BJP को एक राष्ट्र एक चुनाव के मुद्दे पर मिला SP, JDU और TRS का साथ

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BJP को एक राष्ट्र एक चुनाव के मुद्दे पर मिला SP, JDU और TRS का साथ
BJP को एक राष्ट्र एक चुनाव के मुद्दे पर मिला SP, JDU और TRS का साथ

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। केन्द्र सरकार लोकसभा और विधानसभा चुनाव को एक साथ कराने की कवायद में जुटी हुई है। इस कवायद में सरकार को अब समाजवादी पार्टी (एसपी), जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) और तेलंगाना राष्ट्र समिति (TRS) का साथ मिल गया है। दरअसल, केंद्रीय कानून आयोग ने दो दिन की बैठक आयोजित की है। रविवार को इस बैठक में एक राष्ट्र एक चुनाव के मुद्दे पर इन पार्टियों ने अपनी सहमति दी। हालांकि डीएमके ने इसे संविधान के बुनियादी सिद्धांतों के खिलाफ बताया है।

SP ने जताई सहमति
बैठक में एसपी का पक्ष रखने के बाद रामगोपाल यादव ने कहा, "समाजवादी पार्टी एक साथ चुनाव करवाने के पक्ष में है। लेकिन यह 2019 से ही शुरू होना चाहिए। साथ ही अगर कोई राजनेता पार्टी बदलते हैं या हॉर्स ट्रेडिंग में संलिप्त पाए जाते हैं तो राज्यपाल को उन पर एक हफ्ते के अंदर एक्शन लेने का अधिकार होना चाहिए।"

 

 


JDU की भी सहमति
जेडीयू नेता केसी त्यागी ने कहा कि एक राष्ट्र एक चुनाव के मुद्दे पर हम बीजेपी के साथ हैं, लेकिन हमे ऐसा लगता है कि एक साथ चुनाव कराना इतना आसान नहीं है। हालांकि हम इसका विरोध नहीं कर सकते क्योंकि इस कदम से चुनावी खर्च को बचाया जा सकता है।

 

 


TRS की सहमति
तेलंगाना राष्ट्र समिति (TRS) ने भी एक राष्ट्र एक चुनाव के मुद्दे पर सहमति दी है। पार्टी के चेयरमैन के चंद्रशेखर राव ने केंद्रीय कानून आयोग को पत्र लिखकर कहा, "हम लोग एकसाथ चुनाव करवाने के पक्ष में है।"

बैलेट पेपर से चुनाव का सुझाव
टीडीपी पार्टी ने इस मुद्दे पर कहा कि अगर चुनाव अपने तय वक्त पर 2019 में होते हैं तो उन्हें इससे कोई परेशानी नहीं है। हालांकि, उन्होंने बैलट पेपर से चुनाव करवाने पर जोर दिया। टीडीपी ने कहा कि चुनाव आयोग के पास उतनी ईवीएम मशीन नहीं हैं, जितनी की साथ चुनाव करवाने के लिए जरूरी हैं। ऐसे में नई ईवीएम मशीन बनाने के लिए काफी वक्त और पैसा लगने की भी बात कही गई है।

 

 



DMK का विरोध
डीएमके अध्यक्ष एमके स्टालिन ने बीजेपी के प्रस्ताव का विरोध किया। उन्होंने इसे संविधान के बुनियादी सिद्धांतों के खिलाफ बताया।

एक राष्ट्र एक चुनाव के क्या हैं फायदे?
- लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराने का सबसे बड़ा फायदा यही बताया जा रहा है कि इससे राजनीतिक स्थिरता आएगी।
- एक साथ चुनाव कराने के पक्ष में एक तर्क यह भी दिया जा रहा है कि इससे चुनावी खर्च में काफी बचत होगी। केंद्र सरकार की ओर से यह कहा जा रहा है कि दोनों चुनाव एक साथ कराने से तकरीबन 4,500 करोड़ रुपये की बचत होगी।
- अलग-अलग चुनाव होने से अलग-अलग वक्त पर आदर्श आचार संहिता लगाई जाती है। इससे होता यह है कि विकास संबंधित कई निर्णय नहीं हो पाते हैं। शासकीय स्तर पर कई अन्य कार्यों में भी इस वजह से दिक्कत पैदा होती है। ऐसे में एक साथ चुनाव होने से कई स्तर पर प्रशासकीय सुविधा की बात भी कही जा रही है। 

Created On :   8 July 2018 1:20 PM GMT

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