भारत-उज्बेकिस्तान संयुक्त युद्धाभ्यास में दिखाया कौशल - ताशकंद में कोऑर्डिनेट कर रहा था संभाग का लाल 

Skills shown in India-Uzbekistan joint exercise - Coordinating red division in Tashkent
भारत-उज्बेकिस्तान संयुक्त युद्धाभ्यास में दिखाया कौशल - ताशकंद में कोऑर्डिनेट कर रहा था संभाग का लाल 
भारत-उज्बेकिस्तान संयुक्त युद्धाभ्यास में दिखाया कौशल - ताशकंद में कोऑर्डिनेट कर रहा था संभाग का लाल 

डिजिटल डेस्क शहडोल । भारत और उज्बेकिस्तान के बीच उज्बेकिस्तान की राजनधानी ताशकंद में पहली बार दोनों देशों के बीच संयुक्त युद्धाभ्यास हुआ। दोनों देशों के बीच सामरिक संबंधों को बढ़ावा देने और आतंकी गतिविधियों पर नकेल कसने के लिए 4 नवंबर से 13 नवंबर तक संयुक्त अभ्यास किया गया। इसमें भारत की ओर से कुल 58 योद्धा शामिल हुए थे। 14 एयरफोर्स के और 44 आर्मी के। इस पूरे ज्वाइंट एक्सरसाइज में भारत की तरफ से प्लानिंग और को-आर्डिनेशन का काम देख रहे थे संभाग के लाल विंग कमांडर आरके यादव। आरके यादव और उनका परिवार काफी समय तक अनूपपुर जिले के कोतमा में रहा था। उनके पिता श्यामलाल यादव कोतमा कॉलरी में वरिष्ठ लिपिक के पद पर कार्यरत थे। उनकी प्रारंभिक शिक्षा कोतमा में ही हुई थी। इसके बाद वे आर्मी स्कूल रीवा में पढऩे के लिए गए, फिर वहां से उनका चयन नेशनल डिफेंस अकेडमी (एनडीए) में हो गया।
जंगल, पहाड़ और शहरी क्षेत्र में किया अभ्यास 
भास्कर के चर्चा में आरके यादव ने बताया कि चीन के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए भारत के उज्बेकिस्तान के साथ सामरिक संबंध कई मायनों में महत्वपूर्ण हैं। आतंकवाद से मुकाबले के लिए भी यह कारगर रहेगा। उन्होंने बताया कि संयुक्त युद्धाभ्यास के दौरान दोनों देशों के सुरक्षा टुकडिय़ों ने आतंकवादियों के मुकाबले का अभ्यास किया। इसके लिए पहाड़ी, जंगली और शहरी इलाकों में आतंकियों के खिलाफ लड़ाई का अभ्यास किया गया, पूरा ऑपरेशन आर्मी और एयरफोर्स के साथ संयुक्त रूप से हुआ।
आपदा प्रबंधन का  देखते हैं काम
आरके यादव ने बताया कि 1986 से 1991 तक उन्होंने कोतमा में पढ़ाई की थी। इसके बाद 1991 से 1998 तक रीवा के सैनिक स्कूल में उन्होंने पढ़ाई की। वे वर्तमान में वायु सेना मुख्यालय नई दिल्ली में पदस्थ हैं और एयर फोर्स आपदा प्रबंधन का कार्य देखते हैं। जो भी ट्रांसपोर्ट हेलीकॉप्टर से होता है, उसे को-आर्डीनेट करते हैं। उन्होंने बताया कि पिताजी के रिटायरमेंट के बाद उनका परिवार अयोध्या शिफ्ट हो गया है, लेकिन वर्ष में एक बार वे अमरकंटक और बांधवगढ़ जरूर आते हैं। उनकी बहुत से यादें शहडोल संभाग से जुड़ी हुई हैं।
 

Created On :   26 Nov 2019 8:16 AM GMT

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