पापों से मुक्त कर मोक्ष दिलाता है पाप मोचनी एकादशी व्रत, जानें महत्व

पापों से मुक्त कर मोक्ष दिलाता है पाप मोचनी एकादशी व्रत, जानें महत्व

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। पाप मोचनी एकादशी व्रत चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी के दिन किया जाता है। इस एकादशी के महत्व को भगवान श्रीकृष्ण ने बताते हुए कहा कि जो भी चैत्र मास में कृष्ण पक्ष की एकादशी को यह व्रत रखता है उसके सारे पाप नष्ट हो जाते हैं। पापमोचनी एकादशी व्रत इस वर्ष 1 अप्रैल 2019 को मनाया जाएगा। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार चैत्र कृष्ण पक्ष की एकादशी पापों को नष्ट करने वाली होती है। स्वयं भगवान श्री कृष्ण ने इसके फल एवं प्रभाव को अर्जुन के समक्ष प्रस्तुत किया था। यह एकादशी पापों को नष्ट करने वाली एकादशी मानी जाती है। इस एकादशी का व्रत रखने वाले मनुष्य के लिए मोक्ष के द्वार खुल जाते हैं। 

पापमोचनी एकादशी पारणा मुहूर्त : 13:40:09 से 16:09:32 तक
1 अप्रैल 2019 को अवधि : 2 घंटे 29 मिनट 
हरि वासर समाप्त होने का समय : 12:44:37 पर 1 अप्रैल को

पाप मोचनी एकादशी पूजन विधि -:

1- इस व्रत में भगवान विष्णु के चतुर्भुज रूप की पूजा की जाती है।
2- व्रती, दशमी तिथि को एक बार सात्विक भोजन करें। व्रती को मन से भोग विलास की भावना को निकालकर भगवान विष्णु की पूजा अर्चना करनी चाहिए।
3- एकादशी के दिन सूर्योदय होते ही स्नान करके व्रत का संकल्प करना चाहिए संकल्प के उपरान्त श्री विष्णु की पूजा करें।
4- पूजा के बाद भगवान के समक्ष बैठकर भगवद् कथा का पाठ अथवा श्रवण करना चाहिए।
5- एकादशी तिथि को जागरण करने से कई गुणा पुण्य मिलता है। इसलिए रात में भी निराहार रहकर भजन कीर्तन करते हुए जागरण करें।
6- द्वादशी के दिन प्रात: स्नान करके विष्णु भगवान की पूजा करें और फिर ब्रह्मणों को भोजन करवाकर दक्षिणा सहित विदा करें।
7- इसके बाद स्वयं भोजन ग्रहण करना चाहिए।
8- इस एकादशी के दिन भक्त को भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए। ऐसा करने से भगवान विष्णु का आशीर्वाद मिलता है।
9- पापमोचनी एकादशी व्रत साधक को उसके सभी पापों से मुक्त कर उसके लिए मोक्ष के मार्ग खोलती है।
10- यदि कोई व्यक्ति इस पूजा को पूरे विधि-विधान से करे, तो व्रत के शुभ फलों में वृद्धि होती है।

पापमोचनी एकादशी की कथा -: 
श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि, राजा मान्धाता ने एक समय में लोमश ऋषि से जब पूछा कि प्रभु यह बताएं कि मनुष्य जो जाने अनजाने पाप कर्म करता है उससे कैसे मुक्त हो सकता है। राजा मान्धाता के इस प्रश्न के जवाब में लोमश ऋषि ने राजा को एक कहानी सुनाई 
कि चैत्ररथ नामक सुन्दर वन में च्यवन ऋषि के पुत्र मेधावी ऋषि तपस्या में लीन थे। इस वन में एक दिन मंजुघोषा नामक अप्सरा की नजर ऋषि पर पड़ी तो वह उन पर मोहित हो गई और उन्हें अपनी ओर आकर्षित करने हेतु यत्न करने लगी। कामदेव भी उस समय उधर से गुजर रहे थे कि उनकी नज़र अप्सरा पर गई और वह उसकी मनोभावना को समझते हुए उसकी सहायता करने लगे। अप्सरा अपने यत्न में सफल हुई और ऋषि कामपीड़ित हो गए। 

काम के वश में होकर ऋषि शिव की तपस्या का व्रत भूल गए और अप्सरा के साथ रमण करने लगे। बहुत वर्ष बाद जब उनकी चेतना जागी तो उन्हें एहसास हुआ कि वह शिव की तपस्या से विरत हो चुके हैं। उन्हें उस अप्सरा पर बहुत क्रोध हुआ और तपस्या भंग करने का दोषी जानकर ऋषि ने अप्सरा को पिशाचनी होने का श्राप दे दिया। श्राप से दुखी होकर वह ऋषि के पैरों पर गिर पड़ी और श्राप से मुक्ति के लिए अनुनय करने लगी। अप्सरा की याचना से द्रवित हो मेधावी ऋषि ने उसे विधि सहित चैत्र कृष्ण एकादशी का व्रत करने के लिए कहा भोग में निमग्न रहने के कारण ऋषि का तेज भी लोप हो गया था। इसलिए ऋषि ने भी इस एकादशी का व्रत किया जिससे उनका पाप नष्ट हो गया। उधर अप्सरा भी इस व्रत के प्रभाव से पिशाच योनि से मुक्त हो गई और उसे सुन्दर रूप प्राप्त हुआ व स्वर्ग के लिए प्रस्थान कर गयी। 

Created On :   19 March 2019 11:23 AM GMT

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