शिवसेना में जान फूंकने उद्धव का दाव, वर्ली सीट से चुनावी समर में आदित्य को उतारा

Shiv Sena chief Uddhav Thackerays son Aditya likely to contest assembly polls from Worli
शिवसेना में जान फूंकने उद्धव का दाव, वर्ली सीट से चुनावी समर में आदित्य को उतारा
शिवसेना में जान फूंकने उद्धव का दाव, वर्ली सीट से चुनावी समर में आदित्य को उतारा

डिजिटल डेस्क, मुंबई। महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में भाजपा के मुकाबले कुछ कमजोर नजर आ रही शिवसेना में जान फूंकने के लिए उद्धव ठाकरे ने अपने बेटे आदित्य ठाकरे को चुनावी समर में उतार दिया है। आदित्य मुंबई की वर्ली सीट से चुनाव लड़ेंगे। यह पहला मौका है, जब ठाकरे फैमिली के किसी शख्स ने सीधे तौर पर चुनावी जंग में उतरने का फैसला लिया है। वहीं यह कयास भी लगाए जा रहे हैं कि सरकार बनने की स्थिति में आदित्य को डेप्युटी सीएम या किसी अहम मंत्रालय की जिम्मेदारी सौंपी जा सकती है।

शिवसेना को आदित्य के चलते लाइमलाइट में रहने का मौका मिल सकेगा। आदित्य चुनाव लड़कर अपनी पारिवारिक परंपरा से उलट एक रास्ता तय करने की कोशिश करेंगे।राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अब ठाकरे फैमिली सीधे तौर पर महाराष्ट्र की राजनीति में उतरकर यह संदेश देना चाहती है कि वे जिम्मेदारी से बचते नहीं हैं। अब तक यह कहा जाता रहा है कि ठाकरे परिवार सत्ता में बिना जिम्मेदारियों के रहता है। अब शिवसेना ने रिमोट कंट्रोल से सत्ता चलाने के आरोपों से बचने के लिए यह फैसला लिया है।

पर्दे के पीछे से काम करना पसंद करते थे बालासाहब ठाकरे
पार्टी संस्थापक बालासाहेब ठाकरे हमेशा पर्दे के पीछे से पार्टी को नियंत्रित करने के पक्ष में थे और इस पर गर्व भी करते थे। फैमिली की तीसरी पीढ़ी से आने वाले उद्धव ठाकरे के बेटे आदित्य को उतारकर पार्टी ने चुनावी जंग में अपनी संभावनाओं को बढ़ाने की भी कोशिश की है। पार्टी का लक्ष्य महाराष्ट्र की सत्ता में बड़ी भूमिका पाना है और खुद आदित्य ठाकरे के उतरने से उसके लिए जनता को संदेश देना आसान हो पाएगा।

बालासाहेब के दौर में नहीं उठते थे सवाल, अब देना होगा जवाब
बालासाहेब ठाकरे के दौर में शिवसेना को लेकर कभी ऐसे आरोप नहीं लगे कि वह जिम्मेदारी के बिना सत्ता चाहती है। इसकी वजह खुद ठाकरे का करिश्माई व्यक्तित्व और महाराष्ट्र की राजनीति में उनका वजूद था। हालांकि अब पार्टी की वह चमक नहीं रही है, ऐसे में राजनीति में सीधे दखल से वह खुद को मजबूत करने का रास्ता देख रही है।

बीजेपी से कमजोर होने की भी चिंता
यही नहीं एक वक्त में बीजेपी के मुकाबले सीनियर पार्टनर रही शिवसेना को अब कम सीटों पर समझौता करना पड़ रहा है। ऐसे में वह आदित्य के जरिए भविष्य के नेतृत्व और ताकत दोनों की ओर देख रही है। इसके अलावा परिवारवाद के आरोपों पर भी शिवसेना अब यह जवाब दे सकेगी कि वह जनता के वोटों से चुनकर सत्ता में पहुंचे हैं।

Created On :   1 Oct 2019 4:38 PM GMT

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