शंकराचार्य जयंती 2018 : छोटी उम्र में ही की 4 मठ की स्थापना 

Shankaracharya Jayanti 2018: Establishment of 4 Maths at a young age
शंकराचार्य जयंती 2018 : छोटी उम्र में ही की 4 मठ की स्थापना 
शंकराचार्य जयंती 2018 : छोटी उम्र में ही की 4 मठ की स्थापना 

डिजिटल डेस्क, भोपाल। वैशाख मास का हिंदूधर्म में अत्यंत महत्व है। इस मास में बहुत से महापुरुषों ने जन्म लिया था। इन्हीं में से एक हैं आदि गुरू शंकराचार्य। जिनका भारतीय संस्कृति के पुनरुत्थान में विशेष योगदान है। सनातन धर्म के अनुयायी उन्हें भगवान शिव का अवतार मानते थे। इनका जन्म वैशाख शुक्ल पक्ष की तृतीया को हुआ था। ये तिथि इस बार 20 अप्रैल 2018 को पड़ रही है। ये थे तो केरल के पर इनका कार्यक्षेत्र उत्तर भारत रहा, इसके बाद इन्होंने चारों दिशाओं में अपने चार मठ की स्थापना की और अपने विचारों को पूरे भारत तक पहुंचाया।

दक्षिण के कालाड़ी ग्राम में शिवगुरु नाम के एक ब्राह्मण निवास करते थे। विवाह होने के कई सालों बाद भी उनके यहां कोई संतान नहीं हुई। शिवगुरु ने पत्नी विशिष्टादेवी के साथ संतान प्राप्ति हेतु भगवान शंकर की आराधना की। इनके कठिन तप से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने स्वप्न में इन्हें दर्शन दिए और वर मांगने को कहा। तब शिवगुरु ने भगवान शिव से एक ऐसी संतान की कामना की जो दीर्घायु भी हो और जिसकी ख्याति विश्व भर में हो जो सर्वज्ञ बने। तब भगवान शिव ने कहा कि या तो तुम्हारी संतान दीर्घायु हो सकती है या फिर सर्वज्ञ, जो दीर्घायु होगा वो सर्वज्ञ नहीं होगा और अगर सर्वज्ञ संतान चाहते हो तो वह दीर्घायु नहीं होगी। तब शिवगुरु ने दीर्घायु की बजाय सर्वज्ञ संतान की कामना की। कहा जाता है कि भगवान शिव ने स्वयं शिवगुरु की संतान के रूप में जन्म लेने का वर दिया था।
 


इसके बाद समय आने पर शिवगुरु और विशिष्टादेवी को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। भगवान शंकर की तपस्या के प्रताप से इस बालक का नाम भी माता-पिता ने शंकर रखा। उनकी शिशुअवस्था में ही उनके माता-पिता को यह संकेत दिखाई देने लगे थे कि यह बालक तेजस्वी है, सामान्य बालकों की तरह नहीं है। हालांकि शिशुकाल में ही उनके पिता का साया सर से उठ गया। बालक शंकर ने भी माता से आज्ञा लेकर वैराग्य का रास्ता अपनाया और सत्य की खोज में निकल गए। मात्र सात वर्ष की आयु में उन्हें वेदों का संपूर्ण ज्ञान हो गया था। बारह वर्ष की आयु तक आते-आते वे शास्त्रों के ज्ञाता हो चुके थे। सोलह वर्ष की अवस्था में वे ब्रह्मसूत्र भाष्य सहित सौ से भी अधिक ग्रंथों की रचना कर चुके थे। इसी के साथ वे शिष्यों को भी शिक्षित करने लगे थे। इसी कारण उन्हें आदि गुरु शंकाराचार्य के रूप में भी प्रसिद्धि मिली। 

शंकराचार्य पीठों की स्थापना

देश के चारों कोनों में अद्वैत वेदांत मत का प्रचार करने के साथ ही गुरू शंकराचार्य ने पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण चारों दिशाओं में मठों की स्थापना की। इन्हें पीठ भी कहा जाता है।

वेदांत मठ : दक्षिण भारत में इन्होंने वेदांत मठ की स्थापना श्रंगेरी (रामेश्वरम) में की। यह इनके द्वारा स्थापित पहला मठ था, इसे ज्ञानमठ भी कहा जाता है।

गोवर्धन मठ : इसे इन्होंने पूर्वी भारत (जगन्नाथपुरी) में स्थापित किया। यह आदि शंकराचार्य जी द्वारा स्थापित दूसरा मठ था।

शारदा मठ : पश्चिम भारत (द्वारकापुरी) में इन्होंने तीसरे मठ की स्थापना की इसे कलिका मठ भी कहा जाता है।

बद्रीकाश्रम : इसे ज्योतिपीठ मठ कहा जाता है। यह आदि गुरू शंकराचार्य ने उत्तर भारत में स्थापित किया।

Created On :   18 April 2018 6:43 AM GMT

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