भाजपा शिवसेना गठबंधन से छोटे दलों की फजीहत, विधानसभा में लाभ मिलने की उम्मीद के साथ रहेंगे साथ

Small parties are facing problems due to BJP-Shiv Sena alliance
भाजपा शिवसेना गठबंधन से छोटे दलों की फजीहत, विधानसभा में लाभ मिलने की उम्मीद के साथ रहेंगे साथ
भाजपा शिवसेना गठबंधन से छोटे दलों की फजीहत, विधानसभा में लाभ मिलने की उम्मीद के साथ रहेंगे साथ

डिजिटल डेस्क, नागपुर। भाजपा व शिवसेना के बीच लोकसभा व विधानसभा चुनाव के लिए गठबंधन तय हो जाने के बाद भाजपा के उन छोटे मित्र दलों की फजीहत सी होने लगी है जो लोकसभा चुनाव में तोल मोल की रणनीति पर काम करने लगे थे। यह भी माना जा रहा है कि भाजपा नए मित्रों को अधिक महत्व देने की तैयारी में है। ऐसे में पुराने मित्रदल खासकर आरपीआए ए जैसों की रणनीति पूरी तरह से प्रभावित हो गई है। भाजपा के प्रदेश स्तर के राजनीतिक रणनीतिकारों में शामिल एक पदाधिकारी ने कहा भी है कि इस बार भाजपा राज्य में शिवसेना के साथ तय सीटों के अलावा अन्यों पर कोई समझौता नहीं करेगी। हालांकि छोटे मित्र दलों को विधानसभा चुनाव में मौका देने का आश्वासन दिया जा सकता है। लिहाजा विधानसभा चुनाव में भाजपा को इन छोटे दलों को 25 से अधिक सीटें देनी पड़ सकती है। विधानसभा में लाभ की उम्मीद के साथ छोटे दल भाजपा के साथ ही रहेंगे। 

विधानसभा की भी रणनीति 
राजनीतिक जानकार के अनुसार लोकसभा चुनाव में टिकट वितरण के समय भाजपा राज्य में विधानसभा चुनाव की तैयारी की रणनीति पर भी काम करेगी। शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने कहा था कि लोकसभा के साथ ही विधानसभा की सीटों की साझेदारी हो जाना चाहिए, लेकिन मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कहा है कि विधानसभा की 288 सीटों में से मित्रदल के लिए सीट छोड़ने के बाद शेष सीटों पर समान साझेदारी की जाएगी। फिलहाल राज्य की राजनीति में भाजपा के मित्रदलों में रामदास आठवले की आरपीआई, महादेव जानकर का राष्ट्रीय समाज पक्ष, विनायक मेटे का शिवसंग्राम, सदाभाऊ खोत का रयत शेतकरी संगठन है। शिवसेना के साथ एक भी मित्रदल नहीं है। 

शहरी क्षेत्र की स्थिति
भाजपा को लगता है कि शहरी क्षेत्र में उसकी स्थिति मजबूत रहेगी। शिवसेना के साथ गठबंधन नहीं होने की स्थिति में कांग्रेस राकांपा को हर क्षेत्र में लाभ मिलने की उम्मीद थी, लेकिन अब स्थिति एकाएक बड़ी चुनौती वाली लग रही है। माना जा रहा है कि नागपुर, पुणे, मुंबई, ठाणे, औरंगाबाद सहित सभी शहरी क्षेत्रों में युति की स्थित सुधरेगी। उपनगरीय क्षेत्रों में भी कांग्रेस व राकांपाा को कड़ी मेहनत करना पड़ सकता है। 1998 के में शिवसेना भाजपा के नेतृत्व कर सरकार राज्य में होने पर भी कांग्रेस ने लोकसभा की 48 में से 38 सीटें जीती थी। अब वह स्थिति नहीं है।

शहरी क्षेत्र में भाजपा को मिला था लाभ
2014 के विधानसभा चुनाव में भाजपा व शिवसेना ने अलग अलग दांव आजमाया था। उस चुनाव में भाजपा राज्य में सबसे बड़ी पार्टी बनी। शहरी क्षेत्र में उसे लाभ मिला, लेकिन कई स्थानों पर शिवसेना व अन्य दलों की भारी चुनाैती का सामना भी करना पड़ा था। 2009 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने राज्य के 7 विभागों में शिवसेना के साथ मिलकर जितने मत पाए थे। 2014 के चुनाव में वह कई स्थानों पर आश्चर्यजनक तरीके से प्रभावित रहा। 2009 में भाजपा ने विदर्भ में 39 सीटों पर लड़कर 19 जीती थी। 33.92 प्रतिशत मत पाया था। मराठवाडा में 19 में 2,उत्तर महाराष्ट्र में 20 में 6, पश्चिम महाराष्ट्र में 19 में 9, मुंबई में 13 में 5, ठाणे 7 में 4 व कोकण में 2 में से 1 सीट जीती थी। 2014 में भाजपा शिवसेना से अलग थी। विदर्भ में 62 में से 44 सीटें जीती। मराठवाडा में 42 में 15,उत्तर महाराष्ट्र 46 में 19, पश्चिम महाराष्ट 42 में 19, मुंबई 32 में 15, ठाणे 22 में 9 व कोकण में 15 में 1 सीट भाजपा ने जीती थी। 2014 के विस चुनाव में भाजपा को विदर्भ में 36.05 प्रतिशत, पश्चिम महाराष्ट्र में 28.0 प्रतिशत व मुंबई में 36.67 प्रतिशत मत मिले। यह मत प्रतिशतांक भाजपा की बढ़त मे शामिल है। लेकिन अन्य विभागों में मत प्रतिशतांक घट गया।

Created On :   20 Feb 2019 6:20 PM GMT

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