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संतों का सत्संग हमारी बुद्धि को प्रखर और शुद्ध बनाता है -सवितानंद महाराज
डिजिटल डेस्क, नागपुर। संतों का सत्संग हमारी बुद्धि को प्रखर और शुद्ध बना देता है। संतों के चरणों से स्थान पवित्र होता है। यह उद्गार गुजरात स्थित सूर्यकन्या साधना कुटीर के स्वामी सवितानंद महाराज ने व्यक्त किए। स्वामी सवितानंद का आगमन माधव नेत्रालय में हुआ। लगातार दो दिनों तक उनके प्रवचनों का आयोजन नेत्रालय परिसर में किया गया। उनके प्रवचन का विषय "स्वान्त सुखाय" था।
हर स्थिति में प्रसन्न रहें
स्वामीजी ने हमें सुखी कैसे रहना चाहिए, सुख की क्या परिभाषा है इन सभी बातों पर विभिन्न उदाहरणों द्वारा प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि समाजसेवा, मन:स्थिति और आत्म संतुष्टि हेतु समाजसेवा करना दूसरों के लिए नहीं, बल्कि स्वयं के लिए होना चाहिए। समाज का पैराशूट प्रत्येक के कंधे पर बंधा हुआ है। और हम समाज का ऋण चुका रहे हैं। हमें हर परिस्थिति में प्रसन्न रहना चाहिए।
दृष्टि परिवर्तन करना अनिवार्य
उन्होंने इस पावन अवसर पर कहा कि चूहे का स्वभाव कोई भी वस्तु को सिर्फ कुतरना ही है। वह यह नहीं जानता कि इससे दूसरों को क्या नुकसान होगा? दृष्टि परिवर्तन करना अनिवार्य है। अध्यात्म का अर्थ है आस्तिक रहना और नास्तिक रहते हुए भी आस्तिक अपने आप बन जाता है।
संचित कर्म के अनुसार भाग्य
स्वामीजी ने कहा कि कुम्हार चाहे तो मिट्टी से कुछ भी बना सकता है। हम तो मिट्टी मात्र है। कुम्हार की मर्जी है वह क्या बनाता है। जिस प्रकार पोस्टमैन संदेश भेजता है, वह सिर्फ भेजने का काम करता है उसे पता नहीं चिट्ठी में क्या संदेश है। हमारे पास जो संचित कर्म है उसके अनुसार हमारा भाग्य बनता है। "स्वान्त सुखाय" की इस तरह गणना स्वामी महाराज ने की। प्रवचन में आखरी तक लोग डूबे रहे। बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने प्रवचन का लाभ लिया। प्रास्ताविक नेत्रालय के महासचिव डा. अविनाशचंद्र अग्निहोत्री ने किया। उपाध्यक्ष निखिल मुंडले ने आभार माना। प्रवचन का लाभ नेत्रालय के सहयोगियों और ट्रस्टियों के साथ समाज के लोगों ने लिया।
Created On :   5 Dec 2019 7:43 AM GMT