इलेक्शन कमीशन को भी ज्यादा पॉवर मिले : पिटीशन, SC ने केंद्र से मांगा जवाब

SC sought repl from the Center on Election Commission autonomy
इलेक्शन कमीशन को भी ज्यादा पॉवर मिले : पिटीशन, SC ने केंद्र से मांगा जवाब
इलेक्शन कमीशन को भी ज्यादा पॉवर मिले : पिटीशन, SC ने केंद्र से मांगा जवाब

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। इलेक्शन कमीशन की ऑटोनॉमी (स्वायत्ता) पर फाइल की गई पिटीशन पर सुनवाई करते हुए सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से जवाब मांगा है। चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) दीपक मिश्रा की बेंच ने इस पिटीशन पर सुनवाई करते हुए केंद्र सरकार से उसका जवाब मांगा है। बीजेपी लीडर और एडवोकेट अश्विनी उपाध्याय की तरफ से फाइल की गई इस पिटीशन में इलेक्शन कमीशन की ऑटोनॉमी और इलेक्शन कमिश्नर को हटाने के नियमों में बदलाव करने की मांग की गई थी। बता दें कि इस मामले पर अब अगली सुनवाई एक महीने बाद होगी।

एटॉर्नी जनरल ने क्या कहा?

वहीं इस पिटीशन पर सुनवाई के दौरान एटॉर्नी जनरल (AG) केके वेणुगोपाल ने कहा कि इस मामले पर उनका रुख अलग है। केके वेणुगोपाल ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि "इस पिटीशन में इलेक्शन कमीशन की ऑटोनॉमी और इलेक्शन कमिश्नर को हटाने की प्रोसेस में बदलाव करने की मांग की गई है, लेकिन इस मामले में मेरी राय अलग है। इसलिए इस मुद्दे पर पहले केंद्र से जवाब मांग लिया जाए।" इसके बाद CJI दीपक मिश्रा की बेंच ने एडिशनल सॉलिसिटर जनरल (ASG) पिंकी आनंद से 4 हफ्तों के अंदर केंद्र का जवाब देने को कहा है।

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पिटीशन में क्या की गई है मांग? 

अश्विनी उपाध्याय की तरफ से फाइल की गई इस पिटीशन में मांग की गई है कि चीफ इलेक्शन कमिश्नर और इलेक्शन कमिश्नर की अपॉइंटमेंट प्रोसेस में भी ट्रांसपेरेंसी होनी चाहिए। इस पिटीशन में कहा गया है कि "हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जजों के अपॉइंटमेंट में जिस प्रोसेस को फॉलो किया जाता है, वैसी ही प्रोसेस चीफ इलेक्शन कमिश्नर और इलेक्शन कमिश्नर के अपॉइंटमेंट में भी फॉलो की जाए।" इसके साथ ही ये भी मांग की गई है कि इलेक्शन कमिश्नर को भी हटाने की प्रोसेस चीफ इलेक्शन कमिश्नर की तरह ही हो। बता दें कि चीफ इलेक्शन कमिश्नर को महाभियोग के जरिए ही हटाया जा सकता है, जबकि इलेक्शन कमिश्नर को चीफ इलेक्शन कमिश्नर की सिफारिश पर हटाया जा सकता है।

लोकसभा-राज्यसभा की तरह EC का भी सेक्रेटरिएट बने

बीजेपी लीडर अश्विनी उपाध्याय ने अपनी पिटीशन में कहा है कि "इलेक्शन कमीशन को भी ये अधिकार मिले कि वो सुप्रीम कोर्ट की तरह चुनाव संबंधी कानून और आचार संहिता खुद बना सके।" इसके साथ ही ये भी कहा गया है कि "जिस तरह से लोकसभा और राज्यसभा का अलग सेक्रेटरिएट होता है, वैसे ही इलेक्शन कमीशन का भी अलग से सेक्रेटरिएट बने।" उपाध्याय ने अपनी पिटीशन में मांग की है कि "स्टेट इलेक्शन कमिश्नर को भी चीफ इलेक्शन कमिश्नर की तरह ही सुरक्षा मिलनी चाहिए, ताकि कमीशन की स्वतंत्रता बरकरार रहे।" उन्होंने अपनी पिटीशन में संविधान की धारा-324(5) को चुनौती दी है।

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इलेक्शन कमिश्नर कैसे होते हैं अपॉइंट? 

चीफ इलेक्शन कमिश्नर और स्टेट इलेक्शन कमिश्नर को राष्ट्रपति अपॉइंट करते हैं। चीफ इलेक्शन का टेन्योर 6 साल या 65 साल की उम्र तक होता है, जबकि स्टेट इलेक्शन कमिश्नर का टेन्योर 6 साल या 62 साल की उम्र तक होता है। इलेक्शन कमिश्नर्स को सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस के बराबर ही सैलरी मिलती है। चीफ इलेक्शन कमिश्नर को महाभियोग के जरिए ही हटाया जा सकता है। इलेक्शन कमीशन ऑफ इंडिया के पास विधानसभा, लोकसभा, राज्यसभा, राष्ट्रपति जैसे चुनाव कराने की जिम्मेदारी होती है। वहीं स्टेट इलेक्शन कमीशन ग्राम पंचायत, नगरपालिका, महानगर परिषद, तहसील और जिला परिषद के चुनाव कराने का अधिकार होता है।

क्या होता है महाभियोग? 

भारत के संविधान के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट या किसी हाईकोर्ट के जज और चीफ इलेक्शन कमिश्नर को सिर्फ "महाभियोग" के जरिए ही हटाया जा सकता है। महाभियोग को "इंपीचमेंट" कहा जाता है, जिसका लैटिन भाषा में मतलब होता है "पकड़े जाना"। भारतीय संविधान में महाभियोग का उल्लेख आर्टिकल 124(4) में मिलता है। इसके तहत अगर किसी भी कोर्ट के जज या चीफ इलेक्शन कमिश्नर पर कोई आरोप लगता है, तो उसे महाभियोग लाकर पद से हटाया जा सकता है। महाभियोग के जरिए पद से हटाने के लिए लोकसभा के 100 सांसद और राज्यसभा के 50 सांसदों की सहमति जरूरी होती है। इसके साथ ही महाभियोग के जरिए चीफ इलेक्शन कमिश्नर को तभी पद से हटाया जा सकता है, जब ये प्रस्ताव संसद को दोनों सदनों में दो-तिहाई बहुमत से पास होता है।

Created On :   19 Feb 2018 9:55 AM GMT

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