पड़ा।
पटेल न होते तो पाकिस्तान बन जाता मध्यप्रदेश
पाकिस्तान के गठन के बाद केंद्र सरकार को भोपाल के नवाब हमीदुल्ला खां पर शक था। दिल्ली सरकार मध्यप्रदेश में पाकिस्तानी गतिविधियों का कोई केंद्र नहीं देखना चाहती थी। ऐसे में सरदार पटेल ने तुरंत फैसला लिया और भोपाल पर नजर रखने के लिए इसे राजधानी बनाने का फैसला कर दिया। क्योंकि नवाब ने 1948 में बैंक ऑफ भोपाल की शाखा कराची में खोलकर सारा पैसा उसमें ट्रांसफर करवा दिया था। इससे भोपाल के हजारों नागरिकों की जमा-पूंजी डूब गई। नवाब तब हिंदुस्तान के मध्य में रहकर पाकिस्तान से संबंध चाहते थे। गृहमंत्री के रूप में सरदार पटेल पहले ऐसे व्यक्ति थे, जिन्होंने भारतीय नागरिक सेवाओं (आईसीएस) का भारतीयकरण कर इन्हें भारतीय प्रशासनिक सेवाएं (आई.ए.एस.) बनाया। जो अधिकारी अंग्रेजों की सेवा करते थे उनमें विश्वास भरकर उन्हें राजभक्ति से देशभक्ति की ओर मोड़ा। कहा जाता है कि यदि सरदार पटेल कुछ और साल जीवित रहते तो संभवत: नौकरशाही का पूर्ण कायाकल्प हो जाता। सरदार पटेल सही मायनों में मनु के शासन की कल्पना थे। उनमें कौटिल्य की कूटनीतिज्ञता तथा महाराज शिवाजी जैसी दूरदर्शिता थी।
पटेल के नाम ये सम्मान
अहमदाबाद के हवाई अड्डे का नामकरण सरदार वल्लभभाई पटेल अन्तराष्ट्रीय हवाई अड्डा रखा गया है।
गुजरात के वल्लभ विद्यानगर में सरदार पटेल विश्वविद्यालय बनाया गया है।
सन 1991 में मरणोपरान्त भारत रत्न से सम्मानित किए गए। सरदार वल्लभभाई पटेल को स्टैच्यू ऑफ यूनिटी भी कहा जाता है।
पटेल की एक मूर्ति भी स्थापित की गई है, जिसकी "स्टैच्यू ऑफ लिबर्टी" (93 मीटर) से दुगनी ऊंचाई है।
इस प्रतिमा को केवाड़िया में सरदार सरोवर बांध के सामने नर्मदा नदी के मध्य में स्थापित किया जाएगा।
Created On :   15 Dec 2017 5:40 AM GMT